गंगा अष्टोत्तर-शतनामस्तोत्र
ओंकारस्वरुपिणी गंगा ऊँ त्रिपथगा देवी नम: ऊँ शंभुमौलिविहारिणी नम: ऊँ जाह्नवी नम: ऊँ पापहन्त्री नम: ऊँ महापातकनाशिनी नम: ऊँ पतितोद्धारिणी
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ओंकारस्वरुपिणी गंगा ऊँ त्रिपथगा देवी नम: ऊँ शंभुमौलिविहारिणी नम: ऊँ जाह्नवी नम: ऊँ पापहन्त्री नम: ऊँ महापातकनाशिनी नम: ऊँ पतितोद्धारिणी
इन्द्र उवाच ऊँ नम: कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नम: । कृष्णप्रियायै सारायै पद्मायै च नमो नम: ।।1।। अर्थ – देवराज इन्द्र
सकुंकुमविलेपनामलिकचुम्बिकस्तूरिकां समन्दहसितेक्षणां सशरचापपाशांकुशाम् । अशेषजनमोहिनीमरुणमाल्यभूषाम्बरां जपाकुसुमभासुरां जपविधौ स्मरेदम्बिकाम् ।। अगस्त्य उवाच हयग्रीव दयासिन्धो भगवन् भक्तवत्सल । त्वत्त: श्रुतमशेषेण श्रोतव्यं
ऊँ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीमहासरस्वती देवता, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठांगत्वेन जपे विनियोग: । ऊँ नमश्चण्डिकायै ।। मार्कण्डेय
इस स्तोत्र में 11वें श्लोक से 13वें श्लोक तक करन्यास, हृदयन्यास, अंगन्यास बताया गया है, जिसको विस्तार से दिया गया
माना जाता है कि जो कोई व्यक्ति शनि मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ करता है या सुन लेता है तब उसे