आधुनिक समय में हर व्यक्ति शनि के नाम से भयभीत रहता है. इसका कारण शनि के विषय में फैली गलत भ्राँतियाँ भी हैं. शनि ग्रह किसी व्यक्ति को कैसे फल देगा, ये जन्म कुंडली में शनि की स्थिति तथा योगों पर निर्भर करता है. कई बार योगकारी होते भी अपनी दशा/अन्तर्दशा में शनि पूरे फल प्रदान नहीं कर पाता हैं क्योंकि वह पीड़ित हो सकता है अथवा अशुभ प्रभाव में हो सकता है. योगकारी शनि यदि अनुकूल प्रभाव में है तब जातक को उच्च पद की प्राप्ति हो सकती है, साम्राज्य मिल सकता है. लेकिन शनि बुरे भाव का स्वामी है अथवा बुरे भावों से संबंध बना रहा है तब उच्च पद से नीचे भी गिरा सकता है अथवा पद से बर्खास्त भी करा सकता है.
अशुभ शनि की दशा/अन्तर्दशा के समय यदि शनि की ढैय्या अथवा साढ़ेसाती का प्रकोप भी आरंभ हो जाता है तब जातक को अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है. मानसिक तथा शारीरिक कष्टों का तांता सा लग जाता है. विविध प्रकार की आनिष्टकारी परिस्थितियाँ घेर सकती हैं अथवा मृत्युतुल्य कष्ट भी आ सकता है. हर कार्य में अड़चन अथवा बाधाओं का सामना हो जाता है.
शनि यदि जन्म कुंडली में परेशानी देने वाला सिद्ध हो रहा है तब उसके निदान के लिए कुछ जप तथा पाठ शास्त्रों में उल्लेखित हैं, जिनमें से एक “श्रीशनि वज्रपंजर कवच” है. इस कवच का पाठ करने से जातक सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता है और स्वस्थ तथा खुशहाल जीवन की ओर अग्रसर रहता है. जन्म कुंडली में शनि ग्रह कितना ही पीड़ादायक अथवा पापाक्रांत क्यों ना हो लेकिन इस कवच का पाठ करने से जीवन में चारों ओर सुख शांति रहती है और जातक हर्षोल्लास से जीवन व्यतीत करता है.
श्रीब्रह्मोवाच – Shribrahmovach
श्रृणुध्वमृषय:सर्वे शनि पीडाहरं महत्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।
कवचं देवतावासं वज्रपंजर संज्ञकम्।
शनैश्चर प्रीतिकरं सर्वसौभाग्य दायकम्।
मूल पाठ – Mool Path
विनियोग : ऊँ अस्य श्रीशनैश्चर वज्रपंजर कवचस्य कश्यप ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीशनैश्चर: देवता, श्रीशनैश्चर प्रीत्यर्थे पाठे विनियोग:।
ऋष्यादिन्यास : शिरसि कश्यप ऋषये नम: । मुखे अनुष्टुप् छन्दसे नम: । हृदि श्रीशनैश्चर: देवतायै नम: । सर्वांगे श्रीशनैश्चर प्रीत्यर्थे पाठे विनियोगाय नम: ।
ध्यानम् – Dhyanam
नीलाम्बरो नीलवपु: कीरीटी गृघ्रस्थित: त्रासक: धनुष्करो ।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा ममस्यात् वरद: प्रशान्त: ।।
श्रीब्रह्मोवाच – Shribrahmovach
श्रृणुध्वम्ऋषय सर्वे शनिपीड़ाहरं महत्
कवचं शनिराजस्य सौरेरिद मनुत्तमम
कवचं देवतावासं वज्रपंजर अंशकम्
शनैश्चर प्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्
शिर: शनैश्चर: पातु भालं मे सूर्य नन्दन: ।
नेत्रे छायात्मज: पातु पातु कर्णौ यमानुज:।।3।।
नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा ।
स्निग्ध कण्ठश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुज: ।।4।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद: ।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा ।।5।।
नाभिं ग्रह पति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा ।
ऊरू ममान्तक: पातु यमो जानु युगं तथा ।।6।।
पादौ मन्द गति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल: ।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेत् मे सूर्यनन्दन: ।।7।।
फलश्रुति – Fal Shruti
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य: ।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यज: ।।1।।
व्यय जन्म द्वितीयस्थो मृत्युस्थान गतोSपि वा
कालस्थ गतो वाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि: ।।2।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्म द्वितीयगे ।
कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ।।3।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।
द्वादशाष्टम जन्मस्थ दोषान्नाशयते सदा ।
जन्मलग्नस्थितान् दोषान् सर्वान् नाशयते प्रभु ।।4।।
फलश्रुति का अर्थ है(Meaning Of Result) – श्रीशनि वज्रपंजर कवच का नित्य नियमित रुप से पाठ करने पर शनि ग्रह द्वारा पीड़ा नहीं होती है. यदि जन्म कुंडली में शनि ग्रह मारकेश हो, द्वितीय या सप्तम या आठवें भाव से संबंधित होकर मृत्यु देने वाला भी हो तब भी श्रीशनि वज्रपंजर कवच का पाठ करने से शनि का मारक प्रभाव खतम हो जाता है.
इस तरह से श्रीशनि वज्रपंजर कवच का नित्य पाठ करने वाला साधक सभी प्रकार के कष्टों, पीड़ाओं, दुखो और बाधाओं से मुक्ति पाता है.