श्री गोपाल सहस्त्रनाम स्त्रोत्रम
अथ ध्यानम कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्ष:स्थले कौस्तुभं नासाग्रे वरमौत्तिकं करतले वेणुं करे कंकणम । सर्वाड़्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च मुक्तावलि
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अथ ध्यानम कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्ष:स्थले कौस्तुभं नासाग्रे वरमौत्तिकं करतले वेणुं करे कंकणम । सर्वाड़्गे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे च मुक्तावलि
इन्द्र उवाच ऊँ नम: कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नम: । कृष्णप्रियायै सारायै पद्मायै च नमो नम: ।।1।। अर्थ – देवराज इन्द्र
ऊँ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, श्रीमहासरस्वती देवता, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठांगत्वेन जपे विनियोग: । ऊँ नमश्चण्डिकायै ।। मार्कण्डेय
इस स्तोत्र में 11वें श्लोक से 13वें श्लोक तक करन्यास, हृदयन्यास, अंगन्यास बताया गया है, जिसको विस्तार से दिया गया
माना जाता है कि जो कोई व्यक्ति शनि मृत्युंजय स्तोत्र का पाठ करता है या सुन लेता है तब उसे
जन्म कुंडली में किसी प्रकार का भौम दोष अथवा मंगल दोष है या मांगलिक दोष बना हुआ है तब उसकी