गरुड़ पुराण – चौदहवाँ अध्याय
यमलोक एवं यमसभा का वर्णन, चित्रगुप्त आदि के भवनों का परिचय, धर्मराज नगर के चार द्वार, पुण्यात्माओं का धर्म सभा
Astrology, Mantra and Dharma
यमलोक एवं यमसभा का वर्णन, चित्रगुप्त आदि के भवनों का परिचय, धर्मराज नगर के चार द्वार, पुण्यात्माओं का धर्म सभा
अशौचकाल का निर्णय, अशौच में निषिद्ध कर्म, सपिण्डीकरण श्राद्ध, पिण्डमेलन की प्रक्रिया, शय्यादान, पददान तथा गया श्राद्ध की महिमा
नवग्रहों में सूर्य को राजा माना गया है। सूर्यदेव की दो भुजाएँ हैं, वे कमल के आसन पर विराजमान दिखाए
एकादशाहकृत्य-निरुपण, मृत-शय्यादान, गोदान, घटदान, अष्टमहादान, वृषोत्सर्ग, मध्यमषोडशी, उत्तमषोडशी एवं नारायणबलि गरुड़ उवाच गरुड़जी ने कहा – हे सुरेश्वर !
दशगात्र – विधान गरुड़ उवाच गरुड़ जी बोले – हे केशव ! आप दशगात्र विधि के संबंध में बताइए, इसके
नमोSस्तु गणनाथाय सिद्धिबुद्धियुताय च । सर्वप्रदाय देवाय पुत्रवृद्धिप्रदाय च ।।1।। अर्थ – सिद्धि-बुद्धि सहित उन गणनाथ को नमस्कार है, जो