सूर्य

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नवग्रहों में सूर्य को राजा माना गया है। सूर्यदेव की दो भुजाएँ हैं, वे कमल के आसन पर विराजमान दिखाए जाते हैं। उनके दोनों हाथों में कमल सुशोभित रहता है। उनके सिर पर सुंदर स्वर्ण मुकुट तथा गले में रत्नों की माला रहती है। सूर्यदेव की कान्ति कमल के भीतरी भाग जैसी बताई गई है और वे सात घोड़ो के रथ पर आरुढ़ रहते हैं और इन सात घोड़ों का संबंध सूर्य की सात रश्मियों से भी माना गया है।

सूर्यदेव का एक अन्य नाम सविता भी है, जिसका अर्थ है – सृष्टि करने वाला “सविता सर्वस्य प्रसविता” (निरुक्त 10।31)। ऋग्वेद के अनुसार आदित्य-मण्डल के अन्त:स्थित सूर्य देवता सबके प्रेरक, अन्तर्यामी तथा परमात्मा स्वरुप हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य ब्रह्मस्वरुप हैं, सूर्य से जगत उत्पन्न होता है और उन्हीं में स्थित है। सूर्य सर्वभूतस्वरुप सनातन परमात्मा हैं। यही भगवान भास्कर ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र बनकर जगत का सृजन, पालन और संहार करते हैं। सूर्य नवग्रहों में प्रमुख देवता हैं।

जब ब्रह्मा अण्ड का भेदन कर उत्पन्न हुए, तब उनके मुख से “ऊँ” यह महाशब्द उच्चरित हुआ। यह ओंकार परब्रह्म है और यही भगवान सूर्यदेव का शरीर है। ब्रह्मा के चारों मुखों से चार वेद आविर्भूत हुए, जो तेज से उदीप्त हो रहे थे। ओंकार के तेज ने इन चारों को आवृत कर लिया। इस तरह ओंकार के तेज से मिलकर चारों एकीभूत हो  गये। यही वैदिक तेजोमय ओंकारस्वरुप सूर्य देवता हैं। यह सूर्यस्वरुप तेज सृष्टि के सबसे आदि में पहले प्रकट हुआ, इसलिए इसका नाम आदित्य पड़ा।

एक बार दैत्यों, दानवों एवं राक्षसों ने संगठित होकर देवताओं के विरुद्ध युद्ध ठान दिया और देवताओं को पराजित कर उनके अधिकारों को छीन लिया। देवमाता अदिति इस विपत्ति से त्राण पाने के लिए भगवान सूर्य की उपासना करने लगी। भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर अदिति के गर्भ से अवतार लिया और देवशत्रुओं को पराजित कर सनातन वेदमार्ग की स्थापना की। इसलिए वे भी आदित्य कहे जाने लगे।

भगवान सूर्य का वर्ण लाल है, इनका वाहन रथ है। उनके रथ में एक ही चक्र है जो संवत्सर कहलाता है। इस रथ में मास स्वरुप बारह अरे हैं, ऋतुरुप छ: नेमियाँ और तीन चौमासे-रुप तीन नाभियाँ हैं। इनके साठ हजार बालखिल्य स्वस्तिवाचन स्तुति करते हुए चलते हैं। ऋषि, गन्धर्व, अप्सरा, नाग, यक्ष, राक्षस और देवता सूर्य नारायन की उपासना करते हुए चलते हैं। चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश इनके मुख्य अस्त्र हैं।

ज्योतिष में भगवान सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं और इनकी महादशा छ: वर्ष की होती है। सूर्य की प्रसन्नता और शान्ति के लिए नित्य सूर्यार्घ्य देना चाहिए और हरिवंशपुराण का श्रवण करना चाहिए। सूर्य के निर्बल होने पर माणिक्य धारण करना चाहिए। सूर्य के दान के लिए गेहूँ, सवत्सा गाय, गुड़, ताँबा, सोना तथा लाल वस्त्र ब्राह्मण को दान देना चाहिए।

 

सूर्य की शान्ति के लिए वैदिक मंत्र –

“ऊँ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च । हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।।”

 

सूर्य का पौराणिक मंत्र –

“जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् । तमोSरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम्।।”

 

सूर्य का बीज मंत्र – “ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:”

 

सूर्य का सामान्य मंत्र – “ऊँ घृणि सूर्याय नम:”

उपरोक्त मंत्रों में से किसी एक का श्रद्धानुसार निश्चित संख्या में नित्य जप करना चाहिए। सूर्य मंत्रों की कुल जप संख्या 7,000 है और जप का समय प्रात:काल है।