गंगाष्टकम्
पाठकों की सुविधा के लिए यहाँ हम दो गंगाष्टकम का वर्णन कर रहे हैं – पहला महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित
Astrology, Mantra and Dharma
पाठकों की सुविधा के लिए यहाँ हम दो गंगाष्टकम का वर्णन कर रहे हैं – पहला महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित
1) ऊँ श्री अनन्ताय नम: 2) ऊँ श्री आत्मवते नम: 3) ऊँ श्री अद्भुताय नम: 4) ऊँ श्री अव्यक्ताय नम:
1) ऊँ श्री राजीव लोचनाय नम: 2) ऊँ श्री रामाया नम: 3) ऊँ श्री रामभद्राय नम: 4) ऊँ श्री राजेन्द्राय
वात्सल्यादभयप्रदानसमयादार्तार्तिनिर्वापणा – दौदार्यादघशोषणादगणितश्रेय:पदप्रापणात् । सेव्य: श्रीपतिरेक एव जगतामेतेSभवन्साक्षिण: प्रह्लादश्च विभीषण्श्च करिराट् पांचाल्यहल्या ध्रुव: ।।1।। प्रह्लादस्ति यदीश्वरो वद हरि: सर्वत्र
अग्रे कुरूणामथ दु:शासनेनाहृतवस्त्रकेशा । कृष्णा तदाक्रोशदनन्यनाथा गोविन्द दामोदर माधवेति ।।1।। श्रीकृष्ण विष्णो मधुकैटभारे भक्तानुकम्पिन् भगवन् मुरारे । त्रायस्व मां
भीष्म उवाच – Bhishma Uvach इति मतिरुपकल्पिता वितृष्णा भगवति सात्वतपुंगवे विभूम्नि । स्वसुखमुपगते क्वचिद्विहर्तुं प्रकृतिमुपेयुषि यद्भवप्रवाह: ।।1।। त्रिभुवनकमनं तमालवर्णं