इस अध्याय में देवताओं द्वारा कार्तिकेय की वन्दना, ब्रह्माजी के साथ कार्तिकेय का अपने माता-पिता के पास कैलास आना, भगवान विष्णु द्वारा पुत्र रूप में माँ पार्वती का वात्सल्य प्राप्त करने की अभिलाषा प्रकट करना, महादेवी द्वारा “अभिलाषा पूर्ण होगी” इस प्रकार का वर प्रदान करना, दिया गया है.
श्रीमहादेव जी बोले – मुनिश्रेष्ठ ! तब प्रसन्न होकर देवगण आदरपूर्वक गन्ध, पुष्प, अर्घ्य, धूप और नाना प्रकार के स्तोत्रों से गिरिजातनय कार्तिकेय को पूजन-वन्दन के द्वारा प्रसन्न करके तथा प्रजापति ब्रह्माजी अपने हंसवाहन-विमान पर आरूढ़ होकर षडानन कुमार कार्तिकेय को साथ लेकर भगवान शिव के पास आये और कार्तिकेय से कहने लगे – ।।1-2½।।
ब्रह्माजी बोले – वत्स ! ये सुरेश्वरी जगत्पूज्या तुम्हारी माता हैं और ये जगद्वन्द्य, कल्याणकारी महादेवजी तुम्हारे पिता हैं, तुम इन दोनों के पुत्र हो, अपने माता-पिता को प्रणाम करो. महामते ! तुम यहाँ रहकर समस्त विश्व का पालन-पोषण करो।।3-5।।
श्रीमहादेवजी बोले – मुनिवर ! ब्रह्माजी के मुख से ऎसा सुनकर देवी पार्वती और परमेश्वर सदाशिव ने मन में विचारकर कार्तिकेय को अपना पुत्र जाना।।6।। तब प्रेम भरी पार्वती प्रणाम करते हुए अपने पुत्र को देखकर गोद में बैठाकर परम आनन्दित हो गईं. भगवान महेश ने भी पुत्र को प्राप्त कर हर्षपूरित मन से सभी देवताओं को आमन्त्रित कर महान पुत्रोत्सव मनाया।।7-8।। वहाँ आये हुए सनातन भगवान नारायण विष्णु ने सुन्दर रूप और दिव्य शरीर वाले कार्तिकेय को देखा. देवी परम स्नेहभाव से उनके सभी अंगों को देख रही थीं. देवी की गोद में आरूढ़ होकर वे कार्तिकेय अपना महान भाग्य समझकर प्रसन्न हो रहे थे।।9-10।।
परमात्मा भगवान विष्णु के मन में ऎसा विचार आया कि मैं भी इन भगवती का पुत्र होकर कभी इनकी गोद में खेलूँ और वात्सल्य स्नेह भरा इनका दूध पियूँ. ऎसा सोचकर उन्होंने मन ही मन देवी का ध्यान कर उन्हें प्रणाम किया और वे वहाँ से जब चल पड़े तब उनकी अभिलाषा को जानकर परमेश्वरी जगदम्बा ने उन्हें वरदान दिया कि विष्णो ! तुम मेरे पुत्र बनोगे।।11-13।।
नारदजी ! इसके पश्चात दूसरे देवगण भी महादेवी पार्वती और देवाधिदेव भगवान सदाशिव को प्रणाम करके अपने-अपने स्थान को चले गए।।14।। इस प्रकार भगवान कार्तिकेय ने देवपीडक, भयंकर पराक्रमी तारकासुर का युद्ध में जिस प्रकार संहार किया और जिस प्रकार अपने माता-पिता से उनका परिचय हुआ, वह सब मैंने कह दिया. अब तुम उस कथा को सुनो, जिस प्रकार भगवान विष्णु प्रथम पूज्य गजानन के रुप में पार्वती पुत्र होकर गणाधिपति बने।।15-17।।
।।इस प्रकार श्रीमहाभागवतमहापुराण के अन्तर्गत श्रीमहादेव-नारद-संवाद में “कार्तिकेय-कैलासगमन” नामक चौंतीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ।।34।।