धनिष्ठा नक्षत्र के देवता आठ वसुओं को माना गया है इसलिए इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इन आठ वसुओं की उपासना करनी चाहिए. यदि धनिष्ठा जन्म नक्षत्र है और पीड़ित है तब व्यक्ति को कई प्रकार से बाधाओं व कष्टों का सामना करना पड़ सकता है. इनसे बचाव के लिए व्यक्ति को देवी के तीर्थ स्थानों की यात्राएँ करनी चाहिए. सिंह वाहिनी दुर्गा माता की उपासना रोज करनी चाहिए तथा देवी दुर्गा के नाम का जाप या उनका कोई मंत्र अवश्य करना चाहिए. देवी दुर्गा का रात भर जागरण करके उनका भजन करना चाहिए. ऎसा करने से निश्चित रूप से सभी संकट दूर हो जाएंगे. दुर्गा सप्तशती का पाठ करके भी इस नक्षत्र के अशुभ फलों को खतम किया जा सकता है.
कुछ विद्वानों के मत से हरि-हर की पूजा का विधान भी बताया गया है. “हरि” मतलब विष्णु जी और “हर” मतलब भगवान शिव हैं तो हरि-हर में आधा भाग विष्णु जी का तो बाकी आधा भाग शिवजी का है. गंगा स्नान करने से, दोनों देवताओं का प्रतिदिन दर्शन करने से, शिव पुराण का पाठ करने से अथवा विष्णु पुराण का पाठ करने से भी इस नक्षत्र के शुभ फल प्राप्त होते हैं. भगवान विष्णु अथवा भगवान शिव का कोई भी पाठ, महिमा या जाप करने से धनिष्ठा नक्षत्र बली होता है तथा शुभ परिणाम प्रदान करता है.
एक मतानुसार राजयोग से कुंडलिनी जगाने की बात भी कही गई है तो कुछ अन्य का मत है कि अष्टांग योग द्वारा भी जीवात्मा का विकास करने में धनिष्ठा नक्षत्र की ऊर्जा का उपयोग करना एक सच्ची सफलता है. सुनहरी पीला, नीला तथा लाल रंग के उपयोग से भी इस नक्षत्र की ऊर्जा में वृद्धि की जा सकती है. यदि कोई शुभ काम करना है या कोई महत्वपूर्ण कार्य करना है तब इस नक्षत्र से संबंधित दिशा, तिथि, महीना व नक्षत्र का उपयोग करने से भी शुभ फल प्राप्त होते हैं.
जब चंद्रमा का गोचर धनिष्ठा नक्षत्र से हो रहा हो तब इस नक्षत्र के बीज मंत्र की एक माला का जाप करना चाहिए, उससे भी शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं. बीज मंत्र है – “ऊँ यम्” या “ऊँ रं”. इनमें से किसी एक का जाप 108 बार प्रतिदिन करना चाहिए. इस नक्षत्र के अशुभ फलों को दूर करने के लिए तुलसी जी की प्रतिदिन पूजा करनी चाहिए. नेत्रोपनिषद तथा वेदों का प्रतिदिन पाठ करने से भी इस नक्षत्र के अशुभ प्रभाव को मिटाया जा सकता है. मंगलवार के दिन जब धनिष्ठा नक्षत्र पड़ रहा हो तब आठ वसुओं की पूजा पूरे विधान के साथ संपन्न की जानी चाहिए ताकि इस नक्षत्र के शुभ परिणाम प्राप्त हों तथा हर प्रकार के कष्ट तथा संकट दूर हो जाएं.
धनिष्ठा नक्षत्र के वैदिक मंत्र का जाप करने से भी इसे बल प्रदान किया जा सकता है. होम करते हुए 108 बार वैदिक मंत्र का जाप करना चाहिए. यदि होम संभव ना हो तब केवल धनिष्ठा के वैदिक मंत्र का ही 108 बार जाप प्रतिदिन करना चाहिए, मंत्र है :-
ऊँ त्वसो: पवित्रमसिशतधारंत्वसो: पवित्रमसि सहस्त्रधारम् ।
देवस्त्वा सविता पुनातु व्वसो पवित्रेणशतधारेणसुप्त्वा कामधुक्ष: ।।
ऊँ वसुभ्यो नम: ।।
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