उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के अधिपति देवता दस विश्वेदेवों को माना गया है. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इनकी पूजा करनी चाहिए. इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर व्यक्ति को गणेश जी की पूजा व उपासना भी करनी चाहिए क्योंकि गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा गया है. गणेश संकट स्तोत्र का यदि प्रतिदिन नियमपूर्वक विधि-विधान से पाठ किया जाए तो व्यक्ति के बल तथा बुद्धि दोनों का तीव्रता से विकास होगा जिससे व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति से बाहर निकलने की क्षमता रखेगा. हर प्रकार कष्ट तथा विघ्न बाधाएँ इस पाठ के करने से स्वत: ही दूर हो जाती हैं.
हल्का नीला, पीला अथवा नारंगी रंग का उपयोग करने से भी इस नक्षत्र के शुभ परिणाम सामने आते हैं. यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में उत्तराषाढ़ा नक्षत्र शुभता लिए हुए बली अवस्था में है तब उस व्यक्ति को अपने महत्वपूर्ण कार्यों का आरंभ इस नक्षत्र की तिथि, माह, दिशा व नक्षत्र में करना चाहिए. ऎसा करने पर कार्यों में सफलता व संतुष्टि मिलती है.
इस नक्षत्र के पीड़ित होने पर इसके बीज मंत्र “ऊँ भाम्” का प्रतिदिन 108 बार जाप करना चाहिए. इससे धन व मान की वृद्धि होती है. यश, सम्मान तथा आरोग्य की भी वृद्धि होती है. इस नक्षत्र के वैदिक मंत्र का जाप करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है. जिस रविवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र पड़ रहा हो उस दिन इस वैदिक मंत्र का दस हजार की संख्या में जाप पूरे विधि-विधान से होम करते हुए करना चाहिए. यदि होम संभव ना हो सके या रविवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र ना पड़ रहा हो तब जिस दिन भी यह नक्षत्र पड़ रहा हो उस दिन से प्रतिदिन एक माला का जाप इस वैदिक मंत्र का करना चाहिए, मंत्र है :-
ऊँ विश्वेदेवा: श्रृणुतेम गूं हवं में ये अन्तरिक्षे य उपद्यविष्ठाय ।
अग्निजिह्वा उतवायजत्र आसद्यास्मिन्बर्हिर्षिमादयध्वम् ।।
ऊँ विश्वेभ्यो देवेभ्यो नम: ।।
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