जो तिथियाँ चार युगों सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और सतयुग के प्रारम्भ के समय चल रही थी उनको युगादि तिथियाँ कहते हैं. सतयुग के प्रारम्भ का समय कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी है, त्रेतायुग के प्रारम्भ का समय वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया है, द्वापरयुग के प्रारम्भ का समय माघ माह की अमावस्या है और कलियुग के प्रारम्भ का समय भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी है, जो युगादि तिथियाँ कहलाती है.
प्रत्येक प्रलय के बाद जिस तिथि को पुनः सृष्टि का प्रारम्भ हुआ था वह तिथियाँ मन्वादि तिथियाँ कहलाती हैं. विभिन्न मनुओं के नाम और मन्वादि तिथियाँ निम्नलिखित हैं :-
मनु का नाम | मन्वन्तर के प्रारम्भ की तिथियाँ |
स्वायम्भुव | चैत्रशुक्ल की तृतीया |
स्वारोचिष | चैत्र पूर्णिमा |
औत्तम, उत्तम | कार्तिक पूर्णिमा |
तामस | कार्तिक शुक्ल द्वादशी |
रैवत | आषाढ़ शुक्ल द्वादशी |
चाक्षुष | आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा |
वैवस्वत | ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा |
सावर्णि | फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा |
दक्षसावर्णि | आश्विन शुक्ल नवमी |
ब्रह्मसावर्णि | माघ शुक्ल सप्तमी |
धर्मसावर्णि | पौष शुक्ल त्रयोदशी |
रूद्रसावर्णि | भाद्रपद शुक्ल तृतीया |
देवसावर्णि | श्रावण माह की अमावस्या |
इंद्रसावर्णि | श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी |
वर्तमान समय में हम वैवस्वत मन्वन्तर में चल रहे हैं. ऊपर दी गई सभी युगादि और मन्वादी तिथियों को उपनयन, शिक्षा प्रारम्भ, विवाह, गृह निर्माण तथा गृहप्रवेश और यात्रा आदि के मुहूर्त में त्याग देना चाहिए. इन तिथियों में पवित्र नदियों में स्नान करना, दान देना तथा हवन करना आदि श्रेष्ठ कार्य शुभ माने गए हैं.