हाथ में बृहस्पति क्षेत्र अथवा गुरु पर्वत

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गुरु क्षेत्र(Mount Of Jupiter) का स्थान हाथ में तर्जनी अंगुली (First Finger) के मूल (Base) में अर्थात हाथ की जो सबसे पहली अंगुली है उसके ठीक नीचे और मंगल पर्वत के ऊपर होता है। इस पर्वत अथवा गुरु क्षेत्र से अधिकार, नेतृत्व, संचालन तथा लेखन मुख्य रुप से देखा जाता है। यह पर्वत इन बातों को भली-भाँति स्पष्ट करता है। जिन हथेलियों में गुरु पर्वत सबसे ज्यादा उभरा हुआ और स्पष्ट होता है, उनमें देवतुल्य गुण पाए जाते हैं। ऎसे व्यक्ति खुद की उन्नति तो करते ही हैं साथ में दूसरों की उन्नति में भी सहायक सिद्ध होते हैं। ऎसे व्यक्ति अपने स्वाभिमान की रक्षा करने में सबसे आगे रहते हैं।

ये विद्वान होते हैं, अपने वचनों का निर्वाह करने वाले होते हैं अर्थात जो कहते हैं उसे निभाते भी हैं, परोपकारी होने के साथ समाज में माननीय होते हैं। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी ये घबराते नहीं हैं और ना ही विचलित ही होते हैं। जो देश के उच्च न्यानाधीश अथवा उच्च पदाधिकारी व्यक्ति होते हैं उनका गुरु पर्वत निश्चित तौर पर विकसित होता होगा क्योंकि ऎसे व्यक्तियों की खासियत  होती है कि ये लोगों को अपने विचारों के अनुकूल बना लेते हैं। जिनका गुरु पर्वत विकसित होता है उनमें धार्मिक भावनाएँ जरुरत से ज्यादा प्रबल रहती हैं।

जिन व्यक्तियों की हथेली में गुरु पर्वत अल्प विकसित अथवा अविकसित होता है तो उन व्यक्तियों में ऊपर बताए गुणों की कमी रहती है। अगर शारीरिक नजरिए से देखा जाए तो ऎसे व्यक्ति साधारण डील-डौल के होने के साथ स्वस्थ तथा हँस-मुख स्वभाव के होते हैं। बोलने तथा भाषण देने में ये व्यक्ति अच्छे होते हैं अथवा इन्हें वाकपटु भी कहा जा सकता है। ऎसे व्यक्ति सरल हृदय, दयालु तथा परोपकारी होते हैं। आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने की बजाय ये सम्मान तथा यश-प्राप्ति की ओर झुके होते हैं। इनमें स्वतंत्रता तथा नेतृत्व के विशेष गुण पाए जाते हैं।

अगर विपरीत लिंगी की बात की जाए तो इनके मन में उनके प्रति कोमल भावनाएँ होती हैं। सुन्दर तथा सभ्य स्त्रियों से इनके संबंध मधुर रहते हैं। यदि किसी स्त्री के हाथ में यह पर्वत विकसित अवस्था में होता है तो उनके भीतर समर्पण की भावना विशेष रूप से पाई जाती है।

यदि गुरु पर्वत का झुकाव शनि पर्वत की ओर है तब ऎसा व्यक्ति चिन्तनशील तथा अपने ही कार्यों में लगा रहने वाला होता है। ऎसे व्यक्ति को यदि जीवन में पूर्ण रूप से सफलता नहीं मिल पाती तो धीरे-धीरे निराशा की भावना उनमें घर करने लगती है। स्वभाव से ये व्यक्ति गंभीर तथा अड़ियल होते हैं। यदि किसी की हथेली में गुरु पर्वत नीचे की ओर खिसका सा हुआ है तो व्यक्ति को जीवन में कई बार बदनामी का सामना करना पड़ता है लेकिन ऎसे पर्वत वाले व्यक्ति साहित्यिक क्षेत्र में पूर्ण रूप से सफल रहते हैं।

यदि गुरु पर्वत आवश्यकता से अधिक विकसित हो तो ऎसा व्यक्ति घमंडी होता है, स्वार्थी होने के साथ स्वेच्छाचारी भी होता है। जिन व्यक्तियों के हाथ में गुरु पर्वत का अभाव होता है, उनके जीवन में आत्मसम्मान की कमी रहती है। माता-पिता का सुख उन्हें बहुत कम मिल पाता है। ऎसे व्यक्ति निम्न विचारों से संपन्न हलके स्तर के मित्रों से संबंधित रहते हैं।

यदि गुरु पर्वत का उभार सामान्यत: ठीक-ठाक सा हो तो व्यक्ति में आगे बढ़ने की भावना होती है लेकिन इनका विवाह शीघ्र हो जाता है और इनका वैवाहिक जीवन सामान्यतया सुखमय ही रहता है।

यदि किसी के हाथ की अंगुलियाँ नुकीली हों तथा गुरु पर्वत विकसित हो तो वह व्यक्ति अंधविश्वासी होता है। इसी प्रकार वर्गाकार अंगुलियों के साथ विकसित गुरु पर्वत हो तो वह एक हजार प्रकार से जीवन में निरंकुश एवं अत्याचारी बन जाता है। अगर अंगुलियाँ बहुत लंबी हों और इस पर्वत का विकास ठीक प्रकार से हुआ हो तो वह व्यक्ति अपव्ययी तथा भोगी होता है। यदि गुरु तथा शनि पर्वत बराबर उभरे हुए हों तथा लगभग एक-दूसरे में मिल गए हों तो वह व्यक्ति प्रबल भाग्यशाली होता है तथा जीवन में विशेष सफलता प्राप्त करता है। गुरु पर्वत को जीवन में अत्यधिक सहायक तथा उन्नति की ओर अग्रसर रहने वाला पर्वत भी कहा जाता है।