श्रुतदेव जी कहते हैं – राजेन्द्र ! वैशाख के शुक्ल पक्ष में जो अन्तिम तीन तिथियाँ, त्रयोादशी से पूर्णिमा तक, हैं वे बड़ी पवित्र और शुभ कारक हैं। उनका नाम “पुष्करिणी” हैं, वे सब पापों का क्षय करने वाली हैं। जो संपूर्ण वैशाख मास में स्नान करने में असमर्थ हैं, वह यदि इन तीन तिथियों में भी स्नान करें तो वैशाख मास का पूरा फल पा लेता है। पूर्वकाल में वैशाख मास की एकादशी तिथि को शुभ अमृत प्रकट हुआ। द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की। त्रयोदशी तिथि को उन श्रीहरि ने देवताओं को सुधा-पान कराया। चतुर्दशी तिथि को देव विरोधी दैत्यों का संहार किया और पूर्णिमा के दिन समस्त देवताओं को उनका साम्राज्य प्राप्त हो गया इसलिए देवताओं ने संतुष्ट होकर इन तीन तिथियों को वर दिया –
“वैशाख मास की ये तीन शुभ तिथियाँ मनुष्यों के पापों का नाश करने वाली तथा उन्हें पुत्र-पौत्रादि फल देने वाली हों। जो मनुष्य इस संपूर्ण मास में स्नान न कर सका तो वह इन तिथियों में स्नान कर लेने पर पूर्ण फल को ही पाता है। वैशाख मास में लौकिक कामनाओं का नियमन करने पर मनुष्य निश्चय ही भगवान विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है। महीने भर नियम निभाने में असमर्थ मानव यदि उक्त तीन दिन भी कामनाओं का संयम कर सके तो उतने से ही पूर्ण फल को पाकर भगवान विष्णु के धाम में आनन्द का अनुभव करता है।”
इस प्रकार वर देकर देवता अपने धाम को चले गए। अत: पुष्करिणी नाम से प्रसिद्ध अन्तिम तीन तिथियाँ पुण्यदायिनी, समस्त पाप राशि का नाश करने वाली तथा पुत्र-पौत्र को बढ़ाने वाली हैं। जो वैशाख मास में अन्तिम तीन दिन गीता का पाठ करता है, उसे प्रतिदिन अश्वमेघ-यज्ञ का फल मिलता है। जो उक्त तीनों दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करता है उसके पुण्य फल का वर्णन करने में इस भूलोक तथा स्वर्गलोक में कौन समर्थ है? पूर्णिमा को सहस्त्रनामों के द्वारा भगवान मधुसूदन को दूध से नहलाकर मनुष्य पापहीन वैकुण्ठ धाम में जाता है।
वैशाख मास में प्रतिदिन भागवत के आधे या चौथाई श्लोक का पाठ करने वाला मनुष्य ब्रह्मभाव को प्राप्त होता है। जो वैशाख के अंतिम तीन दिनों में भागवत शास्त्र का श्रवण करता है, वह जल से कमल के पत्ते की भाँति कभी पापों से लिप्त नहीं होता। उक्त तीनों दिनों के सेवन से कितने ही मनुष्यों ने देवत्व प्राप्त कर लिया, कितने ही सिद्ध हो गए और कितने ही मनुष्यों ने ब्रह्मत्व प्राप्त कर लिया। ब्रह्मज्ञान से मुक्ति होती है अथवा प्रयाग में मृत्यु होने से या वैशाख मास में नियमपूर्वक प्रात:काल जल में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए वैशाख के अन्तिम तीन दिनों में स्नान, दान और भगवत्पूजन आदि अवश्य करना चाहिए। वैशाख मास के उत्तम माहात्म्य का पूरा-पूरा वर्णन रोग-शोक से रहित जगदीश्वर भगवान नारायण के सिवा दूसरा कौन कर सकता है। तुम भी वैशाख मास में दान आदि उत्तम कर्म का अनुष्ठान करो। इससे निश्चय ही तुम्हें भोग और मोक्ष की प्राप्ति होगी।
इस प्रकार मिथिलापति जनक को उपदेश देकर श्रुतदेव जी ने उनकी अनुमति ले वहाँ से जाने का विचार किया। वस्त्र, आभूषण, गौ, भूमि, तिल और सुवर्न आदि से उनकी पूजा और वन्दना करके राजा ने उनकी परिक्रमा की। तत्पश्चात उनसे विदा हो महातेजस्वी एवं परम यशस्वी श्रुतदेव जी संतुष्ट हो प्रसन्नतापूर्वक वहाँ से अपने स्थान को गए। राजा ने वैशाख धर्म का पालन करके मोक्ष प्राप्त किया।
नारदजी कहते हैं – अम्बरीष ! यह उत्तम उपाख्यान मैंने तुम्हें सुनाया है, जो कि सब पापों का नाशक तथा सम्पूर्ण संपत्तियों को देने वाला है। इससे मनुष्य भुक्ति, मुक्ति, ज्ञान एवं मोक्ष पाता है। नारद जी का यह वचन सुनकर महायशस्वी राजा अम्बरीष मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बाह्य जगत के व्यापारों से निवृत होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया और अपने संपूर्ण वैभवों से उनकी पूजा की। तत्पश्चात उनसे विदा लेकर देवर्षि नारद जी दूसरे लोक में चले गए क्योंकि दक्ष प्रजापति के शाप से वे एक स्थान पर नहीं ठहर सकते।
राजर्षि अम्बरीष भी नारदजी के बताए हुए सब धर्मों का अनुष्ठान करके निर्गुण परब्रह्म परमात्मा में विलीन हो गए। जो इस पाप नाशक एवं पुण्यवर्द्धक उपाख्यान को सुनता या पढ़ता है वह परम गति को प्राप्त होता है। जिनके घर में यह लिखी हुई पुस्तक रहती है, उनके हाथ में मुक्ति आ जाती है फिर जो सदा इसके श्रवण में मन लगाते हैं उनके लिए तो कहना ही क्या है!