इस लेख में बंधन योग का अर्थ किसी तरह की जेल अथवा जेल जैसी यातना वाला बंधन नहीं बताया जा रहा है. यहाँ बंधन योग का अर्थ है कि कई बार मनुष्य स्वयं को हर समय किसी ना किसी बंधन में महसूस करता रहता है जिसकी वजह से वह कभी अपने विचारो को खुल कर बयान नहीं कर पाता है. कहना कुछ चाहता है लेकिन मुख से निकलता कुछ ओर ही है और जब व्यक्ति अपने मन की बात कहेगा ही नहीं तब दूसरे व्यक्ति को उसके मन के भावों में पता ही नही चल पाएगा. कोई कारण ना होते भी बस अपनी बात को कहने में ज्यादा झिझकेगा और फिर उसे अंदर ही अंदर घुटन सी महसूस होगी.
जन्म के समय जातक विशेष की कुंडली में ऎसे कुछ ग्रह योग बन जाते हैं जिनके कारण व्यक्ति खुद को कभी मुक्त नहीं समझता है. किसी का दबाव रहे या ना रहे लेकिन वह सदा खुद पर दबाव महसूस करता है. जन्म कुंडली में जब लग्न के आसपास अर्थात बारहवें और दूसरे भाव में बराबर की संख्या में(जैसे दोनों भावों में एक-एक ग्रह हों या दो-दो ग्रह हो या ज्यादा) ग्रह मौजूद हो तब जीवन भर खुद पर एक बोझ अथवा बंधन अनुभव करता है.
तीसरे तथा एकादश भाव, चौथे तथा दशम भाव अथवा पंचम तथा नवम भाव में भी बराबर संख्या में ग्रह हो तब भी व्यक्ति खुद को बंधन में महसूस करता है लेकिन इस बंधन योग का प्रभाव लग्न के बंधन से कुछ कम रहता है. यदि छठे तथा आठवें भाव में भी बराबर संख्या में ग्रह हैं तो भी व्यक्ति बंधन में बंधा अनुभव करता है. इस स्थिति में सातवाँ भाव भी बंध जाता है जिससे वैवाहिक जीवन पर भी दुष्प्रभाव देखा जा सकता है.
यदि बंधन योग में लग्न के दोनों ओर शुभ ग्रह की बजाय पाप ग्रह हैं तब यह स्थिति ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो जाती हैं क्योंकि ऎसी स्थिति में व्यक्ति अपने भावों को स्पष्ट ना कर पाने की स्थिति में क्रोध में ज्यादा रहता है. हर समय चिड़चिड़ापन उसकी आदत सी बन सकती है. ऎसी स्थिति में यदि लग्न भी पाप प्रभाव में है अथवा पीड़ित है या लग्नेश पाप प्रभाव में है या पीड़ित है तब जातक के लिए ज्यादा परेशानियाँ उत्पन्न हो सकती हैं.
यदि लग्न के दोनों ओर शुभ ग्रहों का प्रभाव है और साथ ही लग्न तथा लग्नेश भी बली अवस्था में है तब व्यक्ति बंधन तो महसूस करेगा लेकिन क्रोध की स्थिति पैदा नही होगी. ऎसी स्थिति में कई बार कुछ बातों के लिए वह मन मसोसकर रह सकता है लेकिन ये भी छोटी बातों पर ही लागू होगा. जीवन के बड़े फैसले वह देर से ही सही लेकिन ले ही लेगा.