नारद उवाच – Narad Uvach
जैगीषव्य मुनिश्रेष्ठ सर्वज्ञ सुखदायक।
आख्यातानि सुपुण्यानि श्रुतानि त्वत्प्रसादत:।।1।।
न तृप्तिमधिगच्छामि तव वागमृतेन च।
वदस्वैकं महाभाग संकटाख्यानमुत्तमम्।।2।।
इति तस्य वच: श्रुत्वा जैगीषव्योSब्रवीत्तत:।
संकष्टनाशनं स्तोत्रं श्रृणु देवर्षिसत्तम।।3।।
द्वापरे तु पुरा वृत्ते भ्रष्टराज्यो युधिष्ठिर:।
भ्रातृभि: सहितो राज्यनिर्वेद: परमं गत:।।4।।
तदानीं तु तत: काशीं पुरीं यातो महामुनि:।
मार्कण्डेय इति ख्यात: सह शिष्यैर्महायशा:।।5।।
तं दृष्ट्वा स समुत्थाय प्रणिपत्य सुपूजित:।
किमर्थं म्लानवदन एतत्त्वं मां निवेदय।।6।।
युधिष्ठिर उवाच – Yudhishthira Uvach
संकष्टं मे महत्प्राप्तमेतादृग्वदनं तत:।
एतन्निवारणोपायं किंचिद् ब्रुहि मुने मम।।7।।
मार्कण्डेय उवाच – Markandeya Uvach
आनन्दकानने देवी संकटा नाम विश्रुता।
वीरेश्वरोत्तमे भागे पूर्वं चन्द्रेश्वरस्य च।।8।।
श्रृणु नामाष्टकं तस्या: सर्वसिद्धिकरं नृणाम्।
संकटा प्रथमं नाम द्वितीयं विजया तथा।।9।।
तृतीयं कामदा प्रोक्तं चतुर्थं दु:खहारिणी।
शर्वाणी पंचमं नाम षष्ठं कात्यायनी तथा।।10।।
सप्तमं भीमनयना सर्वरोगहराSराष्टमम्।
नामाष्टकमिदं पुण्यं त्रिसंध्यं श्रद्धयाSन्वित:।।11।।
य: पठेत्पाठयेद्वापि नरो मुच्येत संकटात्।
इत्युक्त्वा तु द्विजश्रेष्ठमृषिर्वाराणसीं ययौ।।12।।
इति तस्य वच: श्रुत्वा नारदो हर्षनिर्भर:।
तत: सम्पूजितां देवीं वीरेश्वरसमन्विताम्।।13।।
भुजैस्तु दशभिर्युक्तां लोचनत्रयभूषिताम्।
मालाकमण्डलुयुतां पद्मशंखगदायुताम्।।14।।
त्रिशूलडमरूधरां खड्गचर्मविभूषिताम्।
वरदाभयहस्तां तां प्रणम्यविधिनन्दन:।।15।।
वारत्रयं गृहीत्वा तु ततो विष्णुपुरं ययौ।
एतत्स्तोत्रस्य पठनं पुत्रपौत्रविवर्धनम्।।16।।
संकष्टनाशनं चैव त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्।
गोपनीयं प्रयत्नेन महावन्ध्याप्रसूतिकृत्।।17।।
।।इति श्रीपद्ममहापुराणे संकष्टनामाष्टकं सम्पूर्णम्।।
इस स्तोत्र का पाठ पुत्र-पौत्र की वृद्धि करने वाला है. संकट का नाश करने वाला यह स्तोत्र तीनों लोकों में प्रसिद्ध है. यह महाबंध्या स्त्री को भी संतान प्राप्ति कराने वाला है. इस स्तोत्र को प्रयत्नपूर्वक गोपनीय रखना चाहिए अर्थात इस स्तोत्र के पाठ करने की बात किसी अन्य व्यक्ति को नहीं बतानी चाहिए.