शनि एक राशि में ढ़ाई साल तक रहता है और इन ढ़ाई सालों में शनि 9 नक्षत्र चरण पार करता है. विभिन्न नक्षत्रों में शनि भ्रमण के भिन्न-भिन्न फल शनि प्रदान करता है. कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे भी होते हैं. इस लेख के माध्यम से शनि के विभिन्न नक्षत्रों में भ्रमण के फलों को बताया जाएगा.
- जब शनि का गोचर श्रवण, स्वाति, हस्त, आर्द्रा, भरणी तथा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रों में होता है तब सुभिक्ष, आरोग्य तथा अन्न की बढ़ोतरी होती है.
- जब शनि का गोचर शतभिषा, आश्लेषा अथवा ज्येष्ठा में से किसी भी एक नक्षत्र में हो तब सुभिक्ष होता है.
- यदि शनि मूल नक्षत्र से भ्रमण कर रहा हो तब अकाल, आतंकवाद तथा अनावृष्टि अधिक होती है.
- यदि शनि उत्तराभाद्रपद अथवा रेवती नक्षत्र से गुजर रहा हो तब जनता में भय तथा व्याकुलता रहती है.
शनि के नराकार अर्थात मनुष्य जैसे आकार का फल
यदि किसी व्यक्ति को गोचर के शनि के फल व्यक्तिगत रुप से अपने लिए ही जानना है कि गोचर का शनि उसे भिन्न-भिन्न नक्षत्रों में क्या प्रदान करेगा तब उसके लिए नराकार अर्थात एक काल्पनिक नर के आकार को मस्तिष्क में बिठाकर उसमें सभी 27 नक्षत्रों को बिठाना होगा जिसकी गणना को विस्तार से बताया जाएगा. सबसे पहले आप यह देखें कि आपका जन्म नक्षत्र क्या है और मनुष्य आकार को मन में सोचकर अपने जन्म नक्षत्र को सिर में बिठा लें और उसके बाद बाकी के नक्षत्रों को क्रम से गणनानुसार स्थापित कर लें.
आपका जन्म नक्षत्र सिर में उससे अगले तीन नक्षत्र आपके मुख पर बिठा लें. फिर गुह्य(Secret) स्थान पर उससे अगले दो नक्षत्र स्थापित करें. अगले दो नक्षत्र अपने नेत्रों में स्थापित करें. उससे अगले पांच नक्षत्रों को आप अपने हृदय में बिठा लें. अगले चार नक्षत्र आप अपने वामहस्त(Left Hand) पर स्थापित करें. उससे अगले तीन नक्षत्र आप वामपाद(Left Foot) पर स्थापित करें. फिर दक्षिण हाथ(Right Hand) में चार नक्षत्र स्थापित करें और दक्षिण पाद(Right Foot) पर तीन नक्षत्र स्थापित करें.
सभी नक्षत्रों को मनुष्य आकार में स्थापित करने के बाद अब आप यह देखें कि वर्तमान समय में शनि जिस नक्षत्र पर भ्रमण कर रहे हैं वह आपके शरीर के कौन से अंग पर स्थापित है. शरीर के विभिन्न भागों में स्थापित नक्षत्रों से शनि के भ्रमण का फल निम्नलिखित होता है :-
- यदि शनि सिर पर स्थापित नक्षत्र से भ्रमण कर रहा है तब स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ व्यक्ति को घेरे रह सकती है. (रोगकारक)
- मुख पर स्थापित नक्षत्रों से शनि का भ्रमण लाभ देता है. (लाभप्रद)
- यदि गुह्य स्थान पर स्थापित नक्षत्र से शनि का गोचर हो रहा है तब व्यक्ति को हानि का सामना करना पड़ सकता है. (हानिप्रद)
- यदि नेत्रों में स्थापित नक्षत्र से शनि महाराज गुजर रहे हों तब भी लाभ प्राप्त होता है. (लाभदायक)
- हृदय पर स्थापित नक्षत्रों से यदि शनि का भ्रमण हो रहा है तब व्यक्ति को सुख की प्राप्ति होती है. (सुखदायक)
- वामहस्त(Left Hand) पर स्थापित नक्षत्रों से शनि का भ्रमण व्यक्ति को बंधन देता है, भले ही यह बंधन शारीरिक ना होकर मानसिक ही क्यूँ ना हो. (बंधनकारी)
- वामपाद(Left Foot) पर स्थापित नक्षत्रों से शनि का भ्रमण हो रहा हो तब व्यक्ति को अत्यधिक परिश्रम से गुजरना पड़ता है. (दुखदायी)
- यदि दक्षिणपाद(Right Foot) में स्थापित नक्षत्रों से शनि का गोचर हो रहा है तब व्यक्ति इच्छित यात्राएँ करता है. (मनोवांछित यात्राएँ)
- यदि दाहिने हाथ में स्थित नक्षत्रों से शनि गुजरता है तब व्यक्ति को अर्थलाभ होता है. (धनलाभ)
इसके अतिरिक्त गोचर के वक्री शनि का फल अशुभ कहा गया है. यदि शनि का भ्रमण सम गति से हो रहा है तब वह सम फल प्रदान करता अर्थात ना बुरे और ना ही अच्छे, जो चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा. यदि शनि अपनी सामान्य गति से अधिक चलना आरंभ कर देते हैं तब शुभ फल प्रदान करने वाले कहे गए हैं. लेकिन पाठकगण गोचर के शनि फल के साथ-साथ जन्म कुंडली की दशा/अंतर्दशा का आंकलन भी जरुर करें.