ग्रहों की उच्च-नीच राशियाँ

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सभी ग्रहों की अपनी उच्च व नीच राशियाँ हैं और ग्रहों की अपनी मूलत्रिकोण राशि भी होती है. किसी भी ग्रह की सबसे उत्तम स्थिति उसका अपनी उच्च राशि में होना माना गया है, उसके बाद मूलत्रिकोण राशि में होना उच्च राशि से कुछ कम प्रभाव देता है. यदि ग्रह स्वराशि का है तब मूल त्रिकोण से कुछ कम प्रभावी होगा लेकिन ग्रह की स्थिति तब भी शुभ ही मानी जाती है. इसके बाद मित्र राशि में भी स्थिति ठीक ही कही गई है. यदि सम राशि में है तब ना अच्छा और ना ही बुरा होता है. शत्रु राशि में ग्रह की स्थिति शुभ नहीं है क्योंकि यहां ग्रह क्षोभित अवस्था का माना गया है जो हमेशा क्षोभ अर्थात क्रोध में ही रहता है क्योंकि शत्रु के साथ कोई कैसे खुश रह सकता है भला! यही हाल ग्रहों का भी है कि वह शत्रु राशि में होते हुए अपने पूरे फल नहीं दे पाते हैं. नीच राशि ग्रह की सबसे अशुभ अवस्था कही गई है.

ग्रह उच्च राशि मूलत्रिकोण राशि स्वराशि नीच राशि
सूर्य मेष 10 डिग्री सिंह सिंह तुला 10 डिग्री
चंद्रमा वृष 3 डिग्री वृषभ कर्क वृश्चिक 3 डिग्री
मंगल मकर 28 डिग्री मेष मेष व वृश्चिक कर्क 28 डिग्री
बुध कन्या 15 डिग्री कन्या 15 से 20 डिग्री मिथुन व कन्या मीन 15 डिग्री
गुरु कर्क 5 डिग्री धनु धनु व मीन मकर 5 डिग्री
शुक्र मीन 27 डिग्री तुला वृष व तुला कन्या 27 डिग्री
शनि तुला 20 डिग्री कुंभ मकर व कुंभ मेष 20 डिग्री

 

राहु/केतु की उच्च – नीच राशियों को लेकर मतभेद हैं. कई विद्वानों के अनुसार राहु की उच्च राशि वृष है और केतु की वृश्चिक राशि उच्च है लेकिन मतान्तर से राहु की उच्च राशि मिथुन भी मानी गई है और केतु की उच्च राशि धनु मानी गई है.

 

इसी तरह से राहु की नीच राशि वृश्चिक व धनु बन जाएगी क्योंकि ग्रह जिस राशि में उच्चता पाते हैं ठीक 180 अंश की दूरी पर वह नीच हो जाते हैं. केतु की नीच राशि वृष व मिथुन बन जाएगी. इसके अलावा राहु को कन्या व कुंभ में भी शुभ माना गया है. अगर पराशर का मत देखें तो राहु कर्क राशि में भी बुरे फल प्रदान नहीं करता है. वैसे तो राहु/केतु का कोई भौतिक अस्तित्व नही हैं फिर भी उपरोक्त कुछ राशियों में वह बुरा फल नहीं देते हैं.