गरुड़ पुराण – बारहवाँ अध्याय

एकादशाहकृत्य-निरुपण, मृत-शय्यादान, गोदान, घटदान, अष्टमहादान, वृषोत्सर्ग, मध्यमषोडशी, उत्तमषोडशी एवं नारायणबलि   गरुड़ उवाच गरुड़जी ने कहा – हे सुरेश्वर !

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मुण्डमाला तन्त्रोक्त महाविद्या स्तोत्रम्

ऊँ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी। नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि।। शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे। प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।। जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।

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