पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, जन्म कुंडली में पाप प्रभाव में होने से कई अशुभ परिणामों को जन्म देता है. इस नक्षत्र के कारण उपजे अनिष्ट प्रभावों को मिटाने के लिए भगवान शिव की पूजा को श्रेष्ठकर बताया गया है. बिना किसी लोभ अथवा लालच के व्यक्ति को नि:स्वार्थ भाव से अपने कर्म को प्रधानता देनी चाहिए जिससे इस नक्षत्र के दुष्परिणाम से बचा जा सकता है. मोह तथा क्रोध का त्याग करके अपने कर्तव्यों के पालन को प्रमुखता देने से भी इस नक्षत्र के शुभ फलों में वृद्धि होती है.
इस नक्षत्र के बीज मंत्र का जाप 108 बार करने से भी इस नक्षत्र को बल प्रदान किया जा सकता है. जब चंद्रमा का गोचर पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र से हो रहा हो तब इन बीज मंत्र का जाप करना चाहिए या भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष से इन बीज मंत्र का जप शुरु करना चाहिए, बीज मंत्र है :- “ऊँ शं” और “ऊँ वम्”. दोनों मंत्र अथवा दोनों में से किसी एक का जाप 108 बार करना चाहिए.
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र जिस व्यक्ति का जन्म नक्षत्र हो उसे काले रंग के उपयोग से बचना चाहिए और चमड़े से बने कपड़ों का भी उपयोग नहीं करना चाहिए. इस नक्षत्र के शुभ परिणामों में वृद्धि के लिए इसके वैदिक मंत्र का 108 बार जाप करते हुए होम करना चाहिए. यदि बृहस्पतिवार के दिन यह होम तथा जाप किया जाए तो और शुभ फल प्राप्त होगें. होम में भृंगराज की लकड़ी तथा क्षीराज्य शर्करा का उपयोग करना चाहिए. यदि होम करना संभव ना हो सके तब पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के दिन से इस नक्षत्र के केवल वैदिक मंत्र का जाप आरंभ करना चाहिए, मंत्र है :-
ऊँ उतनोsहिर्बुध्न्य श्रृणोत्वज एकपात्पृथिवी समुद्र: ।
विश्वेदेवाSऋतावृधो हुवानास्तुता मन्त्रा: कविशस्ता अयन्तु ।।
ऊँ अजैकपदे नम: ।।
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