अगर किसी जातक का जन्म नक्षत्र पुनर्वसु है और वह अशुभ प्रभाव में है या बलहीन है या पाप प्रभाव में पीड़ित है तब इस नक्षत्र को बल प्रदान करने के लिए कुछ उपाय करना आवश्यक हो जाता है. यह उपाय बहुत ही सरल हैं जिन्हें हर कोई व्यक्ति कर सकता है. इस नक्षत्र के शुभाशुभ बल को बढ़ाने के लिए व्यक्ति सरस्वती, माता अदिति, लक्ष्मी, दुर्गा अथवा माता काली की उपासना कर सकता है, इससे शुभ फलों में वृद्धि अवश्य होगी.
जब चंद्रमा का गोचर पुनर्वसु नक्षत्र से हो रहा हो तब उस समय केवल “ऊँ” शब्द की एक माला का जाप करने से हर प्रकार के कष्ट, बाधाएँ, क्लेश, दु:ख तथा दर्द मिट जाते हैं और व्यक्ति जीवन में वृद्धि की ओर अग्रसर होता है, तरक्की करता है, सुख पाता है, समृद्धि पाता है तथा मान-सम्मान भी पाता है. रँगों के द्वारा भी इस नक्षत्र के बल में वृद्धि की जा सकती है जिसके लिए सफेद, पीला व हरा रँग उपयोग किया जा सकता है.
इस नक्षत्र की पूजा करके भी इसके अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है. हल्दी, धूप, केसर, पुष्प, आठ प्रकार की सुगंध, केसर की धूप, शुद्ध घी का दीपक और पीले रँग के नैवेद्य को घी से भरकर इस नक्षत्र की पूजा की जाती है, जिससे बुरे प्रभाव में कमी आती है. जिस दिन पुनर्वसु नक्षत्र पड़ रहा हो उस दिन “अर्क” के पौधे की जड़ को ताबीज के रुप में धारण करना चाहिए.
इस नक्षत्र के शुभ फल में वृद्धि के लिए पाँच कन्याओं को भोजन कराना चाहिए. कन्याओं को उपहार स्वरुप सोना, कपड़े, कमल का फूल और पैसा देना चाहिए. उन्हें घी तथा पीले चावल भी देने चाहिए. पीले चावल तथा घी को मिलाकर होम करना चाहिए और पुनर्वसु नक्षत्र के वैदिक मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए. यदि आप होम नहीं कर सकते तब केवल एक माला इस नक्षत्र के वैदिक मंत्र की करें जिससे इस नक्षत्र का अनिष्टकारी प्रभाव खतम होगा. इस नक्षत्र के लिए वैदिक मंत्र है :-
ऊँ अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता सपिता सुपुत्र: विश्वेदेवा:
अदिति: पच्चजनाsअदितिर्जात मदितिर्जनित्वम् ऊँ अदित्यै नम: ।।
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