बुधवार व्रत

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बुधवार का व्रत ग्रह शांति तथा सभी इच्छाओं की पूर्त्ति के लिए रखा जाता है. इस व्रत में एक समय के भोजन का विधान है. भोजन में हरी सब्जियों का उपयोग श्रेष्ठ माना गया है. बुधवार की कथा सुननी अथवा कहनी चाहिए. बुधवार की कथा को बीच ही में कभी नहीं छोड़ना चाहिए. कथा समाप्ति पर बुधवार की आरती कर के प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.

बुधवार व्रत कथा – Budhwar Vrat Katha

एक समय की बात है कि एक व्यक्ति अपनी पत्नी को लेने अपने ससुराल गया. वह व्यक्ति कुछ समय अपने ससुराल में रहा और एक दिन अपनी पत्नी को साथ ले जाने की बात की लेकिन ससुराल के सभी लोग कहने लगे कि आज बुधवार का दिन है तो आज के दिन यात्रा नहीं करते हैं. वह व्यक्ति जिद्दी था और अपनी जिद के कारण अपनी पत्नी को अपने साथ विदा करा कर अपने घर की ओर चल पड़ा.

अपने नगर की ओर जाते समय रास्ते में उसकी पत्नी ने कहा कि मुझे प्यास लगी है. व्यक्ति ने रथ रोका और पत्नी के लिए पानी लेने चला गया. जब वह पानी लेकर वापिस आया तो उसकी आँखे फटी रह गई क्योंकि ठीक उसके जैसा ही एक व्यक्ति उसकी पत्नी के साथ बैठा है और वह कह रहा है कि वह स्त्री उसकी पत्नी है. इस बात को लेकर दोनों आपस में झगड़ने लगे और दोनों ही कह रहे थे कि यह मेरी पत्नी है जिसे वह अपनी ससुराल से विदा कराकर ला रहा है.

दोनों व्यक्तियों के झगड़े का कोई हल नहीं था और वह स्त्री भी समझ नहीं पा रही थी कि दोनों में असल में कौन उसका पति है क्योंकि दोनों ही एक शक्ल के थे. कुछ समय में ही राज्य के सिपाही वहाँ आते हैं और स्त्री से पूछते हैं कि तुम्हारा क्या लोटे वाला तुम्हारा पति है? लेकिन स्त्री बता ही नहीं पाई कि उसका असली पति कौन है? वह शांत ही रहती है.

अब उस व्यक्ति की समझ में कुछ नहीं आ रहा था और मन ही मन में भगवान से प्रार्थना करने लगा कि हे परमेश्वर! यह क्या लीला है आपकी जिससे सच्चा व्यक्ति झूठा बन गया है. उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे मूर्ख! आज बुधवार के दिन तुझे गमन ही नहीं करना चाहिए था. तूने किसी की बात ही नहीं मानी इसलिए भगवान बुधदेव ने यह लीला रची. अब व्यक्ति ने बुधदेव से प्रार्थना की और अपनी इस मूर्खतापूर्ण गलती के लिए क्षमा याचना की. अब बुधदेव महाराज अन्तर्ध्यान हो गए.

वह अपनी पत्नी को अब घर ले आता है और दोनों पति-पत्नी नियमपूर्वक बुधवार का व्रत करना आरंभ कर देते हैं. जो व्यक्ति बुधवार के दिन इस कथा को पढ़ता अथवा सुनता है उसे बुधवार के दिन यात्रा करने का दोष नहीं लगता है. उसे सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है.

बुधवार की आरती – Budhwar Ki Arti

आरती युगलकिशोर की कीजै। तन मन धन न्यौछावर कीजै॥

गौरश्याम मुख निरखन लीजै। हरि का रूप नयन भर पीजै॥

रवि शशि कोटि बदन की शोभा। ताहि निरखि मेरो मन लोभा॥

ओढ़े नील पीत पट सारी। कुजबिहारी गिरिवरधारी॥

फूलन सेज फूल की माला। रत्न सिंहासन बैठे नन्दलाला॥

कंचन थार कपूर की बाती। हरि आए निर्मल भई छाती॥

श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी। आरती करें सकल नर नारी॥

नन्दनन्दन बृजभान किशोरी। परमानन्द स्वामी अविचल जोरी॥