सभी प्रकार के सुखों को पाने, रक्त विकार से मुक्ति, सरकारी सम्मान पाने के लिए और पुत्र की प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत श्रेष्ठ है. इस व्रत में संध्या समय में मीठा भोजन किया जाता है और गेहूँ तथा गुड़ का उपयोग उत्तम कहा गया है. केवल एक समय का ही भोजन करना चाहिए. वैसे तो इस व्रत को अपनी इच्छानुसार जब तक चाहे रख सकते हैं लेकिन जो ज्यादा लंबे समय तक नहीं रख सकते तब इक्कीस मंगलवार तक व्रत रखना चाहिए.
व्रत रखने पर पूजन के समय हनुमान जी को लाल पुष्प अर्पित किए जाते हैं और लाल वस्त्र चढ़ाए जाते हैं. वस्त्र व्यक्ति अपनी सामर्थ्यानुसार दे सकता है और यदि किसी की सामर्थ्य नहीं है तब लाल पुष्प अर्पित करने चाहिए. हनुमान जी की पूजा कर के मंगलवार की कथा सुननी अथवा कहनी चाहिए. इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के समस्त दोषों का नाश होता है.
मंगलवार व्रत कथा – Mangalwar Vrat Katha
एक ब्राह्मण दंपत्ति था जिनकी कोई संतान नहीं थी और इसी दुख से वह दोनो दुखी रहते थे. एक बार ब्राह्मण हनुमान जी की पूजा के लिए वन में चला गया. वन में वह पूजा करता और हनुमान जी के सामने एक पुत्र पाने की कामना भी करता. इधर घर में ब्राह्मण की पत्नी भी पुत्र पाने के लिए मंगलवार का व्रत किया करती थी. हर मंगलवार को वह व्रत रखकर वह व्रत का भोजन बनाती और हनुमान जी को भोग लगाकर फिर बाद में स्वयं भोजन करती थी.
एक बार की बात है कि ब्राह्मणी किसी और व्रत के आने पर उसका व्रत करती है. दूसरे व्रत के कारण वह उस दिन भोजन ना बना सकी और ना ही उसने हनुमान जी को भोग ही लगाया. अब वह मन में यह प्रण कर के सोई कि अगले मंगलवार हनुमान जी को भोग लगाकर ही वह अन्न ग्रहण करेगी अन्यथा नहीं. अब वह बिना कुछ खाए-पीए छ्: दिन तक भूखी प्यासी पड़ी रही. मंगलवार के दिन तो वह बेहोश ही हो गई. हनुमान जी उसकी लगन व निष्ठा को देख अत्यधिक प्रसन्न हो गए.
हनुमान जी ने प्रसन्न होकर ब्राह्मणी को दर्शन दिए और कहा कि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ. तुम्हारी भक्ति को देखते हुए मैं तुम्हे एक सुंदर बालक देता हूँ जो तुम्हारी बहुत सेवा करेगा. हनुमान जी मंगलवार को उसे बाल रुप में दर्शन देकर अन्तर्ध्यान हो गए. सुंदर बालक पाने पर ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई. ब्राह्मणी ने उस बालक का नाम मंगल रखा क्योंकि मंगलवार के व्रत रखने पर ही वह उसे मिला था.
कुछ समय बाद ब्राह्मण भी वन से वापिस घर लौट आता है और घर में सुंदर बालक को खेलते देख वह ब्राहमणी से पूछता है कि यह बालक कौन है? ब्राह्मणी कहती है कि मैने मंगलवार के व्रत रखे थे जिससे प्रसन्न होकर हनुमान जी ने इस बालक को वरदान स्वरुप मुझे दिया है. ब्राह्मणी की बातों पर ब्राह्मण को जरा भी विश्वास नहीं होता है. वह मन में यही विचार करता है कि उसकी पत्नी ने उससे छल किया है और कुलटा व्याभिचारिणी अपनी कलुषता छिपाने के लिए यह अब बहाने बना रही है.
एक दिन ब्राहमण कुएँ पर पानी भरने गया तो ब्राह्मणी ने कहा कि मंगल को भी साथ ले जाओ. वह मंगल को साथ तो ले गया लेकिन कुएँ से पानी भरने के बाद मंगल को कुएँ में फेंक घर चला आया. उसकी पत्नी ने पूछा कि मंगल कहाँ है? उसी समय मंगल मुस्कुराता हुआ आया और बोला कि माँ मैं यहाँ हूँ. उसे देख ब्राह्मण को बहुत आश्चर्य हुआ. रात्रि में हनुमान जी ब्राह्मण के सपने में आते हैं और कहते है कि यह बालक मैंने दिया है तो तुम अपनी पत्नी को कुलटा क्यों कहते हो? ब्राह्मण यह सुन बहुत खुश हुआ और उसके बाद पति-पत्नी दोनों मिलकर मंगलवार का व्रत रखते हैं.
व्रत को रख वह सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे. जो भी व्यक्ति मंगलवार का व्रत रखकर इसकी कथा को पढ़ता या सुनता है तथा नियम से व्रत करता है तो हनुमान जी की कृपा से उसके सारे कष्ट दूर होते हैं. वह समस्त सुखों को पाता है.
मंगलवार तथा मंगलिया की कहानी – Story Of Mangalwar And Mangaliya
प्राचीन समय में एक बुढ़िया थी जो मंगल देवता को अपना इष्ट देवता मानती थी. सदैव मंगल का व्रत रखती तथा मंगलदेव का पूजन करती. बुढ़िया का एक पुत्र भी था जिसका जन्म मंगलवार के दिन हुआ था जिससे वह उसे मंगलिया के नाम से पुकारती थी. मंगलदेव के दिन वह ना तो वह धरती खोदती थी और ना ही वह उस दिन घर को लीपती थी.
एक बार मंगल देवता बुढ़िया की श्रद्धा व भक्ति की परीक्षा लेने उसके घर में साधु का वेष बनाकर आ गए और दरवाजे पर आवाज लगाई. बुढ़िया ने कहा कि महाराज ! क्या आज्ञा है? साधु वेष में मंगलदेव जी ने कहा कि बहुत भूख लगी है, भोजन बना दे इसके लिए तू थोड़ी सी धरती लीप देगी तो तेरा पुण्य होगा! बुढ़िया ने साधु की बात सुन कहा कि मैं आज मंगलवार की व्रती हूँ इसलिए मैं चौका नहीं लगा सकती लेकिन अगर आप कहें तो मैं जल का छिड़काव कर चौका लगा दूँ? उस पर भोजन बना दूँगी. साधु ने कहा कि मैं तो केवल गोबर से लीपे चौके पर ही भोजन बनाता हूँ.
बुढ़िया ने साधु को बहुत कहा कि धरती लीपने के अलावा आप जो भी कुछ कहेंगे मैं सब करने को तैयार हूँ. साधु ने कहा कि तुम सोच समझकर यह बात कहो क्योंकि फिर जो कुछ भी मैं कहूँगा वह बात तुम्हें पूरी करनी होगी. बुढ़िया ने फिर कहा कि हाँ महाराज धरती लीपने के अलावा जो भी आज्ञा देगें वह मैं पूरी करुंगी और बुढ़िया ने ऎसे तीन वचन साधु को दे दिए. उसके बाद साधु ने कहा कि तू अपने लड़के को बुलाकर उसे औँधा लिटा दे, मैं उसकी पीठ पर भोजन बनाऊँगा. साधु की बात सुन बुढ़िया अब चुप हो गई तब साधु ने फिर कहा कि बुला ले लड़के को, अब किस बात के लिए सोच विचार करना! बुढ़िया मंगलिया, मंगलिया कहकर लड़के को बुलाने लगी, कुछ ही देर बाद लड़का आ गया. बुढ़िया ने कहा कि जा बेटे तुझे बाबाजी बुला रहे हैं.
लड़के ने साधु के पास जाकर पूछा कि क्या आज्ञा है महाराज! साधु ने कहा कि जाओ अपनी माता को बुलाकर लाओ. माता आई तो साधु ने कहा कि तू ही इसे लिटा दे. बुढ़िया ने मंगलदेव का ध्यान करते हुए उसे औँधा लिटाकर उसकी पीठ पर अंगीठी रख दी और कहा कि महाराज आपको जो कुछ भी करना है कीजिए, मैं तो जाकर अपना काम करती हूँ. साधु ने लड़के की पीठ पर रखी अंगीठी में आग जलाई और उस पर भोजन बनाया. जब सारा भोजन बन चुका तो साधु ने बुढ़िया से कहा कि अब अपने लड़के को बुलाओ, वह भी आकर भोग ले जाए.
साधु की बात सुनकर बुढ़िया ने कहा कि यह कैसी अटपटी बात है जो आप कर रहे है कि उसकी पीठ पर आपने आग जलाई और अब उसी को भोग के लिए बुला रहे हैं, क्या यह संभव है कि उसकी पीठ पर जलती अंगीठी रखने पर भी वह जीवित रहा होगा? बुढ़िया ने फिर कहा कि आप मुझे मेरे बेटे का स्मरण ना कराएँ और भोग लगाकर जहाँ जाना हो वहाँ चले जाइए. साधु के बार-बार कहने पर बुढ़िया ने जैसे ही मंगलिया कहकर आवाज लगाई वैसे ही एक ओर से दौड़ता हुआ वह आ गया. साधु ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा कि माई तेरा व्रत सफल हो गया है. तेरे मन में दया के साथ अपने इष्ट देव में अटल श्रद्धा भी है. इसी कारण तुम्हे जीवन में कभी कोई कष्ट नहीं पहुंचेगा.
मंगलवार व्रत की आरती – Arti Of Mangalwar Fast
आरती कीजै हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे | रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई | संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
दे बीरा रघुनाथ पठाये | लंका जाये सीय सुधि लाये ॥
लंका-सो कोट समुद्र-सी खाई | जात पवनसुत बार न लाई ॥
लंका जारि असुर संहारे | सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे | आनि संजीवन प्रान उबारे ॥
पैठि पताल तोरि जम-कारे । अहिरावन की भुजा उखारे ॥
बायें भुजा असुर दल मारे | दहिने भुजा संत जन तारे ॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे | जै जै जै हनुमान उचारे ॥
कचंन थाल कपूर लौ छाई | आरती करत अंजना माई ॥
जो हनुमान जी की आरती गावै | बसहि बैकुंठ परम पद पावै ॥
लंका विध्वंश किये रघुराई | तुलसीदास स्वामी किरति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की | दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥