तारा भोजन की कथा

Posted by

borosil-small-brass-akhand-diya-medium_ae3df0c489bea03356f7393b848f640f

किसी नगर में साहूकार था और उसकी एक बहू तारा भोजन करती थी. एक दिन उसने अपनी सास को कहानी सुनने को कहा तो सास ने मना कर दिया और कहा कि मुझे अभी अपनी पूजा करनी है. उसने फिर अपनी जेठानी से कहा कि आप मेरी कहानी सुन लो? उसने भी मना करते हुए कहा कि मुझे तो अभी खाना बनाना है. उसने फिर अपनी देवरानी से कहानी सुनने को कहा तो उसने भी बहाना बना दिया कि ब़च्चो को देखना है. उसने फिर अपनी ननद को कहानी सुनने के लिए कहा तो उसने भी मना कर दिया कि मेरे ससुराल से मेरा बुलावा आ गया है और मुझे जाने की तैयारी करनी है.

वह राजा के पास भी गई कि मेरी कहानी आप ही सुन लो तो राजा ने कहा कि मुझे तो व्यापार देखना है, कहानी का समय नहीं है. उसकी यह मनोदशा देखकर भगवान उसके लिए स्वर्ग से विमान भेजते हैं. स्वर्ग से विमान आया देख उसकी सास भी भागकर जाने के लिए आती है लेकिन बहू मना कर देती है कि आपको तो पूजा करनी है फिर जेठानी आती है तब वह कहती है कि आप कैसे चलोगी? आपको तो खाना बनाना है. देवरानी आती है तो उसको भी वह मना कर देती है कि तुम अपने बच्चो का ख्याल रखो. ननद आती है तो वह कहती है कि तुम्हें तो ससुराल जाने की तैयारी करनी है सो तुम वह करो.

राजा जी आते हैं कि मैं चलता हूँ तुम्हारे साथ लेकिन बहू कहती है कि तुम्हें तो कारोबार संभालना है तो उसे संभालो. आखिर में पड़ोसन आती है और कहती है कि बहन मैं तुम्हारे साथ चलूं? तब बहू कहती है हाँ! तुम मेरे साथ चलो क्योंकि एक तुम ही तो हो जिसने कार्तिक के पूरे माह मेरी कहानी सुनी है. दोनो विमान में बैठकर स्वर्ग जाने लगते हैं तभी रास्ते में ही बहू को अभिमान हो जाता है कि मैने कार्तिक के पूरे माह व्रत किया और कहानी कही इसलिए मुझे स्वर्ग का वास मिल रहा है लेकिन मेरी पड़ोसन ने तो कहानी केवल सुनी है, व्रत नहीं किया फिर भी मेरी वजह से इसे भी स्वर्ग का वास मिल रहा है.

बहू यह विचार मन में सोचते जा रही थी कि अचानक भगवान ने वहीं से उसे विमान से नीचे फेंक दिया. उसने पूछा कि भगवान मेरा अपराध तो बता दीजिए कि आपने ऎसा क्यूँ किया? भगवान बोले कि तुझे अभिमान हो गया है इसलिए तू यही धरती पर रह. अब तू आने वाले तीन साल तक तारा भोजन व्रत करेगी तभी तुझे स्वर्ग की प्राप्ति होगी.

 

तारा भोजन की दूसरी कथा

एक राजा था और उसकी बेटी तारा भोजन करती थी. उसने अपने पिता से कहा कि पिताजी मुझे लाख तारे बनवा दो, मैं दान करुंगी. राजा ने सुनार को बुलाया और कहा कि मेरी बेटी तारा भोजन करती है तुम नौ लाख तारे बना दो. सुनार सूखने लगा तो उसकी पत्नी ने पूछा कि तुम उदास क्यों रहते हो? उसने कहा – राजा ने नौ लाख तारे बनाने को कहा है, मैं कैसे बनाऊँ? मुझे तो तारे बनाने आते ही नहीं! राजा की बात है, अगर नहीं बनाए तो वह मुझे कोल्हू में पिलवा देगें. उसकी पत्नी ने कहा – इसमें परेशान होने की क्या बात है? गोल सा पतरा काट कर कलिया काट देना, राजा ले जाएगा.

अपनी पत्नी के कहे अनुसार सुनार ने तारे बना दिए और राजा उन्हें ले गया. राजा की लड़की ने नौ लाख तारे और बहुत सा दान दिया. भगवान का सिंहासन डोलने लगा, भगवान बोले – देखो मेरे नेम व्रत पर कौन है? तीन कूट देखा तो कोई नहीं था, चौथे कूट देखा तो राजा की लड़की तारा भोजन कर रही है. भगवान ने कहा कि उसे ले आओ, उसने व्रत किए हैं. भगवान के दूतों ने लड़की से कहा – चलो, तुम्हें भगवान ने बुलाया है. उसने कहा कि मैं ऎसे नहीं जाऊँगी, मैं तो सारी प्रजा को, उस सुनार को जिसने मेरे लिए तारे बनाए, जिसने कहानी सुनी, सबको लेकर जाऊँगी.

लड़की की बात के सामने भगवान को झुकना पड़ा और भगवान के दूत उसके लिए बड़ा सा विमान लाए कि चलो. वह कहने लगी कि हाँ! अब मैं चल पड़ूंगी और सभी को विमान में बिठाकर वह चल पड़े. रास्ते में राजा की बेटी को अपने ऊपर घमंड हो गया कि यदि मैं तारा भोजन व्रत नहीं करती तो सबको स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती. लड़की के ऎसा सोचते ही दूत ने उसे बीच रास्ते में ही नीचे उतार दिया. दूत जब भगवान के पास पहुँचे तो भगवान बोले कि इन सबमें तारा भोजन करने वाली लड़की कौन सी है? दूत बोले कि उसे अपने ऊपर घमंड हो गया था इसलिए हम उसे बीच रास्ते में ही छोड़ आए. भगवान बोले कि नहीं – उसे वापिस लेकर आओ. लड़की ने सात बार क्षमा याचना की – क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा, क्षमा करो भगवन!

इस कहानी को कहने अथवा सुनने के बाद कहना चाहिए कि जैसे राजा की लड़की को भगवान ने क्षमा दान देकर स्वर्गलोक प्रदान किया, वैसा स्वर्ग सबको प्राप्त हो.