शास्त्रानुसार माँ दुर्गा के नौ रुप कहे गए हैं और नवरात्र के प्रत्येक दिन माँ का ही एक रुप होता है. माता के इन रुपों के पीछे क्या कहानी हैं उसका वर्णन इस लेख के द्वारा पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है.
महाकाली – Mahakali
प्राचीन समय की बात है संसार में प्रलय आ गई और चारों ओर पानी नजर आने लगा. उस समय भगवान विष्णु की नाभि से कमल की उत्त्पत्ति हुई. उस कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई. विष्णु जी के कानों से कुछ मैल भी निकला था जिससे मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस भी पैदा हो गए. मधु और कैटभ, ब्रह्मा जी को देख उन्हें अपना भोजन बनाने के लिए दौड़े. ब्रह्मा जी ने भय के मारे विष्णु जी स्तुति करनी आरंभ की. ब्रह्माजी की स्तुति से विष्णु भगवान की आँख खुल गई और उनके नेत्रों में वास करने वाली महामाया वहाँ से लोप हो गई. विष्णु जी के जागते ही मधु-कैटभ उनसे युद्ध करने लगे.
शास्त्रो के अनुसार यह युद्ध पाँच हजार वर्षों तक चला था. अंत में महामाया ने महाकाली का रुप धारण किया और दोनों राक्षसों की बुद्धि को बदल दिया. ऎसा होने पर दोनों असुर भगवान विष्णु से कहने लगे कि हम तुम्हारे युद्ध कौशल से बहुत प्रसन्न है. तुम जो चाहो वह वर माँग सकते हो. भगवान विष्णु बोले कि यदि तुम कुछ देना ही चाहते हो तो यह वर दो कि असुरों का नाश हो जाए. उन दोनों ने तथास्तु कहा और उन महाबली दैत्यों का नाश हो गया.
महालक्ष्मी – Mahalakshmi
प्राचीन समय में महिषासुर नाम का एक दैत्य था. उसने अपने बल से सभी राजाओं को परास्त कर पृथ्वी और पाताल लोक पर अपना अधिकार कर लिया था. अब वह स्वर्ग पर अधिकार चाहता था तो उसने देवताओं पर चढ़ाई कर दी. देवताओं ने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु तथा शिवजी से प्रार्थना की. उनकी प्रार्थना सुनकर दोनों के शरीर से एक तेज पुंज निकला और उसने महालक्ष्मी का रुप धारण किया. इन महालक्ष्मी ने महिषासुर का अंत किया और देवताओं को दैत्यों के कष्ट से मुक्ति दिलाई.
चामुण्डा देवी – Chamunda Devi
बहुत पहले संसार में दो राक्षसों की उत्पत्ति हुई जिनका नाम शुम्भ व निशुम्भ था. उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर पृथ्वी व पाताल लोक के सभी राजाओं को परास्त कर दिया. अब वह दोनों स्वर्ग पर चढ़ाई करने चल दिए. देवताओं ने भगवान विष्णु को याद किया और उनसे प्रार्थना की. उनकी इस प्रार्थना और अनुनय से विष्णु भगवान के शरीर से एक ज्योति प्रकट हुई जो चामुण्डा के नाम से प्रसिद्ध हुई. देखने में वह बहुत सुंदर थी और उनकी सुंदरता देख कर शुम्भ-निशुम्भ ने सुग्रीव नाम के अपने एक दूत को देवी के पास भेजा कि वह उन दोनों में से किसी एक को अपने वर के रुप में स्वीकार कर ले.
देवी ने उस दूत को कहा कि उन दोनों में से जो उन्हें युद्ध में परास्त करेगा उसी से वह विवाह करेगी. दूत के मुँह से यह समाचार सुनकर उन दोनो दैत्यों ने पहले युद्ध के लिए अपने सेनापति धूम्राक्ष को भेजा जो अपनी सेना समेत मारा गया. उसके बाद चण्ड-मुण्ड को भेजा गया जो देवी के हाथों मारे गए. उसके बाद रक्तबीज लड़ने आया. रक्तबीज की एक विशेषता यह थी कि उसके शरीर से खून की जो भी बूँद धरती पर गिरती उससे एक वीर पैदा हो जाता था. देवी ने उसके खून को खप्पर में भरकर पी लिया. इस तरह से रक्तबीज का भी अंत हो गया. अब अंत में शुम्भ-निशुम्भ लड़ने आ गए और वह भी देवी के हाथों मारे गए.
योगमाया – Yogmaya
जब कंस ने देवकी और वासुदेव के छ: पुत्रों को मार दिया तब सातवें गर्भ के रुप में शेषनाग के अवतार बलराम जी आए और रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित होकर प्रकट हुए. उसके बाद आठवें गर्भ में श्रीकृष्ण भगवान प्रकट हुए. उसी समय गोकुल में यशोदा जी के गर्भ से योगमाया का जन्म हुआ. वासुदेव जी कृष्ण को वहां छोड़कर योगमाया को वहाँ से ले आए. कंस को जब आठवें बच्चे के जन्म का पता चला तो वह योगमाया को पटककर मारने लगा लेकिन योगमाया उसके हाथों से छिटकर आकाश में चली गई और उसने देवी का रुप धारण कर लिया. आगे चलकर इसी योगमाया ने कृष्ण के हाथों योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर आदि शक्तिशाली असुरों को परास्त कर के उनका संहार किया.
रक्तदंतिका – Raktadantika
बहुत समय पहले की बात है वैप्रचिति नाम के असुर ने पृथ्वी व देवलोक में अपने कुकर्मों से आतंक मचा के रखा था. उसने सभी का जीना दूभर कर दिया था. देवताओं और पृथीवासियों की पुकार से देवी दुर्गा ने रक्तदन्तिका नाम से अवतार लिया. देवी ने वैप्रचिति और अन्य असुरों का रक्तपान कर के मानमर्दन कर दिया. देवी के रक्तपान करने उनका नाम रक्तदन्तिका पड़ गया.
शाकुम्भरी देवी – Shakumbhari Devi
प्राचीन समय में एक बार पृथ्वी पर सौ वर्षों तक बारिश ना होने से भयंकर सूखा पड़ गया. चारों ओर सूखा ही सूखा था और वनस्पति भी सूख गई थी जिससे सभी ओर हाहाकार मच गया. सूखे से निपटने के लिए ऋषि-मुनियों ने वर्षा के लिए भगवती देवी की उपासना की. उनकी स्तुति से माँ जगदम्बा ने शाकुम्भरी के नाम से पृथ्वी पर स्त्री रुप में अवतार लिया. उनकी कृपा हुई और पृथ्वी पर बारिश पड़ी. माँ की कृपा से सभी वनस्पतियों और जीव-जंतुओं को जीवन दान मिला.
श्रीदुर्गा देवी – Shri Durga Devi
प्राचीन समय में दुर्गम नाम का एक राक्षस हुआ जिसके प्रकोप से पृथ्वी, पाताल और देवलोक में हड़कम्प मच गया. इस विपत्ति से निपटने के लिए भगवान की शक्ति दुर्गा ने अवतार लिया. देवी दुर्गा ने दुर्गम राक्षस का संहार किया और पृथ्वी लोक के साथ देवलोक व पाताललोक को विपत्ति से मुक्ति दिलाई. दुर्गम राक्षस का वध करने के कारण ही तीनों लोकों में इनका नाम देवी दुर्गा पड़ा.
भ्रामरी – Bhramari
प्राचीन समय में अरुण नाम के राक्षस की इतनी हिम्मत बढ़ गई कि वह देवलोक में रहने वाली देव-पत्नियों के सतीत्व को नष्ट करने का कुप्रयास करने लगा. अपने सतीत्व को बचाने के लिए देव पत्नियों ने भौरों का रुप धारण कर लिया. वह सब देवी दुर्गा से अपने सतीत्व को बचाने के लिए प्रार्थना करने लगी. देव-पत्नियों को दुखी देख माँ दुर्गा ने भ्रामरी का रुप धारण किया और अरुण राक्षस के संहार के साथ उसकी सेना को भी नष्ट कर दिया.
चण्डिका – Chandika
एक बार पृथ्वी पर चण्ड-मुण्ड नाम के दो राक्षस पैदा हुए. इन दोनों राक्षसों ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया. इससे दुखी होकर देवताओं ने मातृ शक्ति देवी का स्मरण किया. देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर देवी ने चण्ड-मुण्ड राक्षसों का विनाश करने के लिए चण्डिका के रुप में अवतार लिया.