श्रावण माह के व्रत तथा त्यौहार

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श्रावण माह में गणेश जी की कथा – Story Of Lord Ganesha in Shravan Month

जब देवों के भी देव महादेव जी की पत्नी जगतमाता ने अपने पिता दक्ष के यज्ञकुण्ड में अपने शरीर की आहुति दे दी तो अगले जन्म में उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पत्नी मैना के गर्भ से जन्म लिया. वहाँ वे पार्वती वे पार्वती के नाम से प्रसिद्ध हुई. इस जन्म में भी पार्वती जी की इच्छा अपने पूर्व जन्म के पति महादेव जी को पति रुप में पाने की थी. इसके लिए उन्होंने घोर तपस्या की लेकिन महादेव प्रसन्न नहीं हुए और उनकी तपस्या सफल नहीं हो पाई.

तपस्या का फल ना मिलने पर भी पार्वती जी ने हार नहीं मानी. उन्होंने अनादिकाल से कृपा करने वाले गणेश जी का मनन किया. गणेश जी अति प्रसन्न होकर पार्वती जी के पास आये तो उन्हें पार्वती जी की इच्छा का पता चला. इस पर गणेश जी ने पार्वती जी को गणेश चौथ का व्रत और पूजन करने का परामर्श दिया. परामर्श देने के बाद गणेश जी चले गए और गणपति जी के परामर्श के अनुसार पार्वती जी ने गणेश चौथ का व्रत और पूजन दोनों किए. इसके फलस्वरुप पार्वती जी को भगवान शंकर पतिरुप में प्राप्त हो गए.

धर्मराज युधिष्ठिर जी ने भी अपना खोया राज्य वापिस पाने के लिए इस व्रत को किया था जिसके फलस्वरुप उन्हें खोया राज्य मिल भी गया था. स्कंद पुराण में तीस अध्याय हैं और श्रावण मास के प्रत्येक दिन स्कन्द पुराण के एक अध्याय को पढ़ना अथवा श्रवण करना चाहिए. श्रावण के पूरे माह शिव भगवान की श्रद्धा से पूजा करनी चाहिए. श्रावण के इस माह में रुद्राष्टाध्यायी पाठ द्वारा भी शिवजी का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए. शिवजी के रुद्रीपाठ द्वारा भी सहस्त्रधारा से अभिषेक किया जा सकता है.

सावन का यह महीना शिवजी भगवान को विशेष प्रय माना गया है. अत: इस माह में महामृत्युंजय का जाप, शिवसहस्त्रनाम, रुद्राभिषेक, शिवमहिम्न स्तोत्र, शिव ताण्डव स्तोत्र, महामृत्युंजय सहस्त्रनाम आदि मंत्रों का जाप जितना अधिक हो सके उतना अधिक करना चाहिए. शिव चालीसा का पाठ भी किया जा सकता है.

शिव भगवान के व्रत – Fasts For Lord Shiva

श्रावण माह में सभी सोमवारों को व्रत किया जाता है. इस व्रत में शिव, पार्वती, गणेश तथा नन्दी की पूजा की जाती है. जल, दूध, दही, चीनी, घी, मधु, पंचामृत, कलावा, वस्त्र, यज्ञोपवीत, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बिल्वपत्र, दूर्वा, विजया, आक, धतूरा, कमलगट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप और दक्षिणा सहित भगवान शिव की पूजा अराधना करने का विधान है. पूजा करने के बाद दिन में केवल एक समय के भोजन का विधान है. सावन के इस माह में भगवान शिव के माहात्म्य को सुनने और श्रवण करने को विशेष महत्व दिया गया है.

मंगलागौरी की पूजा -Manglagori Worship

सावन माह में आये सभी मंगलवारों को किए व्रत को मंगलागौरी व्रत कहा गया है. इस मंगलागौरी व्रत के पूजन का विधान इस प्रकार से है – इस व्रत को करने के दिन सिर सहित पूरा स्नान करना चाहिए. एक पाटे पर लाल और सफेद रंग का कपड़ा बिछाया जाता है. फिर सफेद कपड़े पर चावल की नौ ढेरियाँ बनाकर नौ ग्रह बनाने चाहिए. लाल कपड़े पर 16 ढेरी बनाकर षोडश मातृका बनाई जाती हैं. फिर किसी पट्टे पर थोड़े से चावल रखकर गणेश जी को विराजमान करना चाहिए. पट्टे के पास ही थोड़ा सा गेहूँ रखकर उसके ऊपर कलश रखना चाहिए. आटे का चौमुखा दीया बनाने और रूई की 16 – 16 बत्तियों की चार बत्तियाँ बनाकर दीया जलाएँ. 16 धूपबत्ती जलाकर संकल्प कर लें.

सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें फिर जल, पंचामृत, मौली, जनेऊ, चन्दन, रोली, सिन्दूर, चावल, फूल, बेलपत्र, प्रसाद, फल, पाँच मेवा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, दक्षिणा, गुलाल आदि चढ़ाकर धूप और दीपक जलाएँ, फिर कलश की पूजा कर के कलश में पानी डाल दें. आम के पाँच पत्ते लगाएँ, एक सुपारी और पंच रत्न लगा दें. थोड़ी सी मिट्टी सामर्थ्यानुसार दक्षिणा आदि कलश के अंदर डाल दें. कलश के ऊपर ढक्कन में थोड़े से चावल डाल दें और किसी कपड़े में थोड़ी सी दूर्वा बाँधकर ढ़क्कन पर रख दें. गणेश जी की पूजा करें. फिर कलश की पूजा करें. कलश पर सिन्दूर और बेलपत्र ना चढ़ाएँ. नौ ग्रह की पूजा करें लेकिन जनेऊ, हल्दी, मेहंदी और सिन्दूर ना चढ़ाएँ. बाद में सब कुछ मिलाकर देवी-देवताओं को चढ़ा दें. पंडित जी को टीका लगाकर मौली बाँधे और अपने भी बंधवाएँ, उसके बाद मंगलागौरी की पूजा कर एक पटरे पर थाली रखकर उसके ऊपर चकला रखें और चकले के पास में आटे का सिल बट्टा बनाकर रखें.

चकले के ऊपर गंगाजी की मिट्टी से मंगलागौरी बनाकर रखें. सबसे पहले मंगलागौरी को जल, दूध, दही, घी. शहद, चीनी, पंचामृत से नहलाएँ फिर उन्हें कपड़े तथा नथ पहनाएँ. उसके बाद रौली, चन्दन, सिन्दूर, हल्दी, चावल, मेहंदी, कालज लगाएँ. 16 मालाएँ अर्पित करें. 16 आटे के बने लड्डू, 16 फल, 5 प्रकार का मेवा, 16 तरह का अन्न, 16 जगह जीरा, 16 जगह धनिया, 16 पान, 16 सुपारी, 16 लौँग, 16 इलायची, 1 सुहाग पिटारी चढ़ाएँ. उसमें ब्लाऊज, रोली, मेहंदी, काजल, सिन्दूर, कंघा, शीशा, नाला, 16 चूड़ी की जोड़ी और सामर्थ्यानुसार दक्षिणा चढ़ाएँ. उसके बाद मंगलागौरी की कथा सुनें. कथा सुनने के बाद आटे के 16 दीये बनाकर उसे नाले की 16 तार की 16 बत्ती बनाकर कपूर रखकर आरती करके परिक्रमा करें. उसके बाद 16 आटे के लड्डू का सीधा निकालकर अपनी सास के पैर छूकर उन्हें दें. उसके बाद व्रती स्वयं भी भोजन कर सकता है. भोजन में अनाज की बनी वस्तु ग्रहण नही करनी है और ना ही नमक खाना है. अगले दिन मंगलागौरी के विसर्जन के बाद ही नमक खाना चाहिए.

भाई पाँचें – Bhai Paanche in Shravan Month

श्रावण माह में कृष्ण पक्ष की पंचमी को भैया पाँचे मनाई जाती है. इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है. लेकिन भाई पाँचे से एक दिन पहले थाली में रात के भीगे हुए चने, मोठ, पैसे, हल्दी, कच्चा दूध मिलाकर पानी भरा हुआ लोटा लेकर कैक्टस के पौधे के पास जाते हैं. पौधे की किसी एक टहनी पर जल चढ़ाया जाता है और हल्दी का टीका किया जाता है. घर के बाकी सभी सदस्यों को भी हल्दी का टीका लगाया जाता है. लोटे पर भी मौली बाँधकर उस पर सतिया (स्वस्तिक) बनाया जाता है. फिर झाड़ी की टहनी के काँटों पर मोठ चने बोये जाते हैं और साड़ी के पल्ले से कीकर की टहनी को साथ बार छूकर माथे से लगाया जाता है और साथ में यह लाईन कही जाती है – “झाड़ झड़े मेरा बीर बढ़े”

जिस दिन भाई पाँचें होती है उस दिन कहानी सुनी जाती है. कहानी सुनते हुए हाथ में मोठ-चने लेकर छीलते रहते हैं. कहानी सुनने के बाद मोठ चने वहीं पर चढ़ा दिए जाते हैं. उसके बाद गणेश जी की कहानी कहते हैं. कहानी सुनने के बाद सूरज भगवान को जल चढ़ाते हैं लेकिन थोड़ा सा जल बचा भी लेते हैं. घर में प्रवेश करने से पहले दरवाजे के दोनों जल डालकर हल्दी से सतिया (स्वस्तिक) बनाते हैं. फिर एक अलग लोटे में पानी लेकर मोठ-चने, फल, मिठाई, रुपये सब एक थाली में रखकर सीधा निकालते हैं. यह सीधा सास, जेठानी, ननद आदि को दिया जाता है. यदि कोई ना हो तब यह किसी बुजुर्ग महिला को भी दिया जा सकता है. यह पूजा कुंवारी लड़कियाँ भी करती हैं और अपनी छोटी बहन को सीधा देती हैं अथवा बहन समान किसी लड़की को सीधा दिया जा सकता है.

भैया पाँचें की कहानी – Story Of Bhai Paanche

एक राजा था, उसके सात बहु-बेटे थे. छ: बहुओं का पीहर था लेकिन सातवीं बहू का पीहर नहीं था. छ्: बहुएं एक दिन कुएँ पर पानी भरने गई तो आपस में कहने लगी कि जल्दी-जल्दी पानी भर लो फिर धोक मारने जाना है. उन छ: बहुओं से किसी ने पूछा कि तुम्हारी जेठानी क्या कर रही है? इस पर छ: बहुएँ बोली कि वह तो चरखा कात रही है. फिर वह कहने लगी कि उसे क्या पता कि भैया पाँचें क्या है? इसका क्या मतलब है? क्योंकि उसका न तो पीहर है और ना ही उसका कोई भाई है.

सभी बातें एक साँप सुन रहा था और बात सुनने के बाद वह उन छहों बहुओं के पीछे चलने लगा. घर पहुंचकर वह साँप एक आदमी के वेष में आ गया. और सातवीं बहू से कहने लगा – “बहन राम-राम”. वह सोच में पड़ गई कि मेरा तो कोई भाई नहीं था फिर यह कहाँ से आ गया. भाई कहने लगा – “बहन तेरी शादी के बाद मेरा जन्म हुआ, इसलिए तुम मुझे पहचान नहीं रही हो.” वह अपनी सास के पास गई और बोली कि मेरा भाई आया है, मैं क्या करूँ? तब सास ने कहा कि तेल से चूल्हा लीप ले और तेल में चावल चढ़ा ले. ऎसा करने पर ना तो चूल्हा सूखा और ना ही चावल ही पके. वह पड़ोसन के पास गई और सारी बात बताई. तब पड़ोसन ने कहा कि मिट्टी से चूल्हा लीप ले और पानी में चावल चढ़ा. दाल-चावल बनाकर उसमें घी बुरा मिलाकर अपने भाई को खिला, उसने ऎसा ही किया.

जीमने के बाद भाई ने कहा – “बहन मैं तुम्हें घर ले जाने आया हूँ.” बहन को साथ लेकर भाई जंगल में गया और वहाँ जाकर बहन से कहने लगा कि मैं अब साँप बन जाऊँगा लेकिन तुम डरना नहीं. मेरी पूँछ पकड़कर मेरी बाँबी के अंदर मेरे पीछे-पीछे आ जाना. बाँबी में पहुंचने के बाद भाई-बहन बोलने लगे कि हमारी बहन आई है, भाभी बोली कि हमारी ननद आई है. भतीजे बोले – “हमारी बुआ आई है.” बच्चों की माँ हर रोज घंटी बजाकर बच्चों को बुलाती और उनके आने पर उन्हें दूध पिलाती और वह सातवीं बहू यह सब देखती रहती.

एक दिन माँ से छोटे बहन-भाईयों को दूध पिलाने की जिद करने लगी तब माँ ने कहा – “दूध तो पिला ले लेकिन गर्म दूध पर घंटी मत बजाना.” उसने गलती से गर्म-गर्म दूध पर घंटी बजा दी. जिसके पीने से किसी की जीभ तो किसी की मूँछ और किसी का फन जल गया. सब गुस्से से कहने लगे कि इसने हमें जलाया है और हम इसे खाएंगे. इस पर माँ ने कहा कि इससे गलती हो गई है, मैं इसकी ओर से सभी से माफी माँगती हूँ, इसे छोड़ दो. कुछ समय बाद उसकी भाभी को लड़का हुआ तो भाभी ने कहा -”ननद माँगो तुम्हें क्या चाहिए?” ननद के माँगने पर भाभी ने उसे नौलखा हार दे दिया और कहा कि अगर इस हार को तुम पहनोगी तो यह हार ही रहेगा लेकिन अगर कोई ओर पहनेगा तब यह साँप बन जाएगा.

कुछ समय बाद राजा का लड़का उसे लेने आया तो उसने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान ! इस बाँबी की जगह महल चौबारे बना दो. जब राजा के लड़के को वहाँ रहते हुए ढाई दिन हो गए तब वह अपनी पत्नी को लेकर चला. विदा करते समय उन्होंने उसे बहुत से दास-दासी, हाथी-घोड़े, धन-दौलत देकर विदा किया लेकिन जाते समय राजा का लड़का अपनी धोती भूल आया और जब रास्ते में उसे ध्यान आया तब वह कहने लगा कि मैं अपनी धोती लेकर आता हूँ तब उसकी पत्नी बोली कि उन्होंने हमें इतना सब कुछ दिया है और आप अपनी पुरानी धोती लेने जाओगे! मेरी भाभियाँ क्या कहेगी? लड़का बोला कि ऎसा नहीं होता कि नई चीज मिलने पर पुरानी को भूल जाओ. वह कहने लगा कि मैं तो अपनी पुरानी धोती लेकर ही आऊँगा.

राजा के लड़के ने भी अपनी पुरानी धोती को लाने की जिद पकड़ ली थी. राजा के लड़के ने वापिस आकर देखा कि वहाँ कोई महल चौबारे नहीं हैं और उसकी धोती एक कीकर के पेड़ पर लटक रही थी. यह देखकर राजा का लड़का अपनी पत्नी पर तलवार टाँग कर खड़ा हो गया कि सच-सच बता कि बात क्या है वरना मैं तुझे मार डालूंगा. इस पर पत्नी ने बताया कि कुएँ पर पड़ोसन को देवरानी-जेठानी बातें मार रही थी कि भैया पाँचें क्या होती है? मैं क्या जानूँ क्योंकि मेरा तो पीहर ही नहीं है. यह सब सर्प देवता सुन रहे थे और वही मेरे धर्म भाई बने. आपके आने की सूचना पाकर मैने तो भगवान से ढ़ाई दिन का पीहर माँगा था.

घर पहुंचने पर इसे लड़का हुआ तो उसकी ननद ने कहा कि मैं तो वहीं नौलखा हार लूँगी जो भाभी अपने मायके से लाई है. इस पर भाभी ने कहा कि इस हार के अलावा तुम्हें जो चाहिए वह मैं दूँगी लेकिन यह हार मेरे ढ़ाई दिन के पीहर का दिया है. अगर इस हार को मैं पहनूंगी तो यह सोना रहेगा लेकिन तुम पहनोगी तो यह साँप बन जाएगा. ननद ने कहा कि मैं लूँगी तो सिर्फ यह हार लूँगी नहीं तो कुछ नहीं लूँगी तब मजबूर होकर भाभी ने वह हार ननद को दे दिया. ननद ने जैसे ही वह हार पहना वह साँप बन गया. यह देखकर बहू ने कहा कि मैने तो तुम्हे पहले ही कहा था कि यह हार साँप बन जाएगा. तब भाभी ने आप बीती सुनाई और बताया कि कैसे ये मेरे माँगे हुए ढाई दिन का पीहर था.

सब बातें सुनकर ननद बोली कि भाभी क्या सच में ही भैया पाँचें में इतनी शक्ति है, मुझे विश्वास नहीं होता तब बहू के ससुर अर्थात राजा ने यह अपने राज्य में ढिंढोरा पिटवा दिया कि लगते सावन की पंचमी को सभी भैया पाँचें मनाएँ. चने-मोठ भिगोएं, कीकर के झाड़ में पिरोए और चने-मोठ से धोक मारकर इन्हीं का बायना निकालें. कहते हैं कि इस कथा को कहने वाले का और कथा सुनने वाले का भी भला. इस कहानी के बाद गणेश जी की कहानी भी सुनें और सुनाएँ.

बिन्दायक (गणेश जी) जी की कथा – Story Of Bindayak(Lord Ganesha) Ji

भैया पाँचें की कहानी के बाद यह कहानी कही जाती है.

पुराने समय की बात है एक छोटा सा बालक अपने घर से लड़कर निकल गया और बोला कि आज मैं बिन्दायक जी से मिलकर ही घर वापिस जाऊंगा. चलते-चलते लड़का उजाड़ जंगल में पहुंच गया तब बिन्दायक जी ने सोचा कि ये लड़का मेरे नाम से घर छोड़कर आया है इसलिए इसे घर वापिस भेजना होगा नहीं तो जंगली जानवर इसे खा जाएंगे. बिन्दायक जी ने बूढ़े ब्राह्मण का वेश बनाया और लड़के के पास जाकर कहा कि तू कहाँ जा रहा है? लड़के ने जवाब दिया कि मैं बिन्दायक जी से मिलने जा रहा हूँ. इस पर ब्राह्मण बोला कि मैं ही बिन्दायक हूँ, बोल तू क्या मांगना चाहता है? लेकिन जो भी मांगों एक बार ही मांगना.

लड़का सोचने लगा कि क्या माँगू और बोला – “अन्न हो, धन हो, हाथी की सवारी हो, महल बैठी स्त्री ऎसी हो जैसे फूल गुलाब का.” इस पर बिन्दायक जी बोले, लड़के तूने सब कुछ माँग लिया है, जा तुझे सब कुछ मिल जाएगा. जब वह घर पहुंचा तो देखा कि एक छोटी सी बहू चौकी पर बैठी है और घर में बहुत सा धन भी हो गया है. लड़का अपनी माँ से बोला कि देख माँ मैं कितना धन लाया हूँ. यह सारा धन मैं बिन्दायक जी से माँगकर लाया हूँ.

हे! बिन्दायक जी महाराज ! जैसे आपने उस लड़के को धन-दौलत दी है वैसे ही सब किसी को देना. ये कथा कहने वाले को भी देना और यह कथा सुनने वाले को भी देना.

कामिका एकादशी – Kamika Ekadashi

श्रावण माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी कहा जाता है. इस एकादशी को “पवित्रा” एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन व्रत करने वाले को सुबह स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराकर भोग लगाना चाहिए. आचमन के बाद धूप, दीप, चंदन आदि सुगंधित पदार्थों से आरती उतारनी चाहिए.

कामिका एकादशी व्रत कथा – Story Of Kamika Ekadashi

प्राचीन समय की बात है कि किसी गाँव में एक ठाकुर रहते थे. वह स्वभाव से क्रुद्ध स्वभाव के व्यक्ति थे. इस क्रोधी स्वभाव के कारण एक दिन उनकी भिड़ंत किसी ब्राह्मण से हो गई और वह ब्राह्मण मारा गया. उस ब्राह्मण के मरने के बाद उन्होंने उसकी तेरहवीं करनी चाही लेकिन अन्य दूसरे सभी ब्राह्मणों ने भोजन करने से मना कर दिया. इस पर ठाकुर ने सभी ब्राह्मणों से निवेदन किया कि हे! ब्राह्मण देवता, मुझे बताएँ कि मेरा पाप किस तरह दूर होगा? इस बात को सुनकर सभी ब्राह्मणों ने उसे एकादशी का व्रत करने की सलाह दी.

जैसा ब्राह्मणों ने कहा उसने उसी तरह से ही किया. रात में जब वह भगवान की मूर्त्ति के पास सोया हुआ था तब उसने एक स्वप्न देखा. स्वप्न में भगवान ने उसे दर्शन देकर कहा कि हे ठाकुर ! तेरा सारा पाप दूर हो गया है. अब तुम ब्राह्मण की तेरहवीं कर सकते हो. तेरे घर का सूतक नष्ट हो जाएगा. ठाकुर तेरहवीं कर के ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो गया. अंत में मोक्ष प्राप्त कर के वह विष्णु लोक को चला गया.

श्रावण माह में काँवड़ चढ़ाने का कारण

श्रावण माह में कांवड़ियों द्वारा बड़ी तादाद में कांवड़ौ में जल भरकर लाया जाता है और सावन माह की शिवरात्री पर वह जल शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है. काँवड़ में जल लाकर चढ़ाने के पीछे एक पौराणिक कथा है जो इस प्रकार से है :-

जब समुद्र मंथन हुआ था तब उसमें से सबसे पहले विष बाहर आया और उस विष की प्रचंड गर्मी से देवगण, दैत्य और सारा जगत व्याकुल होकर हाहाकार करने लगा था. इस पर विष्णु भगवान की प्रेरणा से शिव ने आगे बढ़कर सभी के कल्याण के लिए वह विष पी लिया परन्तु उस विष को उन्होंने अपने कंठ तक ही सीमित रखा जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से भी पुकारा जाने लगा. भगवान शिव पर विष की गर्मी का इतना असर हुआ कि वह तीनो लोकों में घूमने लगे और राम के नाम की जगह उनके मुँह से बम बम निकलने लगा.

ऎसा होने पर देवताओं ने विष की गरमी को उतारने के लिए उनके मस्तक पर बहुत सा जल चढ़ाया. कालान्तर में गंगा जी की स्थापना उनके मस्तक पर की गई. उसी समय से भगवान शिव पर जल चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है. पुराणों में भी यह वर्णन मिलता है कि रावण ने भी हरिद्वार से गंगा जल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया था.

हरियाली तीज – Hariyali Teej

सावन माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज मनाई जाती है. इस दिन कोई पूजा या धार्मिक महत्व नही होता है. इस दिन केवल महिलाएँ सावन के गीत गाती हैं, सजती संवरती है और झूला झूलती हैं. हाथों में मेहंदी भी लगाई जाती है. हरियाली तीज में अधिकतर घरों में लड़कियाँ अपने मायके चली जाती हैं. जिस लड़की के विवाह के बाद पहली तीज आती है उसके ससुराल वाले तीज पर सिंधारा भेजते हैं. इस पर मायके वाले लड़की की ससुराल वालों के सभी सदस्यों के लिए कपड़े व सामर्थ्यानुसार उपहार भेजते हैं फिर हर साल तीज पर लड़की के माता-पिता इस त्यौहार पर कुछ ना कुछ अवश्य भेजते हैं.

नाग पंचमी – Naag Panchami

श्रावण माह की शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी मनाई जाती है. पंचमी से एक दिन पहले रात को मोठ व चने भिगो दिए जाते हैं. रात को ही खाना भी बनाकर रख दिया जाता है. दूसरे दिन ठंडी रोटी खाई जाती है. पहले तो एक जेवड़ी में सात गाँठे लगाकर साँप बनाया जाता है. उसके बाद जेवड़ी के साँप को एक पाटे पर रखकर उसकी पूजा की जाती है. जल, कच्चा दूध, बाजरे का आटा, घी, चीनी मिलाकर लड्डू बनाकर चढ़ाया जाता है, फिर भीगा हुआ मोठ, बाजरा, रोली, चावल और दक्षिणा चढ़ाई जाती है. कहानी सुनने के बाद मोठ-बाजरे में रुपये रखकर सीधा निकाला जाता है और सास के पैर छूकर उन्हें सीधा दिया जाता है. कई स्थानों पर नाग पंचमी के दिन बेटी को भी पीहर बुलाया जाता है.

नाग पंचमी की कहानी – Story Of Naag Panchami

किसी गाँव में एक साहूकार रहता था. उसके सात बेटे और सात ही बहुएँ थी. एक बार सातों बहुएँ जोहड़ से मिट्टी लेने गई. मिट्टी में से एक साँप निकला तो सभी बहुएँ साँप को मारने दौड़ी लेकिन छोटी बहू ने साँप को मारने नहीं दिया और उसने साँप को अपना मुँह बोला भाई बना लिया. सारी जेठानियाँ बोली कि कल इसकी छलनी लाने की बारी है. वहाँ पर साँप निकलेगा तो इसे खा जाएगा. अगले दिन जब छोटी बहू छलनी लेने गई तो साँप ने जोर से फुँफकार मारी. वह बोली – “भैया जी राम-राम” साँप बोला – “तूने मुझे भाई बोल दिया नहीं तो मैं तुझे डस लेता.” इस पर वह बोली कि तुम मेरे धर्म के भाई हो और मैं तुम्हारी धर्म की बहन तो तुम मुझे कैसे खा सकते थे.

घर पहुंचने पर सारी जेठानियाँ हैरान हुई कि साँप ने इसे कैसे जिंदा छोड़ दिया. थोड़ी देर बाद वह धर्म का बना भाई साँप आया और कहने लगा कि मैं अपनी बहन को लेने आया हूँ, इसे मेरे साथ भेज दो. इस पर सभी जेठानियाँ कहने लगी कि देखो हमारा तो पीहर भी है लेकिन कोई लेने नहीं आया और इसका पीहर नहीं है तब भी इसको लेने इसका धर्म भाई आ गया. छोटी बहू को बाद में सिर धोकर, मेहंदी लगाकर और शगुन का सामान देकर मायके भेज दिया गया. मायके में आने पर साँप की माँ ने उसकी बहुत खातिर की.

एक दिन उसकी पड़ोसन से लड़ाई हो गई तब साँप बने धर्म भाई ने अपनी माँ से कहा कि अब इस बहन को इसके ससुराल भेज दो. उसे बहुत सारा सामान और धन देकर ससुराल भेज दिया. इतना सारा सामान देखकर उसके पति की ताई-चाची कहने लगी बहू तेरा भाई तो तुझे बहुत ही लाड़ – प्यार से रखता है. उसने तुझे छ: कोठे की चाबी तो दे दी लेकिन सातवें कोठे की चाबी नहीं दी. यह बात सुनकर बहू के मन में भी यही बात बैठ गई कि मेरे भाई ने मुझे सातवें कोठे की चाबी नहीं दी. उसने वापिस जाकर अपने भाई से यही प्रश्न किया तो उसके भाई ने जवाब दिया कि अगर सातवें कोठे की चाबी लेगी तब बहुत पछताना पड़ेगा लेकिन उसने बहुत जिद कर के सातवें कोठे की चाबी ले ली.

उसने सातवें कोठे का ताला खोला तो देखा कि वहाँ एक अजगर बैठा है और अजगर ने उसे देखते ही जोर से फुँफकार मारी तो वह बोली – “बाबाजी राम-राम” इस पर अजगर बोला कि तूने मुझे बाबा कहा है इसलिए मैं तुझे नहीं खाऊँगा. वह बोली कि तुम मुझे कैसे खाते? तुम मेरे धर्म के पिता हो और मैं तुम्हारी धर्म की बेटी हूँ. बाद में बहुत सारा धन लेकर वह अपने ससुराल आ गई. बहुत सारा धन देखकर उसकी जेठानियाँ भी हैरान हो गई और कहने लगी कि हमारा तो पीहर था लेकिन कोई लेने नहीं आया और इसका पीहर नहीं था तब भी इसे लेने आए और इतना धन भी दिया.

अगले दिन छोटी बहू के बच्चों से अनाज की बोरी गिर गई तो इस पर जेठानियाँ बच्चों को बहुत बुरा भला कहने लगी और बोली कि तुम्हारे नाना-मामा यदि सुन रहे हैं तो उनसे सोने-चाँदी की बोरी मँगवाओं. यह बात बच्चों ने अपनी माँ को जाकर बताई तो साँप उनकी बात सुन रहा था. उसने अपनी माँ से कहा कि माँ ! बहन को तो उसकी जेठानी बहुत ताने मार रही है इसलिए मैं उसे सोने-चाँदी की बोरी देकर आऊँगा. ऎसा कहकर उसने दो बोरी सोने की और दो बोरी चाँदी की घर भिजवा दी. इसके बाद बच्चों से एक दिन झाड़ू गिर गई तो उनकी ताई बोली कि तुम्हारे तो मामा, नाना तो साँप और अजगर हैं इसलिए हमारी झाड़ू मत गिराओ. उसकी सब बातें साँप सुन रहा था, उसने अपनी माँ को फिर कहा कि बहन को तो बहुत ताने मिलते हैं इसलिए मैं सोने-चाँदी की झाड़ू बनवाकर बहन को दे आऊँगा.

यह सब देखकर जेठानियों ने ताने तो बंद कर दिए लेकिन एक दिन उनसे रहा नहीं गया और देवरानी की शिकायत राजा से कर दी. राजा से कहने लगी कि देवरानी के पास एक नौलखा हार है जो उसके गले में शोभा नहीं दे रहा है. उस हार को तो महारानी के गले में होना चाहिए. राजा ने साहूकार के बेटे की छोटी बहू को महल में बुलवाया और हार देने की बात कही. उसने हार तो दे दिया लेकिन मन ही मन सोचने लगी कि मैं पहनूँ तो हार रहेगा लेकिन महारानी पहनेगी तो यह साँप बन जाएगा और ऎसा ही हुआ. रानी के गले में डालते ही वह हार साँप बन गया. रानी जोर से चिल्लाई और कहने लगी कि उस साहूकार के बेटे की बहू को बुलाओ और उससे पूछो कि वह कौन सा जादू कर के गई है.

साहूकार के बेटे की बहू को बुलाया गया और उससे जब पूछा गया तो कहा कि मेरा पीहर नहीं है तो मैने साँप को अपना धर्म भाई बनाया. उन साँप देवता ने ही मुझे यह हार दिया था. यह सब देखकर उसकी जेठानियाँ सोचने लगी कि यह तो राजा रानी से भी नहीं डरी और उन्होंने उसके पति के कान भरने शुरु कर दिए. उन्होंने कहा कि अपनी पत्नी से पूछो कि इतना सारा धन यह कहाँ से लाती है? उसने अपने पति को सारी बात बताई और कहा कि यह धन तो मुझे साँप देवता ने दिया है. तब उसके पति ने सारे गाँव में ढ़िंढ़ोरा पिटवा दिया कि हर कोई नाग पंचमी को ठंडी रोटी खाए और बायना निकाले. इस कहानी को जो भी पढ़ता है, सुनता है या सुनाता है उसकी सभी मनोकामनाएँ नाग देवता पूरी करते हैं.

पुत्रदा/पवित्रा एकादशी – Putrada/Pavitra Ekadashi

यह एकादशी सावन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु के नाम पर व्रत रखकर पूजा की जाती है. इसके बाद वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें सामर्थ्यानुसार दान देकर आशीर्वाद लेना चाहिए. पूरा दिन भगवान का भजन कीर्तन करना चाहिए. रात में भगवान की मूर्त्ति के पास ही सोना चाहिए. जिन्हें संतान प्राप्ति की कामना है उन्हें यह व्रत अवश्य रखना चाहिए.

पुत्रदा/पवित्रा एकादशी व्रत कथा – Story Of Putrada/Pavitra Ekadashi Fast

एक समय महिष्मती नगर में महीजित नाम का राजा राज करता था. वह बहुत ही धर्मात्मा, शान्तिप्रिय और दानी भी था. लेकिन उसके राज्य को उसके बाद संभालने वाला कोई नहीं था, वह निं:संतान था. यही बात सोचकर वह बहुत दुखी रहता था. एक बार राजा ने अपने राज्य के सभी ऋषियों और महात्माओं को बुलाया और संतान पाने का उपाय पूछा. इस पर लोमेश ऋषि ने कहा कि आपने पिछले जन्म में श्रावण माह की एकादशी को अपने तालाब से प्यासी गाय को पानी नहीं पीने दिया था. उसी श्राप के कारण आपको कोई संतान नहीं हुई है. आप श्रावण माह की पुत्रदा एकादशी का व्रत नियम से रखें. रात में जागरण करें तो आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति अवश्य होगी. ऋषि की आज्ञानुसार राजा ने वैसा ही किया और कुछ समय बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.

रक्षाबंधन (राखी) का त्यौहार – Festival Of Rakshabandhan

श्रावण माह की पूर्णिमा को यह त्यौहार मनाया जाता है. इस पूर्णिमा से दो दिन पहले गोबर के पानी से रसोई, कमरे, दरवाजे और खिड़कियों पर छींटा दिया जाता है. श्रावणी पूर्णिमा के दिन कई स्थानों पर सुबह के समय हनुमान जी और पितरों को पूजा जाता है. उसके बाद खीर-पूरी बनाकर रख दी जाती है और खाने से पहले घर के लड़कों को राखी बाँधी जाती है. भाई राखी बंधवाकर बहनों को रुपये-पैसे तथा उपहार देते हैं. बहनें उन्हें मिठाई व फल देती है.