इससे पहले हम भाग 1 और भाग 2 में प्रेम अथवा अन्तर्जातीय विवाह के योगों के विषय में चर्चा कर चुके हैं. इस भाग में हम चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कुछ और योगों की बात करेगें जिनके कुंडली में बनने पर मान्यताओं से हटकर विवाह होता है.
यदि किसी जन्म कुंडली में पाप ग्रहों शनि,मंगल,राहु,केतु अथवा सूर्य का नवम भाव पर प्रभाव पड़ रहा है अथवा नवमेश त्रिक भाव (6,8,12 भाव) में स्थित है तब भी मान्यताओं से हटकर विवाह होता है.
यदि किसी की जन्म कुंडली में शुक्र तथा चंद्र पंचम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह होने की संभावना बनती है. यदि नेप्च्यून पंचम भाव में स्थित है तब प्रेम प्रसंग अथवा प्रेम विवाह में धोखा मिल सकता है और सिवाय निराशा के कुछ हाथ नहीं लगता है.
यदि किसी जन्म कुंडली में द्वादशेश तथा सप्तमेश का परस्पर राशि परिवर्तन हो रहा हो तब एक से अधिक विवाह की संभावना बनती है और साथ ही जीवनसाथी का संबंध विदेश से होता है.
यूरेनस यदि सप्तम भाव में स्थित हो या सप्तमेश से संबंध रखता हो तब भी विवाह सामान्य संबंध से हटकर होता है. राहु यदि पंचम भाव में हो तब भी विवाह में मान्यताओं का उल्लंघन देखा जा सकता है.
पाश्चात्य ज्योतिष के अनुसार यदि शुक्र चतुर्थ भाव में हो तो वैवाहिक जीवन अशांतिपूर्ण रहता है और अधिकाँशत: तलाक हो जाता है अथवा पति-पत्नी आपसी मनमुटाव से एक दूसरे से दूर-दूर रहते हैं.
यदि नवाँश कुंडली में पंचमेश व सप्तमेश के आपसी संबंध बन रहे हों तब भी बेमेल विवाह की संभावना बनती है. यदि इन पर पाप प्रभाव पड़ रहा हो तब विवाह में कुछ असंगत भी हो सकता है.
यदि शनि कारकाँश लग्न से सप्तम में स्थित है तब जातक का विवाह अपने से काफी बड़ी आयु वाले से विवाह हो सकता है. यदि किसी जन्म कुंडली में पंचमेश, मंगल व शनि के साथ हों और सप्तमेश कुंडली के दूसरे अथवा एकादश भाव में स्थित हो तब प्रेम विवाह की संभावना बनती है.
जन्म कुंडली के नवम भाव को धर्म त्रिकोण, पिता तथा गुरु के लिए देखा जाता है. अगर लग्न अथवा चंद्र से नवम भाव या नवमेश पर पाप प्रभाव पड़ रहा है अथवा नवमेश नीच राशि में स्थित है अथवा बुरे भाव में स्थित है तब ऎसा जातक अपनी धार्मिक व सामाजिक मान्यताओं को तोड़कर और अपने पिता अथवा गुरु की आज्ञा का उल्लंघन कर प्रेम विवाह कर सकता है. पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह करता है.
यदि किसी कुंडली में पंचमेश, सप्तमेश तथा नवमेश किसी भी भाव में एक साथ युति कर रहे हों अथवा तीनों में दृष्टि संबंध हो या राशि परिवर्तन हो तब भी प्रेम विवाह की संभावना बनती है.
किसी जन्म कुंडली में राहु व शनि, शुक्र के साथ स्थित हों अथवा शुक्र पर राहु व शनि की दृष्टि पड़ रही हो तब जातक वासना के वशीभूत होकर संबंध स्थापित कर सकता है.
यदि शुक्र का संबंध कुंडली में लग्न, पंचम अथवा सप्तम भाव से हो रहा है और एकादशेश या एकादश भाव में स्थित ग्रह का पंचम अथवा सप्तम भाव से संबंध बन रहा है तब प्रेम विवाह होता है.
यदि जन्म कुंडली में प्रेम विवाह के योग बन रहे हों और नवम भाव, नवमेश तथा बृहस्पति पाप ग्रहों के प्रभाव में हो या नवम भाव पाप कर्तरी में हो तब अन्तर्जातीय विवाह होता है अथवा अन्य धर्म में विवाह होता है. यदि किसी जन्म कुंडली में शुक्र के साथ बुध भी सप्तम भाव में अंशात्मक (degree wise) रुप से समीप हो तब पारंपरिक रुप से विवाह नहीं होता है.
बेमेल विवाह होने के कारण – Reason For Incongruous Marriage
कई बार बेमेल विवाह भी देखा जाता है जैसे किसी विधवा से विवाह होना या भावुकतावश किसी परित्यक्ता से विवाह कर लेना आदि अथवा वर-वधु की आयु में सामान्य से अधिक अंतर होना भी देखा गया है. इस प्रकार के बेमेल विवाह होने के ज्योतिषीय कारणों की चर्चा नीचे की जा रही है.
1) जन्म कुंडली में कर्क राशि में शुक्र व राहु की युति होने से भावुकतावश जातक ऎसा कदम उठाता है.
2) लग्न में मिथुन राशि में सूर्य स्थित हो तब व्यक्ति का अस्थिर स्वभाव होने से ऎसा हो सकता है क्योंकि मिथुन राशि द्विस्वभाव मानी गई है.
3) जन्म कुंडली में बुध यदि राहु के साथ स्थित हो तब व्यक्ति अस्थिर मानसिकता का होने के कारण परंपराओं का पालन नहीं करता है.
4) चंद्र यदि सप्तम भाव में स्थित हो स्थित हो जातक मानसिकता अस्थिरता अथवा चपलता के कारण ऎसा कर सकता है. यदि सप्तम भाव में धनु राशि का चंद्रमा हो तब जातक परंपराओं का उल्लंघन करने वाला होता है.
5) अष्टमेश यदि कुंडली के पंचम भाव में स्थित है तब भी बेमेल संबंध बन जाते हैं.
6) किसी जन्म कुंडली में चंद्रमा के साथ शनि स्थित हो तब जातक मानसिक तनाव में आकर बेमेल विवाह का कदम उठा सकता है. इस योग में जातक द्वारा नशीले पदार्थों का सेवन भी किया जा सकता है.
7) जन्म कुंडली का पंचम भाव प्रेम संबंधों के लिए भी देखा जाता है. यदि किसी कुंडली में पंचमेश बारहवें भाव में स्थित है तब अंतर्जातीय विवाह हो सकता है अथवा बेमेल विवाह के योग भी बन सकते हैं.
8) जन्म कुंडली में सूर्य यदि अपनी नीच राशि तुला में स्थित है तब भी जातक परंपराओं का त्यागकर कुछ अमान्य संबंध बना सकता है.
9) यदि किसी जन्म कुंडली में चंद्रमा तथा मंगल पंचम भाव में युति कर रहे हों तो अधिकाँश संबंध कामुकता के वश में होकर बनते हैं. यदि बुध व राहु भी पंचम भाव में स्थित है तब जातक की मानसिक अस्थिरता के कारण संबंध बन सकते हैं.
10) यदि किसी कुंडली में द्वितीयेश के साथ सप्तमेश का किसी भी तरह से संबंध स्थापित हो रहा है तब प्रेम विवाह पहले से जानने वाले व्यक्ति से हो सकता है.
11) पुरुषों की कुंडली में शुक्र को कामेच्छा का ग्रह माना जाता है और स्त्री कुंडली में मंगल को माना गया है. जब किसी स्त्री की जन्म कुंडली में मंगल के ऊपर से गोचर के राहु अथवा शनि गुजरते हैं तब उस स्त्री का किसी पुरुष से संबंध स्थापित हो सकता है.
12) जन्म कुंडली में मंगल का संबंध किसी भी तरह से पंचम अथवा पंचमेश से बन रहा हो या लग्न अथवा लग्नेश से बन रहा हो तब भी संबंध स्थापित होने की संभावना बनती है.
13) यदि जन्म कुंडली में सप्तमेश, शुक्र अथवा शनि, केतु के साथ स्थित है तब जातक का प्रेम गुप्त रह सकता है. अगर कुंडली में केतु से ग्रस्त शुक्र, सप्तमेश के साथ सप्तम भाव में स्थित है तब यह गोपनीयता बनी रहती है.
14) यदि कुंडली में शुक्र पर शनि व राहु दोनों का प्रभाव है और द्वादश भाव में भी पाप ग्रह स्थित है या उनसे दृष्टि संबंध बन रहा हो तो ऎसे में जातक वासना के वश में रहता है.
15) यदि जन्म कुंडली के पंचम भाव में शुक्र तथा शनि एक साथ स्थित है तब जातक अपने कर्त्तव्यों को भी समझता है लेकिन यदि पाप ग्रहों के प्रभाव में है तो जातक को अनेकों बाधाओं से गुजरना पड़ सकता है.
भाग – 1 के लिए यहां क्लिक करें (click here For Part – 1 )
http://astroprabha.in/astrological-combination-for-love-or-inter-caste-marriage-part-1/