हरति सब आरती, आरती राम की ।
दहन दुख-दोष निरमूलिनी काम की ।।
सुभग सौरभ धूप दीपबर मालिका ।
उड़त अघ-बिहँग सुनि ताल करतालिका ।।
भक्त-हृदि-भवन अज्ञान-तम-हारिनी ।
बिमल बिग्यानमय तेजबिस्तारिनी ।।
मोह-मद-कोह-कलि-कंज-हिम-जामिनी ।
मुक्तिकी दूतिका, देह-दुति दामिनी ।।
प्रनत-जन-कुमुद-बन-इंदु-कर-जालिका ।
तुलसि अभिमानमहिषेस बहु कालिका ।।