प्रभुमीशमनीशमशेष गुणं गुणहीनमहीश गरलाभरणम ।
रण निर्जित दुर्जय दैत्यपुरं, प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम ।।1।।
गिरिराजसुतान्वित-वामतनुं तनुनिन्दितराजित कोटिविधुम ।
विधिविष्णुशिरोधृत-पादयुगं, प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम ।।2।।
शशिलांछित-रंजित सन्मुकुटं कटिलम्बितसुन्दर कृत्तिपटम ।
सुरशैवलिनी-कृतपूतजटं, प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम ।।3।।
नयनत्रय भूषित-चारुमुखं मुख पद्मपराजित कोटिविधुम ।
विधु खण्ड-विमण्डित-भालतटं, प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम ।।4।।
वृषराज निकेतनमादिगुरुं गरलाशनमार्तिविषाणधरम ।
प्रमथाधिपसेवक रंजनकम, प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम ।।5।।
मकरध्वजमत्तमातंगहरं करिचर्मगनाशविवोधकरम ।
वरमार्गणशूलविषाणधरं, प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम ।।6।।
जगदुदभवपालननाशकरं त्रिदिवेशशिरोमणिधृष्टपदम ।
प्रियमानव-साधुजनैकगतिं, प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम ।।7।।
अनाथं सुदीनं विभो विश्वनाथं पुनर्जन्मदु:खात परित्राहि शम्भो ।
भजतोखिल-दु:ख समूहहरं, प्रणमामि शिवं शिवकल्पतरुम ।।8।।