कार्तिक माह माहात्म्य – अठ्ठाईसवाँ अध्याय

पढ़े सुने जो प्रेम से, वह हो जाये शुद्ध स्वरुप। यह अठ्ठाईसवाँ अध्याय कार्तिक कथा अनूप।। धर्मदत्त ने पूछा –

Continue reading

error: Content is protected !!