माघ माहात्म्य – दूसरा अध्याय

राजा के ऎसे वचन सुनकर तपस्वी कहने लगा कि हे राजन्! भगवान सूर्य बहुत शीघ्र उदय होने वाले हैं इसलिए

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कार्तिक माह माहात्म्य – पैंतीसवाँ अध्याय

अनुपम कथा कार्तिक, होती है सम्पन्न। इसको पढ़ने से, श्रीहरि होते हैं प्रसन्न।। इतनी कथा सुनकर सभी ऋषि सूतजी से

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कार्तिक माह माहात्म्य – चौंतीसवाँ अध्याय

सूतजी ने ऋषियों से, कहा प्रसंग बखान। चौंतीसवें अध्याय पर, दया करो भगवान।। ऋषियों ने पूछा – हे सूतजी! पीपल

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कार्तिक माह माहात्म्य – तैंतीसवाँ अध्याय

दया दृष्टि कर हृदय में, भव भक्ति उपजाओ। तैंतीसवाँ अध्याय लिखूँ, कृपादृष्टि बरसाओ।। सूतजी ने कहा – इस प्रकार अपनी

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कार्तिक माह माहात्म्य – बत्तीसवाँ अध्याय

मुझे सहारा है तेरा, सब जग के पालनहार। कार्तिक मास के माहात्म्य का बत्तीसवाँ विस्तार।। भगवान श्रीकृष्ण ने आगे कहा

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