अंगारक स्तोत्रम् 

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जन्म कुंडली में किसी प्रकार का भौम दोष अथवा मंगल दोष है या मांगलिक दोष बना हुआ है तब उसकी शांति के लिए “अंगारक स्तोत्र” का पाठ विशेष रूप से लाभ देने वाला तथा कल्याण करने वाला कहा गया है. इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति पर कर्ज अधिक हो गया है जिसे वह चुका नहीं पा रहा है तब वह भी इस स्तोत्र का पाठ नियमित रुप से कर सकता है. दरिद्रता(Poverty) को दूर करने के लिए भी इस स्तोत्र का पाठ शुभफलदायी कहा गया है. इसके अतिरिक्त भूमि व पुत्र लाभ के लिए भी इस स्तोत्र का पाठ कल्याणकारी ही कहा गया है. 

यदि किसी प्रकार के विघ्न जीवन में काम में रुकावट डाल रहे हों या किसी से वाद-विवाद ही हो रहा हो तब भी श्रद्धापूर्वक किया गया यह स्तोत्र अत्यन्त लाभ देता है.  जन्म कुंडली में अंगारक योग के बनने पर भी इस स्तोत्र का पाठ करने से यह योग काफी हद तक अपना दुष्प्रभाव खो देता है.

 

विनियोग 

अस्य अंगारकस्तोत्रस्य विरूपांगिरस ऋषि: । अग्निर्देवता । गायत्री छन्द: । भौम प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ।

 

अंगारक स्तोत्रम्

अंगारक: शक्तिधरो लोहितांगो धरासुत:। कुमारो मंगलौ भौमो महाकायो धनप्रद: ।।1।।

ऋणहर्ता दृष्टिकर्ता रोगकृद्रोगनाशन:। विद्युतप्रभो व्रणकर: कामदो धनहृत् कुज: ।।2।।

सामगानप्रियो रक्त वस्त्रो रक्तायतेक्षण:। लोहितो रक्तवर्णश्च सर्वकर्मावबोधक: ।।3।।

रक्तमाल्यधरो हेमकुण्डली ग्रहनायक:। नामान्येतानि भौमस्य य: पठेत्सततं नर: ।।4।।

ऋणं तस्य च दौर्भाग्यं दारिद्रस्यं च विनश्यति । धनं प्राप्नोति विपुलं स्त्रियं चैव मनोरमाम् ।।5।।

वंशोद्योतकरं पुत्रं लभते नात्र संशय: । योsर्चयेदह्नि भौमस्य मंगलं बहुपुष्पकै: ।।6।।

सर्वा नश्यति पीडा च तस्य ग्रहकृता ध्रुवम् ।।7।।

।।इति श्री स्कान्दपुराणे श्री अङ्गारकस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।