अशक्त अवस्था में कार्तिक व्रत का निर्वाह 

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यहाँ अशक्त अवस्था का अर्थ है कि जब व्यक्ति किसी भी कारण से व्रत रखने में असमर्थ है चाहे वह बीमारी के कारण हो या अन्य किसी कारण से हो तब ऎसे में कार्तिक व्रत का पालन कैसे किया जाए, इस अध्याय में इसी बात का उल्लेख किया जाएगा. अशक्त अवस्था में कार्तिक व्रत का पालन कैसे किया जाए ! 

भगवान विष्णु को सदा से कार्तिक मास सर्वाधिक प्रिय है. इसके साथ ही यह भोग तथा मोक्षरुपी फल प्रदान करने का सरल उपाय भी है. कार्तिक मास के मुख्य पाँच नियम माने गए हैं – 

  1. रात्रि में भगवान के पास जागना
  2. ब्रह्ममूहुर्त्त में स्नान करना
  3. तुलसी की सेवा में लगे रहना
  4. दीपदान करना 
  5. उद्यापन करना 

जो व्यक्ति इन पाँचों नियमों का पालन करते हुए कार्तिक का व्रत करता है उसे पूर्ण फल प्राप्त होता है. अत: इसका अनुष्ठान अवश्य ही करना चाहिए लेकिन कभी व्रत करने वाला मनुष्य संकट में पड़ जाए या दुर्गम वन में भटक जाए या रोग से पीड़ित हो जाए तब उसे इस कल्याणकारी व्रत को कैसे करना चाहिए, इस विषय में सूत जी कहते हैं-

हे ऋषियों ! ऎसे मनुष्य को भगवान विष्णु या शिव मन्दिर में जाकर केवल जागरण करना चाहिए. यदि कोई मन्दिर भी पास ना हो तब उसे पीपल के वृक्ष की जड़ के पास या तुलसी के पौधे के पास बैठकर जागरण करना चाहिए. जिस मनुष्य को विपत्ति में फंसे होने के कारण स्नान के लिए जल प्राप्त ना हो या जो रोग से ग्रस्त होने के कारण स्नान करने में असमर्थ हो तब उसे भगवान विष्णु का नाम लेकर मार्जन करना चाहिए. 

जो कार्तिक व्रत में प्रवृत्त होकर भी किसी कारणवश उद्यापन करने में असमर्थ हो तो उसे अपने व्रत की पूर्त्ति के लिए अपने सामर्थ्य के अनुसार निर्धनों को भोजन करवाना चाहिए. निर्धन तथा ब्राह्मण के संतुष्ट होने पर ही भगवान की प्रसन्नता प्राप्त होती है, इसमें कतई सन्देह नहीं करना चाहिए. स्वयं दीपदान करने में असमर्थ व्यक्ति को दूसरों से दीप जलवाना चाहिए और प्रयत्नपूर्वक अन्य दीपों की रक्षा करनी चाहिए. 

तुलसी का पौधा ना होने पर वैष्णव विद्वान ब्राह्मण का पूजन करना चाहिए क्योंकि भगवान अपने भक्तों के हृदय में सदा ही विराजमान रहते हैं या किसी एक या समस्त साधनों के अभाव में व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत की पूर्त्ति के लिए ब्राह्मणों, गौओं, पीपल, तुलसी तथा वट वृक्षों की सेवा करनी चाहिए. पीपल में भगवान विष्णु साक्षात विराजमान होते हैं. इसी प्रकार वट वृक्ष भगवान शंकर तथा पलाश ब्रह्माजी का स्वरुप है. इन तीनों का दर्शन, पूजन तथा सेवन करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है. 

 

कार्तिक व्रत के उद्यापन की विधि

कार्तिक मास के व्रत के उद्यापन में तुलसी के मूल प्रदेश में भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. व्रती मनुष्य को कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को व्रत की पूर्त्ति तथा भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए उद्यापन करना चाहिए. उद्यापन करने वाले व्यक्ति को तुलसी के ऊपर एक सुन्दर मण्डप बनाना चाहिए, जिसमें चार दरवाजे होने चाहिए. फिर उस मण्डप में सुन्दर बन्दनवार लगाकर उसे पुष्पों के चँवर से सजाना चाहिए. चारों द्वारों पर पृथक-पृथक मिट्टी के चार द्वारपालों – पुण्यशील, सुशील, जय और विजय – की स्थापना करके उनका पूजन करना चाहिए. 

तुलसी की जड़ के पास सर्वतोभद्र मण्डल बनाना चाहिए जो चार रंगों से बना हुआ सुन्दर लगना चाहिए. सर्वतोभद्र के ऊपर कलश स्थापित करना चाहिए और उस पर नारियल रखना चाहिए. कलश स्थापना के बाद लक्ष्मी जी के साथ विराजमान शंख, चक्र, गदायुक्त भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए. मण्डल में इन्द्र आदि लोकपालों का भी पूजन करना चाहिए. भगवान द्वादशी को शयन से उठे, त्रयोदशी को देवताओं ने उनका दर्शन किया, चतुर्दशी को सबने उनकी पूजा की इसलिए इस समय भी उसी तिथि को भगवान की पूजा की जाती है. 

इस दिन शान्त तथा शुद्ध मन से श्रद्धापूर्वक उपवास करना चाहिए. रात्रि में जागरण करना चाहिए. भगवान के पास भक्तिपूर्वक गायन करते हुए जागरण करने से सौ जन्मों के पापों का नाश हो जाता है. इसके बाद पूर्णिमा के दिन सुबह के समय अपनी सामर्थ्य अनुसार पत्नी सहित अधिक से अधिक ब्राह्मणों को भोजन के लिए आमन्त्रित करना चाहिए. इस दिन दान, होम तथा जप से अक्षय फल की प्राप्ति होती है. इसलिए व्रती मनुष्य को ब्राह्मणों को खीर आदि मिष्टान्न से युक्त भोजन करवाना चाहिए. 

देवताओं की प्रसन्नता के लिए तिल व खीर की आहुति देनी चाहिए. ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिए और देवगणों सहित भगवान विष्णु तथा तुलसी जी का पूजन करना चाहिए. व्रत का उपदेश करने वाले आचार्य का पूजन करके उन्हें वस्त्र, अलंकार भेंट देने चाहिए. अन्त में ब्राह्मणों से प्रार्थना करनी चाहिए कि हे विप्रों ! आप सबकी कृपा से भगवान विष्णु मुझ पर सदा प्रसन्न रहें और इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्मों में किए हुए मेरे सभी पाप नष्ट हो जाएँ. भगवान के पूजन से मेरे सभी मनोरथ पूर्ण हों और अन्त में वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति हो. 

इस प्रकार प्रार्थना करते हुए ब्राह्मणों को विदा करना चाहिए. उसके बाद सपरिवार भोजन ग्रहण करना चाहिए. इस प्रकार कार्तिक मास के व्रत का पालन करने वाला मनुष्य निष्पाप तथा मुक्त होकर भगवान विष्णु की समीपता प्राप्त कर लेता है. कार्तिक व्रत के इन नियमों का प्रचार करने वाले व्यक्ति के भी सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.