बृहस्पति दशा के फल

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गुरु दशा के सामान्य फल 

यदि जन्म कुंडली में गुरु की दशा चलती है तब व्यक्ति को स्थान प्राप्ति होती है, वाहन का सुख होता है, सरकारी अधिकारियों से संबंध बनते हैं अथवा उनसे मित्रता होती है. यदि कोई व्यवसाय करता है तो उसके काम में वृद्धि होती है. मन प्रसन्न रहता है, वैभव की प्राप्ति होती है, व्यक्ति का ज्ञान बढ़ता है. स्त्री-पुत्रादि के सुख में वृद्धि होती है. इस दशा में सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों की ओर से उत्तम भूमि की प्राप्ति होती है. सुन्दर पत्नी/पति मिलता है, गुरुजनों से सम्मान की प्राप्ति होती है और व्यक्ति उत्तम व अच्छी विद्या से युक्त होता है. 

बृहस्पति की दशा में स्त्री-पुत्र, धन-धान्य, मित्र तथा रत्नों आदि का लाभ व्यक्ति को मिलता है. आरोग्य लाभ होता है, शत्रु पर विजय प्राप्त होती है और सुख की प्राप्ति होती है. इस दशा में व्यक्ति का आचरण भी शुद्ध हो जाता है क्योंकि गुरु स्वयं सात्विक ग्रह है और ज्ञान के कारक कहे गए हैं. शास्त्रों व पुराणों को पढ़ने की इच्छा बली होती है और व्यक्ति का स्वभाव विनम्र होता है. सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों की कृपा से व्यक्ति के मनोरथ पूर्ण होते हैं. 

इस दशा में व्यक्ति सुशील होकर देवताओं की अर्चना तथा ब्राह्मणों की सेवा करने वाला होता है. वैभव से संपन्न होता है तथा बुद्धिमान होता है और धनादि की कमी नहीं होती है. व्यक्ति का उठना-बैठना अच्छी संगत के लोगों के मध्य रहता है. अपने कुल-परिवार में व्यक्ति वरिष्ठ होता है और गुणों की खान होता है. इस दशा में व्यक्ति सरकारी अधिकारी अथवा सरकार में मंत्री हो सकता है. इस दशा में व्यक्ति की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं. 

व्यक्ति आस्थावान होता है अर्थात यज्ञादि, ब्राह्मण तथा ईश्वर में आस्था रखने वाला होता है. वैभव संपन्न व धनी व्यक्ति होता है. पुत्रों की ओर से संतोष रहता है, बलशाली होता है, अपने कुल में श्रेष्ठ होता है. व्यक्ति भूत-भविष्य को जानने वाला अथवा इसमें रुचि रखने वाला होता है. उच्च कुलीन लोगों की संगत रहती है, सद्बुद्धि से युक्त होता है और शीलवान होने के साथ-साथ धैर्यवान होता है. 

गुरु दशा के उपरोक्त फल सामान्य है अर्थात अगर गुरु अच्छी स्थिति में हैं तब ऎसे फल मिलेगें अन्यथा नहीं मिलेगें. यदि गुरु जन्म कुंडली में अशुभ है तब अपनी दशा में व्यक्ति को पेट संबंधित विकार हो सकते हैं, गुल्म, प्लीहा और गले से संबंधित विकार हो सकते हैं. 

 

परमोच्च गुरु का दशा फल 

यदि जन्म कुंडली में गुरु अपनी उच्च राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति को राज्य की प्राप्ति होती है किन्तु अब राजा तो रहे नहीं है इसलिए इस दशा में सरकार में किसी अच्छे पद की प्राप्ति होती है. व्यक्ति परम सुख का अनुभव करता है और उसकी कीर्ति पताका चारों ओर लहराती है. मन को सुकून देने वाले काम व्यक्ति करता है. वाहनादि का सुख व्यक्ति को मिलता है. उच्च सरकारी पद की प्राप्ति से लाभ होता है. इस दशा में व्यक्ति अपने कुल का अधिपति भी होता है. 

 

उच्च गुरु का दशाफल 

गुरु अथवा बृहस्पति कर्क राशि में उच्च का होता है और जब उच्च के गुरु की दशा आती है तब सरकारी अथवा सरकारी अधिकारियों की अनुकम्पा जातक पर काफी रहती है. सरकार की अनुकम्पा से व्यक्ति का भाग्योदय होता है और वह जीवन में उत्तरोत्तर उन्नति करता है. इस दशा में व्यक्ति विदेश यात्रा काफी करता है. वैभव आदि की प्राप्ति होती है और दु:खों से छुटकारा मिलता है लेकिन उच्च के गुरु की दशा में व्यक्ति में स्वाभिमान भी बहुत रहता है और कभी-कभी तो यह घमंड का रूप भी ले लेता है. 

 

मूलत्रिकोण गुरु दशा का फल 

गुरु जब जन्म कुंडली में अपनी मूलत्रिकोण राशि में रहता है तब सरकार की ओर से लाभ होता है. स्त्री-पुत्रादि अथवा संतान से सुख की प्राप्ति होती है. धन की कमी नहीं रहती है और वाहन का सुख भी जातक को मिलता है. अपने स्वप्रयासों से व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है. इस दशा में धर्म-कर्म में रुचि तथा यज्ञादि कराने में भी रुचि रहती है. व्यक्ति को उच्च पद की प्राप्ति होती है तथा लोगों के मध्य जातक लोकप्रियता पाता है. 

 

स्वराशिगत गुरु का दशाफल 

अगर जन्म कुंडली में गुरु अपनी स्वराशि धनु अथवा मीन में स्थित होता है तब सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों से धन का लाभ होता है. जमीन व धान्यादि का लाभ होता है, जातक सुखी होता है और वस्त्राभूषण की प्राप्ति होती है. व्यक्ति मिष्टान्न ज्यादा ग्रहण करता है, मनभावन चीजों की पूर्त्ति करता है और वेद शास्त्रों में रुचि रहती है. काव्यादि में भी जातक की विशेष रुचि रहती है. 

 

अतिमित्र राशि में गुरु का दशाफल 

यदि जन्म कुंडली में गुरु अथवा बृहस्पति अपनी अतिमित्र राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति राजा से पूज्य होता है अर्थात सरकार उसका काफी सम्मान करती है जैसे कि किसी को पूजा जा रहा हो. व्यक्ति भेरी (एक प्रकार का वाद्य यंत्र जो मुँह से बजाया जाता है) तथा मृदंग आदि वाद्यों से युक्त रहता है. वाहन आदि से संपन्न होता है तथा हर तरह से सौभाग्यशाली होता है. 

 

मित्रराशि में गुरु का दशाफल 

यदि जन्म कुंडली में गुरु अपनी मित्र राशि में स्थित हो तब सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों से व्यक्ति की मित्रता होती है, व्यक्ति की कीर्त्ति चारों ओर फैलती है. व्यक्ति विद्या-विवाद में विजय हासिल करता है. अन्न आदि से हर प्रकार से सुखी रहता है और व्यक्ति परोपकार करने वाला होता है. इस दशा में व्यक्ति को मिष्टान्न व सुगन्ध आदि का लाभ होता है. 

 

समराशि में गुरु का दशाफल 

यदि जन्म कुंडली में बृहस्पति अपनी समराशि में स्थित है तब अपनी दशा में सरकार के द्वारा इसका भाग्योदय होता है. खेती-बाड़ी अथवा कृषि संबंधी कर्म से लाभ होता है. भले ही यह प्रत्यक्ष रुप से कृषि कर्म ना करता हो लेकिन किसी ना किसी रुप में इससे लाभ होता है. गोधन पाता है, धनी होता है और मनोविलास से लाभ पाता है. हर तरह से सुखी व संपन्न कहा जा सकता है. मित्रों से लाभ, वस्त्र व आभूषणों का लाभ होता है. 

 

आरोही या आरोहिणी गुरु का दशाफल 

यदि गुरु जन्म कुंडली में आरोही अवस्था में स्थित है अर्थात नीच व उच्च राशि के मध्य है तब इसकी दशा में व्यक्ति का समाज-सोसायटी में महत्व बढ़ता है. धन व भूमि आदि की प्राप्ति होती है. व्यक्ति की अभिरुचि गाने आदि में बढ़ जाती है. स्त्री व संतान आदि से सुख मिलता है. सरकार की ओर से सम्मान पाता है. अपने स्वप्रयासों तथा पराक्रम के बल पर यश पाता है व प्रतापी होता है. मण्डलाधिपति होता है, ब्राह्मण तथा सरकार से धन लाभ होता है. जातक मेधावी होता है, विद्वान व विनीत (सरल स्वभाव) होता है. 

 

अवरोहिणी गुरु दशा का फल 

यदि जन्म कुंडली में गुरु अथवा बृहस्पति अवरोहिणी अवस्था में है अर्थात उच्च व नीच राशि के मध्य स्थित है तब इसकी दशा में सुखों का नाश होता है और तुरंत सारे सुख नष्ट हो जाते हैं. इस दशा में अचानकपन जीवन में बहुत रहता है जैसे अभी कुछ सुख मिला और कुछ देर में ही वह सुख नष्ट भी हो गया. अचानक व्यक्ति कीर्ति पाता है और तत्काल वह कीर्ति नष्ट हो जाती है. इसलिए इस दशा को मिश्रित फल देने वाली भी कहा जा सकता है. 

 

शत्रु राशिगत गुरु दशा का फल 

शत्रु राशि में स्थित गुरु की दशा यदि जीवन में आ जाती है तब व्यक्ति को चीजों के होते हुए भी उसके सुख में कमी लगती है अथवा सुखों का उपभोग वह कर नहीं पाता है. वैसे तो इस दशा में व्यक्ति को भूमि व व्यवसाय से लाभ होता है. व्यक्ति सुख की नींद सोता है और सरकार की ओर से सम्मानित होता है लेकिन अपनी स्त्री, संतान, नौकर तथा चचेरे भाईयों को कष्ट में देखता है. 

 

अतिशत्रु राशि में गुरु का दशाफल 

जन्म कुंडली में गुरु अगर अतिशत्रु राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति को शोक प्राप्त होता है, व्यक्ति को विष का भय रहता है. जमीन-जायदाद का नाश होता है तथा धनादि दिन-ब-दिन घटता रहता है. घर में पत्नी से कलह-क्लेश रहता है. सरकार से कष्ट अथवा सरकारी अधिकारियों से कष्ट मिलता है. अग्नि व चोर से भी भय तथा कष्ट रहता है. 

 

उच्च ग्रह से युक्त गुरु का दशाफल 

यदि जन्म कुंडली में गुरु किसी उच्च ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में यह महान सुखों को पाता है, कई भवनों का निर्माण करता है तथा सरकार द्वारा पूजनीय होता है. 

 

नीच ग्रह से युक्त गुरु का दशाफल 

यदि जन्म कुंडली में गुरु अपनी नीच राशि में स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति को मानसिक कष्ट मिलते हैं जिनसे मानसिक रोग भी हो जाते हैं. इस दशा में व्यक्ति दूत (संदेश लाना और पहुंचाना) का काम करता है. इस दशा में व्यक्ति का अपनी संतान से ही विरोध हो जाता है. 

 

शुभ ग्रह से युक्त गुरु का दशाफल 

यदि जन्म कुंडली में गुरु शुभ ग्रहों के साथ है तब इसकी दशा में उच्चाधिकारी से वाहन की प्राप्ति होती है. अच्छे, कोमल व सुन्दर वस्त्रों की प्राप्ति होती है. दान आदि से धनागमन होता है. सरकार अथवा सरकारी अधिकारियों से सम्मान मिलता है. यज्ञादि संपन्न कराकर सन्मार्ग पर चलने वाला होता है जिससे पुण्यलाभ होता है. 

 

अशुभ ग्रह से युक्त गुरु का दशाफल 

यदि जन्म कुंडली में गुरु पाप अथवा अशुभ ग्रह के साथ स्थित है तब इसकी दशा में व्यक्ति पाप कर्म करने वाला ही होता है. इसका अपना विवेक काम नहीं करता है. धर्म विरुद्ध आचरण व्यक्ति का रहता है. मन तो कलुषित रहता है लेकिन बाहर से पुण्य का दिखावा करने वाला होता है लेकिन अर्थ, भूमि, स्त्री व संतान की ओर से सुखी होता है.  

 

शुभ ग्रह से दृष्ट गुरु का दशाफल 

यदि जन्म कुंडली में गुरु शुभ ग्रह से दृष्ट है अर्थात गुरु को कोई शुभ ग्रह देख रहा है तब व्यक्ति विदेश में सरकार से धन का लाभ पाता है. देवादि की अर्चना करने वाला होता है तथा तीर्थ आदि के दर्शन करता है. व्यक्ति अपने गुरुजनों का सम्मान करने वाला होता है. 

 

अशुभ ग्रह से दृष्ट गुरु का दशाफल 

जन्म कुंडली में गुरु यदि किसी पाप अथवा अशुभ ग्रह से दृष्ट है तब इसकी दशा में व्यक्ति सुखी होता है, व्यक्ति धैर्यवान व शीलवान भी होता है, यश भी पाता है, धनी व सुखी भी होता है लेकिन जब यह दशा समाप्त होने वाली होती है तब सब कुछ नष्ट भी कर जाती है.