ज्येष्ठा नक्षत्र की गणना गण्डमूल नक्षत्रों के अन्तर्गत भी होती है. इस नक्षत्र के स्वामी बुध हैं और इन्द्र इस नक्षत्र के देवता माने गए हैं. गण्डमूल नक्षत्र होने से इस नक्षत्र की पूजा कराने की बात हर जगह की गई है, जिसे हम मूल शांति के नाम से जानते हैं. अगर यह नक्षत्र पाप प्रभाव में है अथवा अशुभ है तब भगवान विष्णु की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं क्योंकि बुध इस नक्षत्र का नक्षत्रपति है और बुध की शांति के लिए विष्णु जी की उपासना उत्तम मानी गई है. जैसे कई विद्वान बुधवार के दिन विष्णु सहस्त्रनाम करने की अकसर सलाह देते हैं क्योंकि बुध का संबंध भगवान विष्णु से माना गया है.
ज्येष्ठा नक्षत्र वृश्चिक राशि के अंतर्गत पड़ता है और मंगल इस राशि का स्वामी ग्रह है इसलिए कुछ विद्वानों के मत से दुर्गा तथा काली की पूजा-अर्चना करने से भी इस नक्षत्र को बल मिलता है. लाल, काला, नीला, हरा व आसमानी रंग का उपयोग करने से भी इस नक्षत्र को बल मिलता है. जन्म कुंडली में अगर यह नक्षत्र शुभ तथा बली अवस्था में स्थित है इस नक्षत्र की तिथि, चांद्र मास तथा इस नक्षत्र में चंद्रमा के गोचर के समय किए गए महत्वपूर्ण कार्य, शुभ तथा कल्याणदायक होते हैं.
ज्येष्ठा नक्षत्र के शुभ परिणाम पाने तथा अनिष्ट प्रभाव का शमन करने के लिए इस नक्षत्र के बीज मंत्र – “ऊँ धं” की एक माला का जाप प्रतिदिन करना चाहिए. इस नक्षत्र की अशुभता को मिटाने के लिए “अपामार्ग” की जड़ को बाजू अथवा दिल के पास गले में धारण करना चाहिए. जिस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र पड़ रहा हो उस दिन यह जड़ धारण करनी चाहिए. इस नक्षत्र के वैदिक मंत्र का जाप होम करते हुए 108 बार करना चाहिए. घी, तिल, तेंदु तथा अपामार्ग की लकड़ियों से होम करना उचित माना गया है. यदि होम करना संभव ना हो तब केवल वैदिक मंत्र का ही 108 बार जाप प्रतिदिन करना चाहिए, मंत्र है :-
ऊँ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रगूँहवे हवेसुहव गूँ शूरमिन्द्रम ।
हृयामिशक्रं पुरुहूतमिन्द्र गूँ स्वस्तिनो मधवाधात्विन्द्र: ऊँ शक्राय नम: ।।
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