जन्म कुंडली में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, जन्म नक्षत्र होकर पीड़ित है अथवा पाप प्रभाव में है तब इसका उपचार अवश्य करना चाहिए अन्यथा जीवन में बहुत-सी बाधाओं तथा रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति संघर्षों से होकर निकलेगा तथा हताश व निराश महसूस करेगा. इस नक्षत्र को बल प्रदान करने तथा इसका अरिष्ट दूर करने के लिए सूर्य भगवान की पूजा करनी चाहिए और सूर्य स्तवन एक उत्तम उपाय है. सूर्य भगवान को प्रतिदिन जल अर्पित करने से भी इस नक्षत्र को बल मिलता है. सूर्य की आराधना इसलिए क्योंकि इस नक्षत्र के स्वामी सूर्य देव हैं. यदि संभव हो तो प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करना चाहिए क्योंकि इससे भी इस नक्षत्र को बल मिलता है
कुछ विद्वानों के मत से सिंह सवार दुर्गा अथवा माँ काली की उपासना करने से भी इस नक्षत्र के अनिष्ट प्रभाव खतम होते हैं. इस नक्षत्र को शुभ बल प्रदान करने के लिए गायत्री मंत्र का जाप भी अत्यधिक कल्याणकारी माना गया है. यदि हरा, लाल, सफेद अथवा सुनहरी चमक वाले रंगों का उपयोग किया जाए तो भी इस नक्षत्र की शुभता में वृद्धि होती है. ज्यादा भड़कीले रंगों के इस्तेमाल से बचना चाहिए. जिन रंगों को देखकर आपका मन प्रसन्नता का अनुभव नहीं करते हैं उन रंगों का उपयोग नहीं करना चाहिए.
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के देवता अर्यमा है जिन्हें दया तथा करुणा की प्रतिमूर्ति माना जाता है इसलिए अर्यमा देव की मूर्ति का प्रतिदिन पूरे विधि विधान से पूजन करना चाहिए जिससे कि इस नक्षत्र के शुभ परिणाम व्यक्ति को मिल सके. इस नक्षत्र को बली बनाने के लिए तिल व घी मिश्रित सामग्री से होम करना चाहिए और होम करते समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के वैदिक मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए. यदि होम के समय जाप संभव ना हो तब केवल वैदिक मंत्र का जाप प्रतिदिन 108 बार करना चाहिए, मंत्र है :-
ऊँ दैव्व्यावध्वर्यू आगत गूँ रथेन सूर्यत्वचा ।
मध्वायज्ञगूँ समजाथे तं प्रत्नथा यं वेनश्चित्रं देवानाम् ।।
ऊँ अर्यम्णे नम: ।।
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