रोहिणी नक्षत्र अगर जन्म कुंडली में पीड़ित है तो हर प्रकार से गाय की सेवा करनी चाहिए. रोटी देकर, चारा देकर, जल देकर अथवा गौ ग्रास किसी भी रूप में निकालकर दे सकते हैं. गौशाला में दान दे सकते हैं. कुछ का ये भी मानना है कि मूर्त्तिकार, बुनकर, जुलाहा, कुम्हार, धोबी, जुलाहा, शिल्पी अथवा मिस्त्री की सहायता कर के भी कृत्तिका नक्षत्र के शुभ फल बढ़अए जा सकते हैं.
सफेद या क्रीम रंग रँग के कपड़े और हल्का पीलापन लिए हुए वस्त्र के उपयोग से भी इस नक्षत्र को बल प्रदान किया जा सकता है. दान द्वारा भी इस नक्षत्र के अशुभ प्रभाव को दूर किया जा सकता है. यह दान सुपात्र ब्राह्मण को दिया जाना चाहिए और दान की वस्तुओं में खुश्बू, कमल का फूल, चंदन की लकड़ी, धूप, शुद्ध घी का दीपक, मिठाई आदि दी जानी चाहिए. अपामार्ग की जड़ को सुखाकर ताबीज के रूप में पहनने से भी रोहिणी नक्षत्र का अशुभ प्रभाव दूर होता है. शहद, घी और दूध से बनी सामग्री का दान भी ब्राह्मण को करना चाहिए.
जिस दिन रोहिणी नक्षत्र पड़ रहा हो उस दिन काली गाय का दूध और सप्तधान्य (सात प्रकार के अनाज {cereals}) का दान करने से भी इस नक्षत्र को बल मिलता है. मंत्र जाप कर भी इस नक्षत्र के अशुभ फलों को कम किया जा सकता है. रोहिणी नक्षत्र के बीज मंत्र “ऊँ ऋं ऊँ लृं” का रोज 108 बार मंत्र जाप करना चाहिए जिससे रोहिणी नक्षत्र को बल मिलेगा. इसके अतिरिक्त रोहिणी नक्षत्र के वैदिक मंत्र का जाप भी 108 बार कर के इस नक्षत्र के शुभ फलों को बढ़ाया जा सकता है. अगर आप चाहे तो हवन करते हुए इस रोहिणी नक्षत्र के वैदिक मंत्र की 108 आहुतियाँ भी दे सकते हैं इसका प्रभाव सबसे अधिक होता है. अपामार्ग की लकड़ी, तिल और घी को मिलाकर जो सामग्री बनेगी उसकी आहुति देनी है. अगर हवन नहीं कर सकते तब भी रोज एक माला इस मंत्र की की जा सकती है. रोहिणी नक्षत्र का वैदिक मंत्र है :-
ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमत: सुरुचोव्वेनआव: सबुघ्न्या उपमा
अस्य विष्ठा: सतश्चयोनिमसतश्चत्विव: ब्रह्मणे नम:।।
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