अभिजित समेत कुल 28 नक्षत्रों का वर्गीकरण सात भागों में किया गया है. जिन सात भागों में इन नक्षत्रों को बांटा गया है उस हरेक वर्ग को भी एक नाम दिया गया है जिसका वर्णन इस लेख में किया जा रहा है.
1) ध्रुव-स्थिर नक्षत्र | Dhruv-Sthir Nakshatra
इन नक्षत्रों की श्रेणी में उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद, रोहिणी नक्षत्र के साथ रविवार को रखा गया है. इन नक्षत्रों में स्थिर स्वभाव के कार्य जैसे मकान की नींव रखना, कुंआ खोदना, भवन निर्माण, उपनयन संस्कार, कृषि से जुड़े कार्य, नौकरी आरम्भ करना आदि आते हैं.
महर्षि वशिष्ठ के अनुसार जो कार्य मृदु नक्षत्रों में किए जाते हैं उन कार्यों को इन नक्षत्रों में भी किया जा सकता है.
2) चर अथवा चल नक्षत्र | Char Or Chal Nakshatra
इसमें स्वाति नक्षत्र, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा और सोमवार को लिया गया है. सभी चर अथवा चल स्वभाव के कार्य जैसे वाहन चलाना अथवा वाहन की सवारी करना, घुड़सवारी, हाथी की सवारी करना, यात्रा करना आदि ऐसे कार्य किए जाते हैं जिनमें गतिशीलता रहती है.
महर्षि वशिष्ठ के अनुसार जो कार्य क्षिप्र-लघु नक्षत्रों में किए जाते हैं उन कार्यों को भी इन नक्षत्रों में किया जा सकता है.
3) उग्र-क्रूर नक्षत्र | Ugra Or Krur Nakshatra
इसमें पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, भरणी, मघा और मंगलवार का दिन शामिल किया गया है. आक्रामक स्वभाव के कार्य इन नक्षत्रों में किए जाते हैं. ह्त्या, विश्वासघात, अग्नि से संबंधित अशुभ कार्य, चोरी, विष देना, विष संबंधित दवाईयों पर खोज, शल्य चिकित्सा, हथियारों का क्रय-विक्रय, अथवा प्रयोग आदि सभी क्रूर प्रवृत्ति के कार्यों के लिए ये अनुकूल नक्षत्र माने गए हैं.
महर्षि वशिष्ठ के अनुसार जो कार्य दारुण-तीक्ष्ण नक्षत्रों में किए जा सकते हैं उन्हें इन नक्षत्रों में भी किया जा सकता है. ये नक्षत्र शुभ कार्यों के लिए सामान्यतः वर्जित माने जाते हैं.
4) मिश्र-साधारण नक्षत्र | Mishra-Sadharan Nakshatra
इस श्रेणी में विशाखा तथा कृत्तिका नक्षत्र और बुधवार का दिन लिया गया है. इसमें अग्नि संबंधित कार्य, धातुओं को गरम करके अथवा उन्हें गलाकर ढालने का काम, गैस संबंधित कार्य, सजाने-संवारने के कार्य, दवा निर्माण आदि के कार्य किए जाते हैं.
5) क्षिप्र-लघु नक्षत्र | Kshipra-Laghu Nakshatra
इसमें हस्त नक्षत्र, अश्विनी, पुष्य, अभिजित और बृहस्पतिवार का दिन लेते हैं. इन नक्षत्रों में दुकान का प्रारम्भ तथा निर्माण किया जाता है, विक्रय करने, शिक्षा का प्रारम्भ, गहने अथवा जवाहरात बनाने अथवा पहनने, मैत्री अथवा किसी से साझेदारी का काम, कला सीखना या दिखाने का काम, किसी नए काम को सीखने का काम इन नक्षत्रों में करना उपयुक्त माना गया है.
जो कार्य चल अथवा चर नक्षत्रों में किए जाते हैं उन्हें भी इन नक्षत्रों में किया जा सकता है.
6) मृदु-मैत्र नक्षत्र | Mridu-Maitra Nakshatra
इसमें मृगशिरा नक्षत्र, रेवती, चित्रा, अनुराधा और शुक्रवार का दिन शामिल किया गया है. गायन सीखना आरम्भ करना, संगीत सीखना, वस्त्र सिलवाने अथवा पहनने का काम, क्रीड़ा, खेल की बारीकियों को सीखने का काम, मित्र बनाने, गहने बनाने अथवा पहनने आदि का काम इन नक्षत्रों में किया जाता है.
जिन कार्यों को ध्रुव-स्थिर नक्षत्रों में किया जाता है उन सभी कार्यों को भी इन नक्षत्रों में किया जा सकता है.
7) तीक्ष्ण-दारुण नक्षत्र | Teekshna-Darun Nakshatra
इनमें मूल नक्षत्र, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा और शनिवार का दिन शामिल किया गया है. इन तीक्ष्ण-दारुण नक्षत्र में तांत्रिक क्रियाएं, ह्त्या, काला जादू, आक्रामक व मृत्यु तुल्य कृत्यों को करना, जानवरों को प्रशिक्षण देना तथा उन्हें वश में करना, साधना जैसे हठ योग आदि कार्य किए जाते हैं.
नक्षत्रों को उनकी दृष्टि के अनुसार भी बांटा गया है और उनका यह वर्गीकरण इस प्रकार से है :-
1) उर्ध्वमुखी नक्षत्र | Urdhvamukhi Nakshatra
इसमें आर्द्रा, पुष्य, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, तीनों उत्तरा और रोहिणी नक्षत्र आते हैं. इन नक्षत्रों में बहुमंजिले भवन बनाना, घर बनाना, मंदिर निर्माण करना, उद्यान आदि बनाने का काम आरम्भ किया जाता है. इसके अतिरिक्त यह नक्षत्र उन सभी कार्यों के लिए अनुकूल होते हैं जिनमें ऊपर की ओर देखना पड़ता है.
2) अधोमुखी नक्षत्र | Adhomukhi Nakshatra
इसमें मूल नक्षत्र, आश्लेषा, विशाखा, कृत्तिका, तीनों पूर्वा नक्षत्र, भरणी और मघा को लिया गया है. इन नक्षत्रों में भूमि से जुड़े कार्य जैसे कुँए बनाना, तालाब के लिए जमीन खोदना, नींव रखने के लिए जमीन की खुदाई करना, भूमि के नीचे के निर्माण कार्य, खदान का काम, जमीन के अंदर गंदे पानी की निकासी की खुदाई का काम आदि करना अनुकूल माना गया है. जैसा कि नाम से स्पष्ट है ये नक्षत्र उन कार्यों के लिए अनुकूल है जिनमें नीचे की ओर देखा जाता है.
3) तिर्यङ्कमुखी नक्षत्र | Tiryakmukhi Nakshatra
इसमें मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, स्वाति, पुनर्वसु, अश्विनी और ज्येष्ठा नक्षत्र शामिल किए गए हैं. इन नक्षत्रों का मुख सीधा होता है जिस से इनकी दृष्टि सामने की ओर होती है. इन नक्षत्रों को यात्रा अथवा यात्रा संबंधित कार्यों के लिए शुभ माना जाता है. वाहन चलाना, वाहन में चढ़ना, सड़क निर्माण आदि ऐसे कार्यों के लिए ये नक्षत्र उपयुक्त माने गए हैं. वो सभी कार्य जिनमे सामने की ओर देखने की आवश्यकता होती है, इस नक्षत्र के अंतर्गत आते हैं.