श्रावण अमावस्या को किए जाने वाले पिठोरी व्रत का वर्णन
ईश्वर बोले – हे मुनिश्रेष्ठ ! अब मैं उत्तम पिठोरी व्रत का वर्णन करूँगा. सभी संपदाओं को प्रदान करने वाला यह व्रत श्रावण मास की अमावस्या को होता है. जो यह घर है वह सभी वस्तु मात्र का अधिष्ठान है इसलिए इसे पीठ कहा गया है और पूजन में वस्तु मात्र के समूह को “आर” कहते हैं, अतः हे मुनीश्वर ! इस व्रत का नाम इसलिए “पिठोर” है. अब मैं उसकी विधि कहूँगा, सावधान होकर सुनिए. दीवार को ताम्रवर्ण, कृष्णवर्ण अथवा श्वेतवर्ण धातु से पोतना चाहिए. अगर ताम्रवर्ण से पोता गया हो तो पीले रंग से, कृष्ण वर्ण से पोता गया तो श्वेत रंग से और श्वेत वर्ण से पोता गया हो तो कृष्ण वर्ण से चित्र बनाना चाहिए. अथवा श्वेत पीत से, लाल से, काले या हरे वर्ण से चित्र बनाएं.
मध्य में पार्वती सहित शिव की मूर्त्ति अथवा शिवलिंग को बनाकर विस्तीर्ण दीवार पर संसार की अनेक चीजों का चित्र बनाएं. चतुःशाला सहित रसोईघर, देवालय, शयनघर, सात खजाने, स्त्रियों का अंतःपुर जो महलों तथा अट्टालिकाओं से सुशोभित तथा शाल के वृक्षों से मण्डित हो, चूने आदि से दृढ़ता से बंधे पाषाणों तथा ईंटों से सुशोभित हो और जिसमें विचित्र दरवाजे-छत तथा क्रीड़ास्थान हों, इन सभी को चित्रित करें. बकरियां, गायें, भैंस, घोड़े, ऊँट, हाथी, चलने वाला रथ, अनेक प्रकार की सवारी गाड़ियाँ, स्त्रियां, बच्चे, वृद्ध, जवान, पुरुष, पालकी, झूला और अनेक प्रकार के मंच – इन सबका अंकन करें. सुवर्ण, चाँदी, ताम्र, सीसा, लोहा, मिटटी तथा पीतल के और अन्य प्रकार के विभिन्न रंगों वाले पात्रों को लिखें.
शयन संबंधी जितने भी साधन हैं – चारपाई, पलंग, बिस्तर, तकिया आदि, बिल्ली, मैना अन्य और भी शुभ पक्षी, पुरुषों तथा स्त्रियों के अनेक प्रकार के आभूषण, बिछाने तथा ओढ़ने के जो वस्त्र हैं, यज्ञ के जितने भी पात्र होते है, मंथन के लिए दो स्तम्भ व तीन रस्सियां, दूध, मक्खन, दही, तकर, छाछ, घी, तेल, तिल – इन सभी को दीवार पर लिखें. गेहूं, चावल, अरहर, जौ, मक्का, वार्तानल (एक प्रकार का अन्न होता है), चना, मसूर, कुलथी, मूंग, कांगनी, तिल, कोदों, कातसी नामक अन्न, साँवाँ, चावल, उड़द – ये सभी धान्यवर्ग भी अंकित करें. सील, लोढ़ा, चूल्हा, झाड़ू, पुरुषों व स्त्रियों के सभी वस्त्र, बाँस तथा तृण के बने हुए सूप आदि, ओखली, मूसल, (गेहूं आदि पीसने तथा अरहर आदि दलने के लिए) दो यन्त्र – चाकी तथा दरैता, पंखा, चंवर, छत्र, जूता, दो खड़ाऊं, दासी, दास, नौकर, पोष्यवर्ग, तृण आदि पशुओं का आहार, धनुष, बाण, शतघ्नी (एक प्रकार का अस्त्र), खडग, भाला, बरछी, ढाल, पाश, अंकुश, गदा, त्रिशूल, भिन्दिपाल, तोमर, मुद्गर, फरसा, पट्टिश, भुशुण्डि, परिघ, चक्रयन्त्र आदि, जलयन्त्र, दवात, लेखनी, पुस्तक, सभी प्रकार के फल, छुरी, कैंची, अनेक प्रकार के पुष्प, विल्वपत्र, तुलसीदल, मशाल-दीपक तथा दीवट आदि उनके साधन, अनेक विध खाने योग्य शाक तथा पकवानों के जितने भी प्रकार हैं – उन सभी को लिखना है. जो वस्तुएं यहां नहीं बताई गई है उस सबको भी दीवार पर लिखना है क्योंकि यहां पर सभी कुछ लिखना संभव नहीं है क्योंकि एक-एक पदार्थ के सैकड़ो तथा हजारों भेद हैं और मैं कितना कह सका हूँ.
सोलहों उपचारों से इन सभी का पूजन होना चाहिए. पूजन में अनेक प्रकार के गंध-द्रव्य, पुष्प, धूप तथा चन्दन अर्पित करें. ब्राह्मणों, बालकों तथा सौभाग्यवती स्त्रियों को भोजन कराएं. उसके बाद पार्वती सहित शिव से प्रार्थना करें – “मेरा व्रत संपूर्ण हो. हे साम्ब शिव ! हे दयासागर ! हे गिरीश ! हे चंद्रशेखर ! इस व्रत से प्रसन्न होकर आप हमारे मनोरथ पूर्ण करें.” इस प्रकार पाँच वर्ष तक व्रत करके बाद में उद्यापन कर देना चाहिए. इसमें घृत तथा बिल्वपत्रों से शिव-मन्त्र के द्वारा होम होता है. एक दिन अधिवासन करके सर्वप्रथम ग्रह होम करना चाहिए. आहुति की संख्या एक हजार आठ अथवा एक सौ आठ होनी चाहिए.
हे वत्स ! उसके बाद आचार्य की पूजा करें और भूयसी दक्षिणा दें. इसके बाद व्यक्ति इष्ट बंधुजनों तथा कुटुंब के साथ स्वयं भोजन करे. ऐसा विधान किए जाने पर मनुष्य सभी कामनाओं को प्राप्त कर लेता है. इस लोक में जो-जो वस्तुएं उसे परम अभीष्ट होती है, उन सभी को वह पा लेता है. हे वत्स ! मैंने आपसे इस उत्तम पिठोरी व्रत का वर्णन कर दिया. इस व्रत के समान सभी मनोरथों तथा समृद्धियों को प्रदान करने वाला और शिवजी की प्रसन्नता करने वाला न कोई व्रत हुआ है और न तो होगा. मनुष्य इस व्रत में दीवार पर जो-जो वस्तु बनाता है उसको निश्चित रूप से पा लेता है.
|| इस प्रकार श्रीस्कन्द पुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में “अमावस्या में पिठोरी व्रत कथन” नामक पच्चीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ||
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