श्रावण मास माहात्म्य – बीसवाँ अध्याय

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श्रावण मास में त्रयोदशी और चतुर्दशी को किए जाने वाले कृत्यों का वर्णन

ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! अब मैं आपके समक्ष त्रयोदशी तिथि का कृत्य कहता हूँ. इस दिन सोलहों उपचारों से कामदेव का पूजन करना चाहिए. अशोक, मालतीपुष्प, देवताओं को प्रिय कमल, कौसुम्भ तथा बकुल पुष्पों और अन्य प्रकार के भी सुगन्धित पुष्पों, रक्त अक्षत, पीले चन्दन, शुभ सुगन्धित द्रव्यों तथा पुष्टि प्रदान करने वाले तथा तेज की वृद्धि करने वाले अन्य पदार्थों से पूजन करना चाहिए. नैवेद्य और मुख के लिए रोचक ताम्बूल अर्पित करना चाहिए. ताम्बूल (पान) में चिकनी उत्तम सुपारी, खैर, चूना, जावित्री, जायफल, लवंग, इलायची, नारिकेल बीज के छोटे टुकड़े, सोने तथा चाँदी के पात्र, कपूर और केसर – इन पदार्थों को मिलाना चाहिए.

मगध देश में उत्पन्न होने वाले, श्वेतवर्ण, पके हुए, पुराने, दृढ तथा रसमय ताम्बूल शंबरासुर के शत्रु कामदेव की प्रसन्नता के लिए अर्पित करना चाहिए. उसके बाद मोम से बनाई गई बत्तियों से कामदेव का नीराजन करें और पुनः पुष्पांजलि प्रदान करें.इसके बाद उनके नामों से प्रार्थना करें जो इस प्रकार से हैं – समस्त उपमानों में सुन्दर तथा भगवान् का पुत्र “प्रद्युम्न” मीनकेतन, कंदर्प, अनंग, मन्मथ, मार, कामात्मसम्भूत, झषकेतु और मनोभव. कस्तूरी से सुशोभित जिनका वक्षस्थल आलिंगन के चिह्नों से अलंकृत है.

हे पुष्पधन्वन ! हे शंबरासुर के शत्रु ! हे कुसुमेश ! हे रतिपति ! हे मकरध्वज ! हे पंचेश ! हे मदन ! हे समर ! हे सुन्दर ! देवताओं की सिद्धि के लिए आप शिव के द्वारा दग्ध हो गए, उसी कार्य से आप परोपकार की मर्यादा कहे जाते हैं. आपके दिग्विजय करने में वसंत की सहायता निमित्तमात्र है. इंद्र दिन-रात आपका मनोरंजन करने में लगे रहते हैं क्योंकि अपने पद से च्युत होने की शंका में वे तपस्वियों से भयभीत रहते हैं. आपके अतिरिक्त दृढ मन वाला कौन है जो शिवजी से विरोध कर सकता है.

परब्रह्मानन्द के समान आनंद देनेवाला आपके अतिरिक्त दुसरा कौन है तथा महामोह की सेनाओं में आपके समान तेजस्वी कौन है. अनिरुद्ध के स्वामी और मलयगिरि पर उत्पन्न चन्दन तथा अगरु से सुवासित विग्रह वाले जो देवेश कृष्णपुत्र है, वह आप ही हैं. हे शरत्कालीन चन्द्रमा के उत्तम मित्र ! हे जगत की सृष्टि के कारण ! जगत पर विजय के समय दक्षिण दिशा तथा पनवनदेव आपके सहायक थे. हे नाथ ! आपका अस्त्र महान, निष्फल न होनेवाला, अत्यंत दूर तक जाने वाला, मर्मस्थल का छेदन करने वाला, करुनाशून्य तथा प्रतिकाररहित है. सुना गया है कि वह अत्यंत कोमल होते हुए भी महान क्षोभ करने वाला और अपने तुल्य पदार्थ को भी दर्शन मात्र से ही क्षुभित करने वाला है.

जगत पर विजय करने में सहायक होने से प्रवृत्ति ही आपका मुख्य अलंकार है. हे विभो ! आपने सभी श्रेष्ठ देवताओं को उपहास के योग्य बना दिया क्योंकि ब्रह्माजी अपनी पुत्री में कामासक्त हो गए, विष्णु जी वृंदा में अनुरक्त कहे गए है और शिवजी परस्त्री के कारण अस्पृश्य हो गए. हे मानद ! यह वर्णन मैंने मुख्य रूप से किया है, अधिक कहने से क्या लाभ ! इस लोक में अपने वश में रहने वाले ब्राह्मण विरले हैं. अतः हे भगवन ! इस की गई पूजा से आप प्रसन्न हों.

श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन पूजा करके कामदेव प्रवृत्ति मार्ग के विषयासक्त व्यक्ति को अत्यधिक पराक्रम तथा शक्ति करते हैं और निवृत्ति मार्ग में संलग्न व्यक्ति से अपने विकार को हर लेते हैं. श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि में अपनी पूजा के द्वारा संतुष्ट होकर ये कामदेव सकाम पुरुष को अनेक प्रकार के अलंकारों से भूषित तथा मनोरम स्त्रियां प्रदान करते हैं और दीर्घजीवी, गुणों से संपन्न, सुख देने वाले तथा श्रेष्ठ वंश परंपरा वाले अनेक पुत्र देते हैं. हे मानद ! त्रयोदशी तिथि का जो शुभ कृत्य है उसे मैंने कह दिया, अब चतुर्दशी तिथि में जो करना चाहिए, उसे सुनिए.

अष्टमी को देवी का पवित्रारोपण करने को मैंने आपसे कहा है, वह यदि उस दिन न किया गया हो तो चतुर्दशी के दिन पवित्रक धारण कराये. चतुर्दशी तिथि को त्रिनेत्र शिव को पवित्रक अर्पण करना चाहिए. इसमें पवित्रक धारण कराने की विधि देवी तथा विष्णु जी की पवित्रक विधि के समान ही है, केवल प्रार्थना तथा नाम आदि में अंतर कर लेना चाहिए. शैव, आगम तथा जाबाल आदि ग्रंथों में इसकी जो विधि है, उसी को मैंने कहा है. विकल्प से इसमें जो कुछ विशेष है, उसे मैं आपको बताता हूँ.

ग्यारह अथवा अड़तालीस अथवा पचास तारों का समान ग्रंथि तथा समान अंतराल वाला पवित्रक बनाना चाहिए. पवित्रक बारह अंगुल प्रमाण के, आठ अंगुल प्रमाण के, चार अंगुल प्रमाण के अथवा पूजित शिवलिंग के विस्तार के प्रभाव वाले बनाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिए अर्पण कर देने चाहिए. विधि पहले बताई गई है फल आदि पहले कहे जा चुके हैं. जो इस व्रत को करता है, वह कैलाश लोक प्राप्त करता है. हे वत्स ! मैंने यह सब आपसे कह दिया अब आप और क्या सुनना चाहते है?

|| इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अंतर्गत ईश्वरसनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में “त्रयोदशी-चतुर्दशी कर्तव्य कथन” नामक बीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ||

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https://chanderprabha.com/2019/04/28/shravan-maas-mahatmya-21va-adhyay/