बीमारी कब होगी?

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एक अच्छे स्वास्थ्य को देखने के लिए जन्म कुंडली में कई बातों पर ध्यान देना जरुरी है केवल लग्न अथवा लग्नेश का संबंध छठे, आठवें अथवा बारहवें से होने पर स्वास्थ्य विकार नहीं हो सकते। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के लिए तो सबसे पहले जन्म कुंडली में योगों का होना जरुरी है अगर जन्म कुंडली में बिमारी के योग ही नहीं है तो व्यक्ति स्वस्थ रहेगा। योगों के साथ-साथ हम जन्म कुंडली के लग्न तथा लग्नेश को भी देखें कि वो बली हैं या नहीं ! यहां बली होने का अर्थ है कि पाप अथवा अशुभ ग्रहों या भावों का प्रभाव इन पर नहीं होना चाहिए। नीच अथवा शत्रु राशि में नहीं होने चाहिए और वर्ग कुंडलियों में भी इन दोनों का संबंध शुभ भावों तथा शुभ ग्रहों से होना चाहिए।

स्वास्थ्य के लिए सबसे पहले हम जन्म कुंडली का विश्लेषण करेगें कि उसमें लग्न व लग्नेश की क्या स्थिति है, फिर नवाँश कुंडली में लग्नेश की स्थिति देखेगें फिर स्वास्थ्य संबंधी जो वर्ग कुंडलियाँ हैं उनमें लग्नेश की स्थिति का विश्लेषण करेगें और उन वर्ग कुंडलियो के लग्न व लग्नेश की स्थिति भी देखनी जरुरी है कि वह बली हैं या निर्बल है। डी-3 चार्ट, डी-12 चार्ट, डी-30 चार्ट का विश्लेषण स्वास्थ्य को देखने के लिए किया जाता है। डी-30 को हम त्रिशाँश कुंडली के नाम से जानते हैं जिसका अध्ययन केवल अरिष्ट देखने के लिए किया जाता है। जो कम्यूटर में सोफ्टवेयर होता है कुंडली बनाने के लिए उन सभी के अनुसार त्रिशाँश कुंडली बनाने का एक ही तरीका होता है कि 30 अंशों को 12 बराबर भागों में बांट दिया जाए और फिर उनमें सभी ग्रहों को बिठा दिया जाए।

अरिष्ट देखने के लिए एक वाराणसी त्रिशाँश कुंडली भी होती है जिसका उपयोग शायद ही कोई करता हो। इस कुंडली से अरिष्ट काफी स्पष्ट रुप से दिखाई देता है और परिणाम सटीक मिलते हैं। यदि किसी बीमार की कुंडली सामने आती है तो उस समय “कोट चक्र” से भी काफी कुछ परिणाम सामने आ सकते हैं। स्वास्थ्य के संबंध में अगर कोई प्रश्न करता है तब केवल जन्म कुंडली देखकर ही अनुमान नहीं लगाना चाहिए अपितु स्वास्थ्य संबंधी जो मापदण्ड ज्योतिष के अनुसार तय किए गए हैं उन सभी का विवेचन ध्यानपूर्वक करना चाहिए।  

कुंडली को देखने के बाद दशाक्रम देखना जरुरी है कि किस भाव की दशा चल रही है और दशानाथ पीड़ित है कि नहीं या दशानाथ का संबंध गोचर में अशुभ के साथ तो नहीं बन रहा है? दशानाथ/अन्तर्दशानाथ गोचर में अशुभ नक्षत्रों से तो होकर नहीं गुजर रहे हैं आदि बहुत सी बातों को ध्यान में रखकर फलादेश करना चाहिए। दशाओं का संबंध मृत्युभाग में स्थित किसी ग्रह से बन रहा है या नहीं देखना चाहिए, 64वें नवाँश, 22वें द्रेष्काण अथवा 85वें द्वादशांश आदि में स्थित ग्रह का विश्लेषण करना जरुरी है कि कहीं उनकी दशा/अन्तर्दशा में कोई विकार उत्पन्न तो नहीं होगा। इसके साथ ही छिद्र ग्रहों की दशा को भी देख लेना चाहिए।

बीमारी के संबंध में ग्रहों, भावों तथा राशियों से संबंधित बिमारियों के कारकत्वों का पता होना चाहिए कि किस भाव से या किस ग्रह से अथवा किस राशि से कौन सी बीमारी हो सकती है। बीमारी से संबंधित क्लासिकल योग भी पता होने जरुरी है जो फिक्स हैं कि कुंडली में ये योग मौजूद है तो ये बीमारी होगी। एक ही भाव से एक से ज्यादा स्वास्थ्य विकार देखे जाते हैं तो ऎसी स्थिति में ग्रहों से संबंधित बिमारियाँ भी पता होनी चाहिए। उदाहरण के लिए दिल की बीमारी के लिए सूर्य का पीड़ित होना जरुरी है लेकिन जरुरी नहीं कि जिन लोगों की जन्म कुंडली में सूर्य पीड़ित है वह सभी दिल के मरीज हों इसलिए दिल की बीमारी के लिए सूर्य के साथ चौथा भाव/चतुर्थेश, पांचवाँ भाव/पंचमेश तथा चंद्रमा को भी देखेगे (चंद्रमा चौथे भाव का कारक है इसलिए देखेगें)। जब इन सब पर अत्यधिक पीड़ा होगी और वर्ग कुण्डलियों में भी अच्छी हालत नहीं होगी तब बीमारी होगी।  

बीमारी किस समय होगी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, इसके लिए ध्यानपूर्वक कुंडली का अध्ययन जरुरी है क्योंकि कुछ बिमारियाँ जन्मजात होती हैं तो कुछ समय विशेष पर होती हैं। जो जन्मजात होती है वो जातक जन्म के साथ बीमारी के योग लेकर पैदा होता है। जो समय के साथ होती हैं उनके लिए योग के साथ ग्रहों की स्थिति तथा दशाओं का अध्ययन जरुरी है। जरुरी नहीं कि 6, 8 या 12वें भाव की दशा में ही बीमारी हो। बीमारी मारकेश की दशा में भी हो सकती है, तृतीयेश की दशा में भी हो सकती है या किसी भी पीड़ित ग्रह की दशा में हो सकती है। बीमारी कितने समय तक रहेगी ये ग्रह के दशाक्रम पर निर्भर करेगा।

ये एक शोध का विषय है जिसमें अभी बहुत सी रिसर्च होनी बाकी है।