रत्नों का शुद्धिकरण

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ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए रत्न धारण की सलाह आमतौर पर दे दी जाती है लेकिन रत्नों को धारण करने से पूर्व उनका शुद्धिकरण आवश्यक है। जब कोई भी रत्न खरीदा जाता है अथवा किसी के द्वारा दिया जाता है तब उस रत्न के पीछे का इतिहास कोई नहीं जानता कि क्या है अर्थात रत्न किन हाथों से और किन-किन प्रक्रियाओं से गुजर कर व्यक्ति तक पहुंचा है, ये कोई नहीं जान पाता इसलिए रत्न धारण करने से पूर्व उसे शुद्ध किया जाना चाहिए। जिस प्रकार मंदिर में मूर्त्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है उसी प्रकार रत्नों को भी प्रतिष्ठित किया जाता है जिससे वह अपने शुभ फलों में वृद्धि करें।

रत्नों के शुद्धिकरण के कई प्रकार हैं जिसमें सबसे प्रचलित पंचामृत (कच्चा दूध, दही, शुद्ध घी, गंगाजल और शहद मिलाकर पंचामृत बनता है) से स्नान कराकर उसके बाद रत्न को फिर से गंगाजल से धोकर साफ कपड़े से पोंछकर शुद्ध घी के दीपक की लौ दिखाई जाती है फिर जिस ग्रह का रत्न है उस ग्रह का मंत्र 108 बार पढ़कर रत्न को धारण करते हैं। रत्न को दाएँ हाथ में रखकर तब मंत्र पढ़ना है। इस प्रक्रिया में रत्न को सुबह सूर्योदय से एक घंटे के भीतर शुद्ध करके पहना जाता है। मान लीजिए बुध का रत्न धारण करना है तब शुक्ल पक्ष के बुधवार को सुबह सूर्योदय से एक घंटे के भीतर सभी प्रक्रियाएँ पूरी करके रत्न को शुद्ध मन से धारण कर लेना चाहिए।

इसके अलावा रत्नों को शुद्ध करने के लिए पंच तत्वों की सहायता भी कई लोग लेते हैं और कई व्यक्ति पाँचों का एक साथ प्रयोग करते हैं तो कई एक-एक का उपयोग भी करते हैं। रत्नों को शुद्ध करने का सबसे सरल तरीका है उन्हें कुछ समय के लिए तेज बहते पानी में छोड़ देना अथवा दो या तीन दिन अथवा एक सप्ताह के लिए गंगाजल में रख देना चाहिए (जिस बर्तन में रत्न डुबोकर रखना है वह चाँदी का होना चाहिए और चाँदी का बर्तन नहीं है तब किसी साफ बर्तन का उपयोग करना चाहिए) अथवा एक पतले से मलमल के कपड़े अथवा पतले सूती कपड़े में रत्न को बाँधकर उसे घर के नल के नीचे बाँध कर नल को थोड़ा सा खोल देना चाहिए (इतना कि पानी की बहुत पतली धार निकले) इससे रत्न की जो नकारात्मक ऊर्जा है या व्यर्थ की जो ऊर्जा है वह बह जाएगी।

रत्न की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करके उसे शुद्ध करने के सूर्य की ऊष्मा का उपयोग भी किया जा सकता है। इसके रत्न को एक पूरे दिन के लिए सूर्य की सीधी किरणों के नीचे रखना चाहिए ताकि नकारात्मक ऊर्जा को सूर्य पूरी तरह सोख ले और रत्न को शुद्ध कर दे। यह प्रक्रिया एक दिन में पूरी हो सकती है अथवा आप संध्या समय में रत्न को अपने हाथ में लेकर उसकी ऊर्जा को महसूस करें और देखें कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं। अगर आप अच्छा महसूस करते हैं तब इसका अर्थ है कि रत्न शुद्ध हो गया है और अगर आप अच्छा महसूस नहीं करते हैं तब इसका अर्थ है कि आपको एकाध दिन और रत्न को सूर्य की गर्मी में रखना होगा।

कुछ रत्नों को जमीन में एक सप्ताह तक गाड़कर रखने से भी उनका शुद्धिकरण हो जाता है। एक सप्ताह बाद रत्न को बाहर निकालकर उसे धोकर सुखाकर धारण किया जा सकता है।  

रत्नों के शुद्धिकरण के जो तरीके पानी, सूर्य अथवा जमीन में गाड़ने के बताए गए हैं वह हर रत्न पर लागू नहीं होगें इसलिए सबसे पहला तरीका अनुकूल है उसी को अपनाना चाहिए। यदि कोई अअन्य तरीके भी अपनाता है तब जो रत्न समुद्र अथवा पानी से निकलते हैं केवल उन्हीं को पानी द्वारा शुद्ध किया जाना चाहिए जैसे मोती तथा मूँगा समुद्र से मिलता है तो इन्हें पानी द्वारा शुद्ध किया जाना चाहिए।

मोती तथा मूँगा के अलावा जो रत्न जमीन से खोदकर निकाले जाते हैं उन्हें जमीन में गाड़कर शुद्ध किया जा सकता है लेकिन उसके बाद भी पंचामृत से स्नान कराने की प्रक्रिया कराना आवश्यक है।

कुछ लोग पूरे षोडशोपचार से रत्नों को शुद्ध करने का परामर्श देते हैं अथवा वे स्वयं षोडशोपचार से रत्न को शुद्ध करके जातक को देते हैं। प्रक्रिया कोई भी लेकिन रत्नों को शुद्ध किए बिना धारण नहीं करना चाहिए अन्यथा वह शुभ फल प्रदान नहीं करेगें।