जन्म कुंडली में धनयोग कई प्रकार से बनता है। एक धनयोग तो प्रत्यक्ष रुप से बनता है तो कई कुंडलियों में व्यक्ति अपने परिश्रम से धनवान बनता है तो कई कुंडलियाँ ऎसी भी होती हैं जिनमें धन अकस्मात बिना किसी परिश्रम के मिल जाता है। कुंडली में मिलने वाले अनेकों प्रकार के धनयोग का वर्णन हम अपने इस लेख में करेगें।
- जन्म कुंडली में दूसरे (2H), पांचवें (5H), नवम (9H) और एकादश भाव (11H) का संबंध किसी भी प्रकार से (युति, दृष्टि, स्थिति अथवा राशि परिवर्तन द्वारा) एक-दूसरे से परस्पर बन रहा है तो यह धनयोग कहलाता है। यह संबंध शुभ भावों में बन रहा है तो उत्तम फल प्राप्त होगें।
- दशमेश(10L) तथा नवमेश (9L) का राशि परिवर्तन होने पर भी धनयोग बनता है बशर्ते ये पाप पीड़ित ना हों।
2) अकस्मात धनयोग
- अगर किसी जन्म कुंडली में द्वितीयेश (2nd Lord) और चतुर्थेश (4th Lord) शुभ ग्रह की राशि में स्थित हैं तो अकस्मात धन प्राप्ति के योग बनते हैं।
- यदि जन्म कुंडली में ग्यारहवें भाव (11th Lord) और दूसरे भाव के स्वामी (2L) दोनों चतुर्थ भाव (4H) में स्थित हों।
- जन्म कुंडली में धनेश(2L), अष्टम भाव(8H) में स्थित हो।
- जन्म कुंडली में पंचम भाव(5H) में चंद्रमा स्थित हो और उस पर शुक्र(Venus) की पूर्ण दृष्टि हो, यह तभी संभव होगा जब शुक्र एकादश भाव(11H) में स्थित होगा।
- जन्म कुंडली में लग्न का स्वामी(Ascendant Lord) दूसरे भाव(2H) में हो, दूसरे भाव का स्वामी(2L) एकादश भाव(11H) में स्थित हो और एकादश भाव का स्वामी(11L) लग्न में स्थित हो।
3) आमदनी योग
- यदि जन्म कुंडली में एकादश भाव का स्वामी(11L) सूर्य अथवा चन्द्रमा है तो व्यक्ति सरकार की नौकरी से आमदनी पा सकता है।
- यदि मंगल एकादशेश(11L) हो तो व्यक्ति को अच्छा पद मिल सकता है।
- यदि जन्म कुंडली में एकादशेश बुध हो तो विद्या से, पुत्र से अथवा कुटुम्ब से धन मिल सकता है।
- यदि एकादशेश गुरु है तब धार्मिक कार्यों से धन आ सकता है।
- यदि एकादशेश शुक्र है तो स्त्री द्वारा धन आ सकता है, मनिहारी (चूड़ियाँ बेचनी वाली) की दुकान से, घोड़ों से लाभ हो सकता है।
- यदि एकादशेश शनि हो तो कुवृत्ति से धन मिल सकता है।
(उपरोक्त योगों के साथ-साथ जन्म कुंडली का पूर्ण विश्लेषण करना चाहिए क्योंकि एक योग के आधार पर पूरा फलकथन कभी नहीं कहा जा सकता है।)
4) अनायास धनयोग
यदि जन्म कुंडली में द्वितीयेश तथा लग्नेश का परस्पर राशि परिवर्तन हो रहा है तब अनायास धन की प्राप्ति जीवन में हो सकती है। (अगर पीड़ा होती है तब ये योग कमजोर हो जाएगा)
5) इन्दु योग
यह योग जैमिनी में उपयोग होता है और इस योग का बलाबल अष्टकवर्ग से भी देखा जाता है। इन्दु अर्थात चंद्रमा तो इस गणना में चंद्रमा की भूमिका अहम होती है। इस योग को देखने के लिए कुछ गणना जन्म कुंडली में की जाती है। गणना करने के लिए राहु तथा केतु को शामिल नहीं किया जाता है और बाकी बचे सात ग्रहों की अंक संख्या निर्धारित की गई है जो इस प्रकार से है –
सूर्य 30
चंद्रमा 16
मंगल 6
बुध 8
गुरु 10
शुक्र 12
शनि 1
अब लग्न से नवमेश(9L) तथा चंद्रमा से नवमेश जो भी राशि आती है उसके स्वामियों की संख्या को जोड़कर उसे 12 से भाग दे देते है और जो शेष बचा उसे नोट कर लेते है, अगर शेष शून्य बचता है तब ऎसी स्थिति में 12 की संख्या लेते हैं। अब जन्म कुंडली में चंद्रमा को देखेगे कि वह किस भाव में स्थित है और जो संख्या शेष बची है तो चंद्रमा से गिनकर उस शेष बची संख्या तक गिनती करेगें।
मान लीजिए किसी कुंडली में चंद्रमा सातवें भाव में स्थित है और शेष आठ बचता है तो सातवें भाव से आठ भाव आगे तक गिनेगें जो दूसरा भाव आता है। इस प्रकार दूसरा भाव इन्दु लग्न बनता है। अब इन्दु लग्न का बल देखेंगे कि इसमें अशुभ ग्रह तो नहीं है अथवा इन्दु लग्नेश अशुभ भावों में अथवा अशुभ ग्रहों के साथ तो स्थित नहीं है। जितना बली ये योग होगा उतना अधिक धनकारक होगा।
यदि इन्दु लग्न में कोई ग्रह स्थित नहीं है तो ज्यादा शुभकारक नहीं माना जाता है तब केवल इन्दु लग्नेश की स्थिति देखी जाती है। अगर इन्दु लग्न में कोई एक शुभ ग्रह स्थित है तब व्यक्ति करोड़पति तक हो सकता है। यदि इन्दु लग्न में कोई एक पाप ग्रह स्थित है तब व्यक्ति लखपति होता है और दो पाप ग्रह स्थित है तब व्यक्ति हजारों में खेलता है।
6) करोड़पति योग
- यदि किसी जन्म कुंडली में तीसरे भाव(3H) में सूर्य, नवम भाव(9H) में चंद्रमा और पाँचवें भाव(5H) में बृहस्पति(Jupiter) स्थित है तब व्यक्ति करोड़पति हो सकता है। कोई ग्रह पीड़ित नहीं होना चाहिए।
- यदि कुंडली में चंद्रमा से छठे(6H), सातवें(7H) और आठवें भाव(8H) में शुभ ग्रह हों अथवा इनमें से किन्हीं दो भावों में भी शुभ ग्रह स्थित है तब जमींदार करोड़पति होता है।
7) कुबेर योग
यदि जन्म कुंडली के पंचम भाव(5H) में बृहस्पति हो, नवम भाव(9H) में चंद्रमा स्थित हो और तीसरे भाव(3H) में सूर्य स्थित हो तब कुबेर योग बनता है जिसमें व्यक्ति के घर में लक्ष्मी का आगमन धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।
8) धनवृद्धि योग
- जन्म कुंडली में गुरु धन भाव का स्वामी(2L) होकर नवम भाव में अपने नक्षत्र में स्थित हो (ऎसा वृश्चिक लग्न में ही संभव होगा) तो व्यक्ति के धन में दिनोंदिन वृद्धि होगी।
- अगर कुंडली में उपरोक्त बन रहा है तब जातक को पैतृक जमीन-जायदाद भी मिलती है।
9) धन संग्रह योग
- यदि धन भाव का स्वामी(2H) मंगल जन्म कुंडली में बुध के नक्षत्र विशेषकर ज्येष्ठा में स्थित हो व्यक्ति धन का संग्रह करता है। (ऎसा तुला लग्न में ही संभव होगा)
- यदि बुध के आश्लेषा नक्षत्र में धनेश(2L) मंगल स्थित है तब व्यक्ति जमीन-जायदाद का संग्रह करता है और धनेश मंगल यदि रेवती नक्षत्र में स्थित है तब जातक कंजूसी के कारण धन का संग्रह करता है।
10) धनी योग
- लग्नेश जन्म कुंडली के एकादश भाव को देख रहा है तब जातक धनवान होता है और धनी होता है।
- जन्म कुंडली के दशम भाव(10H) में चंद्रमा तथा बृहस्पति स्थित हैं तब जातक धनी होने के साथ-साथ विद्वान, दानी व कीर्तिवान भी होता है।
- जन्म कुंडली में शुक्र पुरुष राशि में एकादश भाव में स्थित हो तब जातक धनी होता है।
- अगर आरुढ़ लग्न से एकादश भाव को दृष्ट करने वाले कई ग्रह है तो जातक धनी होता है।
- माना जाता है कि एकादश भाव में गुरु के स्थित होने पर जातक 32वें वर्ष से अथवा उसके बाद से धन में बढ़ोतरी होती है।
- यदि किसी कुंडली में लग्न(Ascendant) में बृहस्पति स्थित है और बृहस्पति तथा शनि के मध्य सारे ग्रह आते हैं तब ऎसा व्यक्ति लक्ष्मीपति होता है।
11) परधन प्राप्ति योग
- जन्म कुंडली के आठवें भाव(8H) में उच्च का गुरु पूर्ण बलवान रुप में स्थित हो तो जातक को पराया धन मिलता है।
- जन्म कुंडली में वृष, तुला और मीन राशि का शुक्र यदि अष्टम भाव में स्थित हो तब भी पराया धन जातक को मिल सकता है।
- यदि जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव(4H) में मकर अथवा कुंभ राशि में शनि स्थित हो तब भी जातक को परधन प्राप्त हो सकता है।
- चतुर्थ भाव में उच्च का शुक्र स्थित हो उस पर मंगल की दृष्टि होने पर पराया धन मिलने के योग बनते हैं।
12) पुत्र द्वारा धन योग
कई जातक ऎसे भी होते हैं जो जीवनभर परिश्रम तो करते हैं लेकिन पर्याप्त धन नहीं जुटा पातें लेकिन जब पुत्र धन कमाने लायक होता है तब उसके द्वारा धन प्राप्त करते हैं अथवा पुत्र की सहायता से धन मिलता है। आइए देखें कुंडली के ऎसे कौन से योग होते हैं :-
- यदि किसी जन्म कुंडली में द्वितीयेश(2L) बली होकर पंचमेश(5L) के साथ बैठा है तो पुत्र द्वारा धन प्राप्ति का योग बनता है।
- जन्म कुंडली में लग्नेश बली हो, द्वितीयेश व पंचमेश के साथ संबंध बन रहा हो तो व्यक्ति का भाग्योदय पुत्र द्वारा होने की संभावना बनती है।
- यदि कुंडली में पंचमेश, नवम भाव(9H) में स्थित हो तथा नवमेश(9L) भी वहीं हों तो पुत्र अथवा संतान द्वारा धन मिलता है।
- पुत्रकारक गुरु जन्म कुंडली के पंचम भाव में स्थित हो और उस पर नवमेश की दृष्टि हो तब भी ये योग बनता है।
- पंचमेश तथा बृहस्पति, नवमेश से युक्त हो तब भी धन पुत्र द्वारा मिलता है।
13) पैतृक धन योग
- जन्म कुंडली के दूसरे भाव में कोई उच्च का ग्रह स्थित हो तब पैतृक धन मिलने का योग बनता है।
- द्वितीयेश(2L) जन्म कुंडली में नवम भाव में स्थित हो।
- धनेश(2L) अपने घर में ही स्थित हो लेकिन एकादशेश(11L) से दृष्ट ना हो।
- जन्म कुंडली के पंचम भाव(5H) में नवमेश तथा द्वितीयेश स्थित हों।
- जन्म कुंडली के दूसरे भाव में केतु स्थित हो अथवा एकादश भाव में द्वितीयेश स्थित हो।
जन्म कुंडली का पहला भाव तन भाव कहलाता है तो दूसरा भाव पैतृक धन होता है, अत: दूसरे भाव का, दूसरे भाव के स्वामी का पंचम व नवम भाव के साथ संबंध होने से पैतृक संपत्ति मिलने के योग बनते हैं।
14) माता से धन प्राप्ति योग
जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से माता को देखा जाता है और दूसरा भाव धन भाव होता है तो किसी कुंडली में चतुर्थेश और द्वितीयेश की युति होने पर माता द्वारा धन मिलने की संभावना बनती है। अगर किसी कुंडली में द्वितीयेश पर चतुर्थेश की दृष्टि हो अथवा चतुर्थेश पर द्वितीयेश की दृष्टि पड़ रही हो तब भी माता से धन मिलता है। यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में चंद्रमा दशम भाव में स्थित है तब ऎसा व्यक्ति खेती अथवा व्यापार करता है परंतु माता द्वारा धन भी उसे मिलता है।
15) लक्ष्मी योग
जन्म कुंडली के अनुसार सांसारिक सुखों की प्रबलता शुक्र से देखी जाती है और बृहस्पति ग्रह को धन का कारक मानने से धन-संचय का विचार इनसे किया जाता है।
- जन्म कुंडली में लग्नेश, द्वितीयेश और एकादशेश तीनों स्वग्रही हों तब व्यक्ति धनी-मानी होगा।
- द्वितीयेश तथा एकादशेश का परस्पर राशि परिवर्तन हो रहा हो अथवा एकादशेश स्वग्रही हो तब भी लक्ष्मी प्राप्ति योग बनता है।
- लग्नेश कुंडली के दूसरे भाव में स्थित हो और द्वितीयेश कुंडली के एकादश भाव में स्थित हो अथवा एकादशेश कुंडली के दूसरे भाव में स्थित हो तो लक्ष्मी योग बनता है।
- जन्म कुंडली में चंद्रमा, शुक्र के साथ शुभ राशि में स्थित हो लेकिन छठे भाव में स्थित ना हो।
17) लॉटरी योग
- यदि जन्म कुंडली के पांचवें भाव में चंद्रमा बैठा हो और उस पर शुक्र की दृष्टि है तब जातक को लॉटरी द्वारा धन की प्राप्ति होती है।
- जन्म कुंडली में द्वितीयेश तथा चतुर्थेश शुभ ग्रह की राशि में स्थित हों, शुभ ग्रह से युक्त हों तब भी लॉटरी अथवा जमीन से गड़ा धन मिलता है।
- द्वितीयेश तथा एकादशेश परस्पर राशि परिवर्तन कर रहे हैं तो भी लॉटरी लगने की संभावना बनती है।
- आठवें भाव में शुभ ग्रह होने से लॉटरी योग बनता है।
18) ससुराल से धन प्राप्ति
- जन्म कुंडली में बली धनेश, सप्तम भाव(7H) में स्थित हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो (अगर शुक्र की दृष्टि ना हो तब भी ये योग बनता है)।
- द्वितीयेश तथा सप्तमेश(7L) कुंडली में एक साथ स्थित हों और उन पर शुक्र की दृष्टि हो।
- जन्म कुंडली में चतुर्थेश(4L), सप्तम भाव में स्थित हो और शुक्र कुंडली में चतुर्थ भाव में स्थित हो तो भी ये योग बनता है।
- जन्म कुंडली में सप्तमेश तथा नवमेश की युति हो और दोनों पर शुक्र की दृष्टि पड़ने पर भी ये योग बनता है।