श्री ललिता त्रिशती

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ऊँ ककार रूपा कल्याणी कल्याण गुण शालिनी।

कल्याण शैलनिलया कमनीया कलावती।।1।।

कमलाक्षी कल्मषघ्नी करुणामृतसागरा।

कदम्ब कानन आवासा कदम्बकुसुमप्रिया।।2।।

कंदर्पविद्या कंदर्प जन कापांग वीक्षणा।

कर्पूर वीटी सौरभ्य कल्लोलित कुकुब् तटा।।3।।

कलिदोषहरा कंजलोचना कम्रविग्रहा।

कर्मादि साक्षिणी कारयित्री कर्मफलप्रदा।।4।।

एकाररूपा च एकाक्षरी एकानेकाक्षराकृति:।

एतत् अदित्य निर्देश्या च एकानंद चित् आकृति:।।5।।

एवम् इति आगम बोध्या चैकभक्तिमदर्चिता।

एकाग्रचित्तनिर्ध्याता चैषणारहितादृता।।6।।

एला सुगन्धि चिकुरा चैन: कूटविनाशिनी।

एकभोगाच एकरसा च एक ऎश्वर्य प्रदायिनी।।7।।

एकात पत्र साम्राज्य प्रदा च एकान्त पूजिता।

एधमानप्रभा च ऎजद् अनेक जगदीश्वरी।।8।।

एकवीरा दिसंसेव्या च ऎक प्राभव शालिनी।

ईकार रूपिणी शित्री च ईप्सित अर्थ प्रदायिनी।।9।।

ईदृगित्यविनिर्देश्या चेश्वरत्वप्रदायिनी।

ईशान आदि ब्रह्ममयी च ईशित आदि अष्ट सिद्धिदा।।10।।

ईक्षित्रि क्षण सृष्टि अंड कोटि: ईश्वर वल्लभा।

ईडिता च ईश्वर अर्ध अंग शरीरेश अधिदेवता।।11।।

ईश्वर प्रेणकरी च ईश ताण्डव साक्षिणी।

ईश्वर उत्संग निलया च ईतिबाधा विनाशिनी।।12।।

ईहारविरहिता च ईश शक्ति: ईषित स्मित आनना।

लकाररूपा ललिता लक्ष्मीवाणीनिषेविता।।13।।

लाकिनी ललनारूपा लसद्दाडिमपाटला।

ललन्तिका लसद् भाला ललाट नयन अर्चिता।।14।।

लक्षण उज्जवल सर्वांगी लक्ष कोटि अंड नायिका।

लक्ष्यार्था लक्षणागम्या लब्धकामा लतातनु:।।15।।

ललाम राज दलिका लंबि मुक्ता लता अंचिता।

लम्बोदर प्रसूर् लभ्या लज्जाढ्या लयवर्जिता।।16।।

ह्रींकाररूपा ह्रींकारनिलया ह्रींपदप्रिया।

ह्रींकारबीजा ह्रींकारमंत्रा ह्रींकारलक्षणा।।17।।

ह्रींकारजपसुप्रीता ह्रीमति ह्रींविभूषणा।

ह्रींशीला ह्रींपदाराध्या ह्रींगर्भा ह्रींपदाभिधा।।18।।

ह्रींकारवाच्या ह्रींकारपूज्या ह्रींकारपीठिका।

ह्रींकारवेद्या ह्रींकारचिन्त्या ह्रींह्रींशरीरिणी।।19।।

हकाररूपा हल धृक् पूजिता हरिणेक्षणा।

हरिप्रिया हराराध्या हरिब्रह्मेन्द्रवन्दिता।।20।।

हय आरूढ़ा सेविता अंघ्रि: हय मेध सम अर्चिता।

हर्यक्षवाहना हंसवाहना हतदानवा।।21।।

हत्यादिपापशमनी हरिश्वादिसेविता।

हस्ति कुंभ उत्तुंग कुचा हस्तिकृत्तिप्रियांगना।।22।।

हरिद्राकुंकुमादिग्धा हय: अश्व आदि अमर अर्चिता।

हरिकेशसखी हादिविद्या हालामदालसा।।23।।

सकाररूपा सर्वज्ञा सर्वेशी सर्वमंगला।

सर्वकर्त्री सर्वभर्त्री सर्वहर्त्री सनातनी।।24।।

सर्वानवद्या सर्वांगसुन्दरी सर्वसाक्षिणी।

सर्वात्मिका सर्वसौख्यदात्री सर्वविमोहिनी।।25।।

सर्वाधारा सर्वगता सर्वापगुणवर्जिता।

सर्वारुणा सर्वमाता सर्वाभरणभूषिता।।26।।

ककारार्था कालहन्त्री कामेशी कामितार्थदा।

कामसंजीवनी कल्या कठिनस्तनमण्डला।।27।।

करभोरु: कलानाथमुखी कचजिताम्बुदा।

कटाक्षस्यन्दिकरुणा कपालिप्राणनायिका।।28।।

कारुण्यविग्रहा कान्ता कान्तिधूतजपावलि:।

कलालापा कम्बुकण्ठी करनिर्जितपल्लवा।।29।।

कल्पवल्लीसमभुजा कस्तूरीतिलकोज्ज्वला।

हकारार्था हंस गति: हाटक आभरण उज्जवला।।30।।

हारहारिकुचाभोगा हाकिनी हल्यवर्जिता।

हरित् पति सम् आराध्या हठात्कारहतासुरा।।31।।

हर्षप्रदा हविर्भोक्त्री हार्दसन्तमसापहा।

हल्ल ईश लास्य सन्तुष्टा हंसमन्त्रार्थरूपिणी।।32।।

हानोपादाननिर्मुक्ता हर्षिणी हरिसोदरी।

हाहाहूहूमुखस्तुत्या हानिवृद्धिविवर्जिता।।33।।

हय् अंग वीन हृदया हरि गोप अरुण अंशुका।

लकाराख्या लतापूज्या लय स्थिति उद्भव ईश्वरी।।34।।

लास्य दर्शन संतुष्टा लाभ अलाभ विवर्जिता।

लंघ्येत राज्ञा लावण्यशालिनी लघुसिद्धिदा।।35।।

लाक्षा रस सुवर्ण आभा लक्ष्मण अग्रज पूजिता।

लभ्येतरा लब्धभक्तिसुलभा लांगलायुधा।।36।।

लग्नचामरहस्त श्रीशारदापरिवीजिता।

लज्जापदसमाराध्या लम्पटा लकुलीश्वरी।।37।।

लब्धमाना लब्धरसा लब्ध संपत् समुन्नति:।

ह्रींकारिणी ह्रींकारादि ह्रींमध्या ह्रींशिखामणि:।।38।।

ह्रींकार कुण्ड अग्नि शिखा ह्रींकार शशि चन्द्रिका।

ह्रींकार भास्कर रुचि: ह्रींकार अंभोद चंचला।।39।।

ह्रींकार कंद अंकुरिका ह्रींकार ऎक परायणा।

ह्रींकार दीर्घिका हंसी ह्रींकार उद्यान केकिनी।।40।।

ह्रींकारारण्यहरिणी ह्रींकार आवाल वल्लरी।

ह्रींकारपंजरशुकी ह्रींकार आंगण दीपिका।।41।।

ह्रींकार कंदरा सिंही ह्रींकार अंबुज भृंगिका।

ह्रींकारसुमनोमाध्वी ह्रींकार तरु मंजरी।।42।।

सकारख्या समरसा सकलागमसंस्तुता।

सर्ववेदान्ततात्पर्यभूमि:  सदसदाश्रया।।43।।

सकला सच्चिदानन्दा साध्या सद्गतिदायिनी।

सनकादिमुनिध्येया सदाशिवकुटुम्बिनी।।44।।

सकलाधिष्ठानरुपा सत्त्वरूपा समाकृति:।

सर्वप्रपंच निर्मात्री समान अधिकवर्जिता।।45।।

सर्वोत्तुंगा संगहीना सद्गुणा सकलेष्टदा।

ककारिणी काव्यलोला कामेश्वरमनोहरा।।46।।

कामेश्वरप्राणनाडी कामेशोत्संगवासिनी।

कामेश्वर आलिंगित आंगी कामेश्वरसुखप्रदा।।47।।

कामेश्वरप्रणयिनी कामेश्वरविलासिनी।

कामेश्वरतप: सिद्धि: कामेश्वरमन: प्रिया।।48।।

कामेश्वरप्राणनाथा कामेश्वरविमोहिनी।

कामेश्वरब्रह्मविद्या कामेश्वरगृहेश्वरी।।49।।

कामेश्वराह्लादकरी कामेश्वरमहेश्वरी।

कामेश्वरी कामकोटिनिलया कांक्षितार्थदा।।50।।

लकारिणी लब्धरूपा लब्धधीर्लब्धवांछिता।

लब्धपापमनोदूरा लब्ध अहंकार दुर्गमा।।51।।

लब्ध शक्ति: लब्धदेहा लब्ध ऎश्वर्य समुन्नति:।

लब्धवृद्धिर्लब्धलीला लब्ध यौवन शालिनी।।52।।

लब्ध अतिशय सर्वांग सौन्दर्या लब्धविभ्रमा।

लब्धरागा लब्ध पतिर् लब्ध नाना आगम स्थिति:।।53।।

लब्धभोगा लब्धसुखा लब्धहर्षा भिपूरिता।

ह्रींकारमूर्ति र्हृींकारसौधश्रृंगकपोतिका।।54।।

ह्रींकार दुग्ध अब्धि सुधा रूपा ह्रींकारकमलेन्दिरा।

ह्रींकार मणि द्वीप अर्चि ह्रींकारतरुशारिका।।55।।

ह्रींकार पेटकमणिर् ह्रींकार आदर्श बिम्बिता।

ह्रींकारकोशासिलता ह्रींकारास्थाननर्त्तकी।।56।।

ह्रींकारशुक्तिमुक्तामणि – र्हृींकार बोधिता।

ह्रींकार मय सौवर्ण – स्तंभ विद्रुम पुत्रिका।।57।।

ह्रींकारवेदोपनिषद् ह्रींकाराध्वरदक्षिणा।

ह्रींकारनन्दनाराम नवकल्पद्रुवल्लरी।।58।।

ह्रींकार हिम वद् गंगा ह्रींकार अर्णव कौस्तुभा।

ह्रींकारमन्त्रसर्वस्वा ह्रींकारपरसौख्यदा ऊँ।।59।।