दुसह दोष-दुख, दलनि,
करु देवि दाया ।
विश्व-मूला-Sसि, जन-सानुकूलाSसि,
कर शूलधारिणि महामूलमाया ।।1।।
तडित गर्भांड्ग सर्वांड्ग सुन्दर लसत,
दिव्य पट भव्य भूषण विराजैं ।
बालमृग-मंजु खंजन-विलोचनि,
चन्द्रवदनि लखि कोटि रतिमार लाजैं ।।2।।
रूप-सुख-शील-सीमाSसि, भीमाSसि,
रामाSसि, वामाSसि वर बुद्धि बानी ।
छमुख-हेरंब-अंबासि, जगदंबिके,
शंभु-जायासि जय जय भवानी ।।3।।
चंड-भुजदंड-खंडनि, बिहंडनि महिष
मुंड-मद-भंग कर अंग तोरे ।
शुंभ-निशुंभ कुम्भीश रण-केशरिणि,
क्रोध-वारीश अरि-वृन्द बोरे ।।4।।
निगम-आगम-अगम गुर्वि! तव गुन-
कथन, उर्विधर करत जेहि सहसजीहा ।
देहि मा, मोहि पन प्रेम यह नेम निज,
राम घनश्याम तुलसी पपीहा ।।5।।
(विनय – पत्रिका)