(Kali Stotram For Success)
ब्रह्मविष्णु ऊचतु: – Brahmavishnu Uchatuh
नमामि त्वां विश्वकर्त्रीं परेशीं
नित्यामाद्यां सत्यविज्ञानरूपाम्।
वाचातीतां निर्गुणां चातिसूक्ष्मां
ज्ञानातीतां शुद्धविज्ञानगम्याम्।।1।।
अर्थ – ब्रह्मा और विष्णु बोले – सर्वसृष्टिकारिणी, परमेश्वरी, सत्यविज्ञानरूपा, नित्या, आद्याशक्ति! आपको हम प्रणाम करते हैं. आप वाणी से परे हैं, निर्गुण और अति सूक्ष्म हैं, ज्ञान से परे और शुद्ध विज्ञान से प्राप्य हैं.
पूर्णां शुद्धां विश्वरूपां सुरूपां
देवीं वन्द्यां विश्ववन्द्यामपि त्वाम्।
सर्वान्त:स्थामुत्तमस्थानसंस्था –
मीडे कालीं विश्वसम्पालयित्रीम्।।2।।
अर्थ – आप पूर्णा, शुद्धा, विश्वरूपा, सुरूपा, वन्दनीया तथा विश्ववन्द्या हैं. आप सबके अन्त:करण में वास करती हैं एवं सारे संसार का पालन करती हैं. दिव्य स्थान निवासिनी आप भगवती महाकाली को हमारा प्रणाम है.
मायातीतां मायिनीं वापि मायां
भीमां श्यामां भीमनेत्रां सुरेशीम्।
विद्यां सिद्धां सर्वभूताशयस्था –
मीडे कालीं विश्वसंहारकर्त्रीम्।।3।।
अर्थ – महामायास्वरूपा आप मायामयी तथा माया से अतीत हैं, आप भीषण, श्याम वर्ण वाली, भयंकर नेत्रों वाली परमेश्वरी हैं. आप सिद्ध्यों से सम्पन्न, विद्यास्वरूपा, समस्त प्राणियों के हृदय प्रदेश में निवास करने वाली तथा सृष्टि का संहार करने वाली हैं, आप महाकाली को हमारा नमस्कार है.
नो ते रूपं वेत्ति शीलं न धाम
नो वा ध्यानं नापि मन्त्रं महेशि।
सत्तारूपे त्वां प्रपद्ये शरण्ये
विश्वाराध्ये सर्वलोकैकहेतुम्।।4।।
अर्थ – महेश्वरी! हम आपके रूप, शील, दिव्य धाम, ध्यान अथवा मन्त्र को नहीं जानते. शरण्ये! विश्वाराध्ये! हम सारी सृष्टि की कारणभूता और सत्तास्वरुपा आपकी शरण में हैं.
द्यौस्ते शीर्षं नाभिदेशो नभश्च
चक्षूंषि ते चन्द्रसूर्यानलास्ते।
उन्मेषास्ते सुप्रबोधो दिवा च
रात्रिर्मातश्चक्षुषोस्ते निमेषम्।।5।।
अर्थ – मात:! द्युलोक आपका सिर है, नभोमण्डल आपका नाभिप्रदेश है. चन्द्र, सूर्य और अग्नि आपके त्रिनेत्र हैं, आपका जगना ही सृष्टि के लिये दिन और जागरण का हेतु है और आपका आँख्हें मूँद लेना ही सृष्टि के लिए रात्रि है.
वाक्यं देवा भूमिरेषा नितम्बं
पादौ गुल्फं जानुजंघस्त्वधस्ते।
प्रीतिर्धर्मोSधर्मकार्यं हि कोप:
सृष्टिर्बोध: संहृतिस्ते तु निद्रा।।6।।
अर्थ – देवता आपकी वाणी है, यह पृथ्वी आपका नितम्बप्रदेश तथा पाताल आदि नीचे के भाग आपके जंघा, जानु, गुल्फ और चरण हैं. धर्म आपकी प्रसन्नता और अधर्म कार्य आपके कोप के लिये है. आपका जागरण ही इस संसार की सृष्टि है और आपकी निद्रा ही इसका प्रलय है.
अग्निर्जिह्वा ब्राह्मणास्ते मुखाब्जं
संध्ये द्वे ते भ्रूयुगं विश्वमूर्त्ति:।
श्वासो वायुर्बाहवो लोकपाला:
क्रीडा सृष्टि: संस्थिति: संहृतिस्ते।।7।।
अर्थ – अग्नि आपकी जीह्वा है, ब्राह्मण आपके मुखकमल हैं. दोनों संध्याएँ आपकी दोनों भ्रुकुटियाँ हैं, आप विश्वरुपा हैं, वायु आपका श्वास है, लोकपाल आपके बाहु हैं और इस संसार की सृष्टि, स्थिति तथा संहार आपकी लीला है.
एवंभूतां देवि विश्वात्मिकां त्वां
कालीं वन्दे ब्रह्मविद्यास्वरूपाम्।
मात: पूर्णे ब्रह्मविज्ञानगम्ये
दुर्गेSपारे साररूपे प्रसीद।।8।।
अर्थ – पूर्णे! ऎसी सर्वस्वरूपा आप महाकाली को हमारा प्रणाम हैं. आप ब्रह्मविद्यास्वरुपा हैं. ब्रह्मविज्ञान से ही आपकी प्राप्ति सम्भव है. सर्वसाररूपा, अनन्तस्वरूपिणी माता दुर्गे! आप हम पर प्रसन्न हों.
।।इति श्रीमहाभागवते महापुराणे ब्रह्मविष्णुकृता भद्रकालीस्तुति: सम्पूर्णा।।