माघ माह की गणेश कथा – Story Of Lord Ganesha In Magh Month
सतयुग में हरिश्चन्द्र नाम के राजा राज करते थे. हरिश्चन्द्र अत्यधिक सत्यवादी और बहुत धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे. उनके राज्य में प्रजा हर तरह सुखी व संपन्न थी. उनके राज्य में एक ब्राह्मण रहता था जिसका एक पुत्र था परन्तु ब्राह्मण की मृत्यु हो जाती है जिससे उसकी पत्नी अपने पुत्र को पालती हुई गणेश चतुर्थी का व्रत रखती है. जब ब्राह्मणी का पुत्र कुछ बड़ा हुआ तो घर के आसपास ही वह खेलने लगा.
ब्राह्मणी के घर के पास ही एक कुम्हार भी रहता था. उस कुम्हार को किसी ने बहका दिया कि यदि तू किसी बच्चे की बलि अपने आवा (आवा एक तरह की भठ्ठी होती हैं जिसमें मिट्टी के बर्तन पकाए जाते हैं) में दे देगा तो तेरा आवा सदा जलता रहेगा और बर्तन पकते रहेगें. यह बात ब्राह्मण के मस्तिष्क में बैठ गई. उसकी नजर एक दिन उस ब्राह्मणी के बालक पर पड़ गई जो गणेश जी की मूर्ति से खेल रहा था. उसने बालक को उठाया और उसे आवे में रखकर आग लगा दी.
काफी देर तक जब बालक घर नहीं लौटा तो ब्राह्मणी बहुत दुखी होती है और उसके जीवन की रक्षा के लिए गणेश जी से प्रार्थना करने लगती है. गणेश जी ने उसकी बात सुनी और बालक की जान बच गई. कुम्हार को अब अपने अपराध का बोध हो गया था. अपने इस अपराध बोध के कारण ही वह राजा हरिश्चन्द्र के पास जाता है और अपने इस कुकर्म के लिए क्षमा मांगता है.
राजा हरिश्चन्द्र इस घटना के बारे में ब्राह्मणी से पूछताछ करते हैं तो वह कहती है कि गणेश जी का संकट चौथ का व्रत करने से ही मेरे बच्चे के प्राण बचे हैं. ब्राह्मणी कुम्हार को भी कहती है कि तुम भी इस व्रत को करो इससे तुम्हारे भी सारे संकट व दुख दूर हो जाएंगे.
गणेश संकट चौथ का व्रत – Fast Of Ganesh Sankat Chaturthi
माघ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकट चौथ का व्रत रखा जाता है. इसे संकष्ट चतुर्थी अथवा सकट चौथ भी कहते हैं. व्रत से एक दिन पहले रात्रि में स्त्रियाँ हाथों में मेहंदी भी लगाती हैं. अगले दिन सुबह सवेरे नहा धोकर तैयार होती हैं. तिलों का तिलकुट बनाया जाता है. दोपहर बाद फिर संकट चौथ की कहानी सुनी जाती है. कहानी सुनने के बाद तिलकुट के साथ अन्य सामग्रियाँ रखकर बायना निकालकर सास अथवा ससुर को देते हैं. बायने में अपनी श्रद्धा व यथाशक्ति से कपड़े और रुपये रख सकते हैं.
कहानी सुनते हुए एक पानी का लोटा भरकर रखते हैं और उस पर सतिया बना देते हैं. फिर हाथ में थोड़ा तिलकुट व हरी दूब लेकर कहानी सुनी जाती है. कहानी के बाद तिलकुट साड़ी के पल्ले या चुन्नी के किनारे बाँधकर रख लेते हैं. रात में जब चंद्रमा निकल आता है तब इस तिलकूट को पानी के साथ मिलाकर चाँद को अर्ध्य देते हैं.
संकट चौथ की कहानी – Story Of Sankat Chaturthi
प्राचीन समय में एक साहूकार तथा उसकी पत्नी एक नगर में रहते थे. दोनों ही धर्म-कर्म को नहीं मानते थे जिस कारण उनकी कोई संतान भी नहीं हुई. एक बार साहूकारनी किसी काम से पड़ोसन के घर गई तो पड़ोसन संकट चौथ के व्रत की तैयारी में लगी हुई थी. उसे देख साहूकारनी बोली कि तुम क्या कर रही हो तब पड़ोसन ने उसे संकट चौथ की कहानी के बारे में बताया कि इस व्रत को करने से सारे संकट दूर होते हैं और अन्न, धन व संतान का सुख मिलता है.
साहूकारनी ने पड़ोसन की बात सुन बोली कि यदि मुझे गर्भ ठहर गया तो मैं सवा सेर तिलकुट करुँगी और चौथ का व्रत भी करुँगी, साहूकारनी को गर्भ ठहर गया तो वह बोली कि यदि मुझे लड़का हो गया तो मैं ढाई सेर तिलकुट करुँगी. उसे लड़का भी हो गया तो साहूकारनी कहती है कि हे चौथ माता ! अगर मेरे बेटे का विवाह हो जाएर्गा तो मैं सवा पाँच सेर तिलकुट करुँगी. अब बेटे का विवाह भी तय हो गया तो वह विवाह करने चले गए. अब चौथ बिन्दायक जी ने विचार किया कि कब से यह तिलकुट करने की बात कर रही हैं लेकिन इसने एक बार भी ऎसा नहीं किया और अब भी इसने तिल का एक दाना तक मुझे नहीं दिया. बिन्दायक जी सोचने लगे कि इसे प्रपंच दिखाना होगा अन्यथा कलियुग में कोई भगवान को नहीं मानेगा. भगवन सोचते हैं कि इसके बेटे को फेरों से ही उठाना पड़ेगा.
साहूकार का बेटा फेरों पर बैठा और तीन फेरे पूरे होते ही चौथ माता वहाँ पर गरजती हुई आई और लड़के को उठाकर पीपल के पेड़ पर बिठा दिया. विवाह मंडप में हाहाकार मच गया कि क्या हुआ? सब लड़के को ढूंढ रहे थे लेकिन वह कहीं भी नहीं मिला और बारात वापिस चली गई, लड़की भी अधब्याही रह गई.
एक बार वह लड़की गणगौर पूजने के लिए गाँव के बाहर से दूब लेने जाती है और साहूकार का लड़का उसे पीपल पर से आवाज देता है – “आ मेरी अधब्याही”. बार-बार यह बात सुनकर लड़की सूखने लगती है तब उसकी माँ उससे पूछती है कि क्या बात है? लड़की माँ को सारी बात बता देती है कि एक लड़का पीपल के पेड़ से उसे आवाज देता है और उसने सेहरा बाँध रखा है. लड़की की माँ अब उस पेड़ के पास जाती है तो देखती है कि यह तो उसका जमाई है.
लड़की की माँ उसे कहती है कि तुम तो मेरी लड़की को अधब्याही छोड़ गए, अब क्या चाहिए? तब लड़का कहता है कि मेरी माँ ने चौथ माता का तिलकुट बोला था लेकिन उसने नहीं किया तो चौथ माता ने नाराज होकर मुझे यहाँ बिठा दिया. अब लड़की की माँ साहूकारनी के पास जाती है और कहती है – तुमने तिलकुट बोला था क्या? साहूकारनी कहती है कि हाँ बोला था और अब साहूकारनी सारी बात सुनकर कहती है कि यदि मेरा बेटा वापिस आ जाए तो मैं ढाई मन का तिलकुट करुँगी.
साहूकारनी की बात सुनकर चौथ माता प्रसन्न होती हैं और लड़के को फेरों पर लाकर बिठा देती हैं. बेटे का विवाह हो गया तब वह ढाई मन का तिलकुट करती है और कहती है कि हे चौथ माता आपके आशीर्वाद से मेरे बेटे का विवाह हो गया. अब मैं हमेशा तिलकुट कर के व्रत करुँगी. वह सारे नगर में ढिंढोरा भी पिटवा देते हैं कि अब से हर कोई संकट चौथ का व्रत कर के तिलकुट भी करेगा.
हे चौथ माता जैसे आपने साहूकारनी की सुनी वैसे ही सबकी सुनना, कहानी कहने वाले की भी और कहानी कहने वाले की भी.
इस कहानी के बाद बिन्दायक जी की कहानी भी कहते हैं.
शीतला षष्ठी – Sheetala Shashthi
इस व्रत को माघ माह में कृष्ण पक्ष की षष्ठी को किया जाता है. इस व्रत को करने से आयु तथा संतान कामना का फल मिलता है. कई स्थानों पर इस दिन कुत्ते को टीका लगाकर पूजने का और पकवान खिलाने का रिवाज भी है. इस दिन जो स्त्रियाँ व्रत रखती हैं उन्हें गर्म पानी से स्नान नहीं करना चाहिए और ना ही गर्म भोजन करना चाहिए. बंगाल राज्य में इसका ज्यादा महत्व माना गया है. इस दिन शीतला माता का पूजन षोडशोपचार से करने पर पापों का शमन होता है.
शीतला षष्ठी की कथा – Story Of Sheetala Shashthi
प्राचीन समय में एक वैश्य था जिसके सात विवाहित पुत्र थे लेकिन सातों में से किसी को भी संतान सुख नहीं था. एक बार किसी वृद्धा के कहने पर सातों बहुओं ने शीतला माता का व्रत किया जिसके प्रभाव से वह सभी गर्भवती हो गई और सभी ने पुत्र को जन्म दिया. एक बार उस वैश्य की पत्नी ने शीतला माता की उपेक्षा कर गर्म जल से स्नान किया और अपनी बहुओं को भी कराया.
माता की अवहेलना करने से उसी रात वैश्य की पत्नी एक भयानक सपना देखती है कि उसके पति की मृत्यु हो गई है और उसकी पुत्रवधु व पोतें बिलख-बिलखकर रो रहे हैं. वह चिल्लाते हुए स्वप्न से जाग जाती है तो उसकी आवाज सुन पड़ोसने भी आ जाती है और वैश्य की पत्नी का सपना जानने पर सभी यही कहती हैं कि तुमने शीतला माँ का अपमान किया है, वह उसे माता के लिए किया अपराध बताती हैं.
वैश्य की पत्नी अपनी देह में कुल्हाड़ी लगी देख चीखती हुई वन की ओर भागती है. वन में उसे एक वृद्धा मिलती है जो उसकी तरह ही ज्वाला में तड़प रही थी. वह वृद्धा शीतला माता ही थी और वह वैश्य की पत्नी से अपने शरीर में दही का लेप लगाने को कहती है और वह माता को लगा देती है जिससे उनकी ज्वाला शांत होती है. अब वैश्य की पत्नी को अपनी भूल का अहसास होने पर पश्चाताप भी होता है. वह अपनी गलती पर क्षमा माँगकर अपने पति व पुत्रों को जीवित करने का आग्रह माता से करती है. माता प्रसन्न होकर उसके पुत्रों व पति को जीवित कर देती है.
षटतिला एकादशी – Shatatila Ekadashi
यह व्रत माघ माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है और इसके अधिष्ठाता देव विष्णु जी हैं. इस दिन पंचामृत में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराना चाहिए. माना गया है कि जो मनुष्य जितने तिलों का दान करता है वह उतने सहस्त्र वर्ष स्वर्ग में वास करता है. इस दिन तिल मिश्रित पदार्थों का सेवन किया जाता है और ब्राह्मण को भी यह पदार्थ खिलाना चाहिए. हर एकादशी की भाँति इस में भी भगवान की मूर्ति के सामने रात्रि जागरण करते हुए भजन-कीर्तन करना चाहिए.
इस एकादशी में छ: प्रकार के तिलों का प्रयोग होता है इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहा जाता है. एकादशी पर नियम व विधि विधान से पूजा करने पर मनुष्य अंत में बैकुंठ धाम को जाता है.
षटतिला एकादशी कथा – Shatatila Ekadashi fast
एक समय में वाराणसी नगर में एक अहीर रहता था. वह बहुत दीन अवस्था में अपने बच्चों के साथ समय गुजार रहा था और कभी-कभी गरीबी के कारण उन सभी को भूखा भी सोना पड़ जाता था. उसकी आजीविका का एकमात्र सहारा जंगल से लकड़ी तोड़कर बेचने था और जिस दिन लकड़ी नहीं बिकती तब फाका मारकर ही रह जाता था.
एक दिन उस अहीर को किसी साहूकार के घर में लकड़ी पहुंचाने का काम मिला तो वहाँ जाकर देखता है कि उत्सव जैसा माहौल बना हुआ है. कौतूहलवश वह साहूकार से पूछ ही लेता है – बाबूजी यह किस चीज की तैयारी हो रही है? सेठ कहते हैं – यह षटतिला एकादशी के व्रत की तैयारी हो रही है. इसे करने से पाप, रोग, हत्या जैसे बंधनों से मुक्ति मिलती है और धन व पुत्रादि की प्राप्ति होती है.
सेठ की बातें सुन अहीर सेठ से मिले पैसों से पूजा का सामान लाया और एकादशी का विधिव्रत व्रत व पूजन संपन्न किया. इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से वह कंगाल से एक सम्मानित व्यक्ति बन गया.
मौनी अमावस्या- Mauni Amavasya
माघ माह की अमावस्या को ही मौनी अमावस्या कहा जाता है. जो इस व्रत को करते हैं उन्हें इस दिन मौन धारण कर के रहना चाहिए तभी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा गया है. जो व्यक्ति इस व्रत को मौन रहकर करते हैं उन्हें मुनि पद की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दिन मौन रहकर इस व्रत को करने से आत्मबल मिलता है. इस दिन सृष्टि के संचालक मनु का जन्म दिवस भी मनाया जाता है.
बसंत पंचमी – Basant Panchami
माघ माह की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु और सरस्वती की पूजा की जाती है. माँ सरस्वती विद्या की देवी मानी गई है इसलिए विद्यार्थियों और शि़क्षार्थियों के लिए यह दिन विशेष माना जाता है और सरस्वती पूजन बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.
जो लोग बसंत पंचमी मनाते हैं वह इस दिन पीले रंग के मीठे चावल अवश्य बनाते हैं. भगवान को पीले वस्त्र भी पहनाए जाते हैं. एक मान्यता के अनुसार स्त्रियाँ अपने हाथ से पति को इस दिन भोजन कराए तो पति का कष्ट दूर होता है और उसकी उम्र भी बढ़ जाती है.
सूर्य सप्तमी – Surya Saptami
यह व्रत माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है. यह व्रत स्त्रियों द्वारा रखा जाता है इसलिए इस दिन वे सूर्य नारायण को प्रसन्न करने का प्रयास करती हैं. इस दिन सूर्य भगवान जब भी बादल में से निकलते हैं उस समय सूर्य भगवान को गंगाजल से अर्ध्य देना शुभ माना गया है. सूर्य भगवान की मौली, लाल चंदन, चावल, लाल फूल, जनेऊ, धूप, दीपक, कपूर, प्रसाद, फल आदि से पूजा कर के दक्षिणा चढ़ानी चाहिए. परिक्रमा कर सूर्य को अर्ध्य देते समय निम्न श्लोक बोलना चाहिए.
जन जनम क्रीत, पांप, माया, जनम,
स जनम स तन में रोग च सीझंच मा की हती सप्तमी ।
जया एकादशी – Jaya Ekadashi
यह व्रत माघ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. इस तिथि को भगवान केशव की पुष्प, जल, अक्षत,रोली तथा विशेष सुगंधित पदार्थों से पूजा कर आरती करनी चाहिए. भगवान को प्रसाद का भोग लगा भक्त को स्वयं प्रसाद खाना चाहिए.
जया एकादशी व्रत कथा – Jaya Ekadashi Fast Story
प्राचीन समय में एक बार इन्द्र की सभा में माल्यवान नामक गन्धर्व गीत गा रहा था परन्तु उसका मन अपनी नवयौवना सुन्दरी में आसक्त था. इस कारण स्वर लय भंग हो रही थी. इन्द्र को यह बात बुरी तरह से खटक रही थी, उसने क्रोध में आकर कहा – हे गन्धर्व! तू जिसकी याद में है वह और तू दोनो पिशाच बन जाओ. इन्द्र के शाप से वह दोनो हिमालय पर पिशाच बनकर दुखी जीवन व्यतीत करने लगे.
दैवयोग से एक बार जया एकादशी थी और उन्होने उस दिन कुछ खाया नहीं. केवल फल-फूल खाकर उन्होंने वह दिन व्यतीत कर दिया. अनजाने ही सही लेकिन उन दोनों ने जया एकादशी का व्रत कर लिया. इस व्रत को करने के प्रभाव से दूसरे दिन सुबह होते ही उन दोनों को पिशाच योनि से छुटकारा मिल गया. दोनो बहुत सुंदर देह पाकर स्वर्गलोक को चले गए.
माघी पूर्णिमा – Maghi Purnima
माघ माह का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व माना गया है. स्नान पर्वों का यह अंतिम प्रतीक मानी गई है. इस दिन सुबह सवेरे उठकर स्नान आदि कर के विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए. पितृ श्राद्ध कर्म तथा भिखारियों को दान आदि देने का इस दिन खास महत्व माना गया है. इस दिन गंगा स्नान का भी अत्यधिक महत्व है. स्नान करने से सारे कष्ट व दुखो का अंत होता है.