बालकाण्ड – Baal Kand
मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी ।
जो अनाथ हित हम पर नेहू, तो प्रसन्न होइ यह वर देहू ।
देखहिं हम सो रूप भरि लोचन, कृपा करहुं प्रनतारित मोचन ।
बार बार मांगऊँ कर जोरें, मन परिहरै चरन जनि भोरें ।
अयोध्या काण्ड – Ayodhya Kand
सेवक हर स्वामी सिय नाहू, होउ नाथ यह ओर निबाहू ।
अब करि कृपा देहू वर एहूं, निज पद सरसिज सहज सनेहूं ।
जोरि पानि वर मांंगऊ एहूं, सिया राम पद सहज सनेहूं ।
सीता राम चरन रति मोरे, अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे ।
अरण्य काण्ड – Aranya Kand
जो कोसलपति राजिवच नयना, करउ सो राम हृदय मम अयना ।
अस अभिमान जाइ जनि भोरे, मैं सेवक रघुपति पति मोरे ।
यह वर मांगऊ निकेता, बसहु हृ्दय श्री अनुज समेता ।
किष्किन्धा काण्ड – Kishkindha Kand
जदपि नाथ बहु अवगुन मोरे, सेवक प्रभुहि परै जनि भोरे ।
सेवक सुत पति मातु भरोसे, रहे असोच बनै प्रभु पोसे ।
अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति, सब तजि भजनु करौ दिन राति ।
सुन्दर काण्ड – Sundar Kand
दीन दयाल विरदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी ।
अब मैं कुशल मिटे भय भारे, देखि राम पद कमल तुम्हारे ।
तुम्ह कृपाल जापर अनुकूला, ताहि न व्याप विविध भवसूला ।
लंका काण्ड – Lanka Kand
कृपा वारिधर राम खरारी, पाहि पाहि प्रनतारित हारी ।
अनुज जानकी सहित निरन्तर, बसहु राम नृप मम उर अन्तर ।
उत्तर काण्ड – Uttar Kand
जो करनी समझै प्रभु मोरी, नहिं निस्तार कल्प सत करेगी ।
असरन सरन विरदु संभारी मोहि जनि तजहु भगत हितकारी ।
मोरें तुम्ह प्रभु गुर पितु माता, जाऊँ कहां तजि पद जलजाता ।
देहु भगति रघुपति अतिपावनी, विविध ताप भवताप नसावनी ।
रामचरण वारिज जब देखैं, तब निज जन्म सफल करि देखौं ।