हस्तरेखा शास्त्र में “वाया लेसीवा(लासिवा) अथवा असंयम रेखा” का महत्व

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इस रेखा के विषय में अनेक मतभेद पाए गए हैं. कई विद्वान इसे बुध रेखा या चन्द्र रेखा के समानांतर एक छोटी रेखा मानते हैं. यह रेखा बुध रेखा को एक तरह से विशेष शक्ति प्रदान करती है और यह शक्ति केवल और केवल अधिक कामुकता के रुप में सामने आती है. मतांतर से कुछ अन्य हस्तरेखा शास्त्री इस वाया लासिवा रेखा को शुक्र पर्वत से लेकर चंद्र पर्वत तक एक पुल की तरह मानते हैं जो धनुषाकार लिए होती है. इसे अर्धचन्द्राकार रुप में भी देखा जा सकता है जो शुक्र तथा चंद्र पर्वतों को जोड़ने का काम करती है इसलिए यह चन्द्र तथा शुक्र का फल एक साथ प्रदान करती है. यह रेखा केवल “अधिकता” की ओर इशारा करती है इसलिए इसे शुभ नहीं माना जाता है.

 

लासिवा शब्द अंग्रेजी के “लैसीवियस” शब्द से बना है जिसका अर्थ कामुक है. यह रेखा यदि किसी पतले व मुलायम हाथ पर पाई जाए तो व्यक्ति में मानसिक कामुकता प्रबल होती है. साथ ही वह शराब आदि का नशा भी करता है. अगर इस रेखा वाले व्यक्ति के हाथ में मस्तिष्क रेखा कमजोर होने के साथ उसका अंगूठा भी छोटा हो और छोटे अंगूठे का पहला पर्व बड़ा हो जाए तो व्यक्ति काम वासना के विषय में अंधा हो जाता है. 

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यदि यह रेखा जीवन रेखा को काटती हुई चन्द्र पर्वत तक पहुंचती है और जीवन रेखा कमजोर होती है तब ऎसा व्यक्ति अत्यधिक कामुकता के कारण अस्वस्थ रहता है. यदि यह रेखा भारी हाथ वाले व्यक्ति के हाथ में स्थित है और साथ ही उसका शुक्र पर्वत व आक्रामक पर्वत भी उन्नत हों तब ऎसा व्यक्ति काम की तृप्ति में किसी नियम को नहीं मानता है.

 

हस्तरेखा शास्त्र में चंद्र पर्वत को कल्पनाशक्ति, मानसिक तनाव तथा द्रवों का सूचक माना गया है. शुक्र को मादकता तथा उत्साह का सूचक माना गया है. इसी कारण लासिवा रेखा का जब शुक्र से चंद्र तक संबंध बनाती है तब एक तरह से शुक्र व चन्द्र की युति हो जाती है, जिससे व्यक्ति में मादक पदार्थों की ओर झुकाव बढ़ जाता है. चन्द्र कल्पना और शुक्र भोग हो गया. यदि कहीं मस्तिष्क रेखा चन्द्र पर्वत की ओर झुकी हुई हो तो ऎसे व्यक्ति में मानसिक शक्ति या आत्मशक्ति की कमजोरी रहती है, कल्पनाओं में ज्यादा रहता है. यदि साथ ही वाया लासिवा भी हाथ में मौजूद हो तब ऎसा व्यक्ति कितना भी बुद्धिमान क्यों ना हो, जरा सी विपरीत बात होते ही वह तनावग्रस्त हो जाता है. ऎसे में व्यक्ति पर परिस्थितिवश जैसा दबाव होता है वैसा ही वह काम करने लगता है. एक तरह से कहा जा सकता है कि व्यक्ति परिस्थितियों का दास बन जाता है और कठपुतली की तरह नाचता है. ऎसे में तनाव होने से वह कोई ना कोई नशा भी आरंभ कर देता है.

 

ऎसे व्यक्ति को समाज में अपने तो उपेक्षित करते ही है, पराये व्यक्ति भी उपेक्षा की दृष्टि से ही देखते हैं. अपने यौवनकाल तक आते-आते व्यक्ति को समाज का काफी अनुभव हो जाता है और फिर वह खुद को समाज के लायक ही नहीं समझता है. समाज से मिले जख्म वह जीवनभर ढोता है, कभी भूल नहीं पाता है. इन्हीं जख्मों को भूलने के लिए भी वह नशे का सहारा लेता है.

 

यदि यही वाया लासिवा रेखा किसी चौकोर हाथ में है या किसी बड़े हाथ में है तब ऎसा व्यक्ति अपनी नकली व्यथा अथवा झूठी कहानी सुनाकर दूसरों से अपना काम निकालता है, अपना मतलब साधता है. ऎसे व्यक्तियों में वाया लासिवा हथकंडों की तरह काम करता है. यह रेखा बहुत कम हाथों में देखी जाती है और यह किसी भी सूरत में शुभ नहीं होती है.