ऊँ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा । सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥1॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया । शिल्प शस्त्र का जग में,ज्ञान विकास किया ॥2॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई । ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई ॥3॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना । संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना ॥4॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी । सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी ॥5॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे । द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे ॥6॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे । मन दुविधा मिट जावै, अटल शांति पावे ॥7॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे । कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ॥8॥