कार्तिक माह माहात्म्य – उन्नत्तीसवाँ अध्याय
प्रभु कृपा से लिख रहा, सुन्दर शब्द सजाय। कार्तिक मास माहात्म का, उन्तीसवाँ अध्याय।। राजा पृथु ने कहा – हे
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प्रभु कृपा से लिख रहा, सुन्दर शब्द सजाय। कार्तिक मास माहात्म का, उन्तीसवाँ अध्याय।। राजा पृथु ने कहा – हे
पढ़े सुने जो प्रेम से, वह हो जाये शुद्ध स्वरुप। यह अठ्ठाईसवाँ अध्याय कार्तिक कथा अनूप।। धर्मदत्त ने पूछा –
कार्तिक मास माहात्म्य का छब्बीसवाँ अध्याय। श्री विष्णु की कृपा से, आज तुमको रहा बताय।। नारद जी बोले – इस
सुना प्रश्न ऋषियों का और बोले सूतजी ज्ञानी। पच्चीसवें अध्याय में सुनो, श्री हरि की वाणी।। तीर्थ में दान और
लिखवाओ से निज दया से, सुन्दर भाव बताकर। कार्तिक मास चौबीसवाँ अध्याय सुनो सुधाकर।। राजा पृथु बोले – हे मुनिश्रेष्ठ!
तेईसवाँ अध्याय वर्णन आँवला तुलसी जान। पढ़ने-सुनने से ‘कमल’ हो जाता कल्यान।। नारद जी बोले – हे राजन! यही कारण