कार्तिक माह माहात्म्य – पैंतीसवाँ अध्याय
अनुपम कथा कार्तिक, होती है सम्पन्न। इसको पढ़ने से, श्रीहरि होते हैं प्रसन्न।। इतनी कथा सुनकर सभी ऋषि सूतजी से
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अनुपम कथा कार्तिक, होती है सम्पन्न। इसको पढ़ने से, श्रीहरि होते हैं प्रसन्न।। इतनी कथा सुनकर सभी ऋषि सूतजी से
सूतजी ने ऋषियों से, कहा प्रसंग बखान। चौंतीसवें अध्याय पर, दया करो भगवान।। ऋषियों ने पूछा – हे सूतजी! पीपल
दया दृष्टि कर हृदय में, भव भक्ति उपजाओ। तैंतीसवाँ अध्याय लिखूँ, कृपादृष्टि बरसाओ।। सूतजी ने कहा – इस प्रकार अपनी
मुझे सहारा है तेरा, सब जग के पालनहार। कार्तिक मास के माहात्म्य का बत्तीसवाँ विस्तार।। भगवान श्रीकृष्ण ने आगे कहा
कार्तिक मास माहात्म्य का, यह इकत्तीसवाँ अध्याय। बतलाया भगवान ने, प्रभु स्मरण का सरल उपाय।। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा –
कार्तिक मास की कथा, करती भव से पार। तीसवाँ अध्याय लिखूँ हुई हरि कृपा अपार।। भगवान श्रीकृष्ण सत्यभामा से बोले